आपने कई अघोरी साधुओं को देखा होगा और उनके बारे में काफी कुछ सुना भी होगा लेकिन आज भी इनके बारे में कई सारी ऐसी बातें हैं जो शायद न ही आपने कभी सेाचा होगा और न ही जानते होंगे। सामान्य तौर पर तो अघोरी की कल्पना की जाए तो श्मशान में तंत्र क्रिया करने वाले किसी ऐसे साधु की तस्वीर जेहन में उभरती है जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है। इतना ही नहीं अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु समझा जाता है लेकिन अघोरी का अर्थ होता है जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। कहा तो ये भी जाता है की अघोरी बनना बड़ा ही कठिन होता है।
अघोरियों का निवास स्थान शिव के भक्त के रूप में विख्यात काले वस्त्रधारी अघोरियों का निवास स्थान आम लोगों के निवास स्थान से काफी दूर होता है। नशे में धुत्त, लंबे काले बालों वाले अघोरी आम तौर पर श्मशान के समीप अथवा हिमालय की गुफाओं में निवास करते हैं कई बार अघोरी देखने को भी मिलते है। अघोरी साधुओं भगवान शिव के भक्त होते हैं। हालांकि, यह भी सत्य है कि वो मृत्यु की देवी शक्ति या माँ काली की पूजा भी करते हैं क्योंकि इनका मानना है कि माँ काली की माँगों के अनुरूप ही वो मदिरा और माँस का सेवन करते हैं। इसके अलावा यौन संबंध भी वो अपने आराध्य की माँग पर ही बनाते हैं।
अगर आपने प्रयाग में लगने वाले अर्ध कुंभ मेले को देखा होगा तो वहां आप इन अघोरियों को भी देखे होंगे क्योंकि उन्हे वहां देखा जा सकता है। वैसे आपको बता दें की अघोरियों की दुनिया काफी रहस्यमयी होती है आज हम आपको उन रहस्यमयी दुनिया के बारे में कुछ बताना चाहेंगे तो आइए जानते हैं-
सबसे पहले तो आपको बता दें की ये अघोरी भगवान शिव के भक्त होते हैं जो की अपने शरीर पर कपड़ा बहुत कम पहनते हैं ये अपने पूरे शरीर में राख लगाते हैं। इस तरह की वेशभूषा के कारण इनसे काफी डर लगता है लेकिन ये अंदर से बेहद ही सरल स्वभाव के सिद्धि प्राप्त होते हैं।
कहा तो ये भी जाता है की अघोरी साधु कभी किसी से कुछ मांगते ही नहीं है, इसलिए येअघोरी साधु आसानी से दिखाई भी नहीं देते, ये भगवान शिव की तपस्या करते हैं। बताया जाता है की अघोरी साधु श्मशान में रहते हैं वहीं पूजा अर्चना करते हैं और मृत की राख को शरीर पर लगाते हैं।
अघोरी साधु को भोजन में जो मिलता है वे वहीं खाते हैं। इसके अलावा बता दें की कई बार तो अघोरी साधु मृत शरीर को भी अपने भोजन के रुप में स्वीकार करते हैं लेकिन एक बात ये भी है की वो कभी भी गाय के मांस को नहीं खाते। माना जाता है की इन अघोरी साधुओं में काफी ज्यादा शक्ति होती है और इसलिए अगर कभी किसी सच्चे अघोरी ने एक बार कुछ बोल दिया तो वह सही हो जाता है।
अघोरी साधुओं का मानना है कि हृदय में घृणा को स्थान देने वाले एकाग्रता से ध्यानमग्न नहीं हो सकते। इसके अलावा इन अघोरियों को कपाल से भी पहचाना जा सकता है क्योंकि कपाल ही वो पहली चीज है जो वो मुर्दों से हासिल करते हैं।