आखिर क्यों बढ़ रहे आलू प्याज के दाम: क्या किसानों को मिल रहा है फायदा ?

इन दिनों स्थानीय मंडियों में प्याज चालीस रुपए किलो टमाटर साठ रुपए किलो बिक रहा है। आलू भी तेजी से बढ़ता रहा है। यह क्यों हो रहा है? क्यों बढ़ रहे दामों पर सरकार रोक नहीं लगा पा रही है। क्या बढ़ी कीमतों का लाभ किसान को मिल रहा है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि केंद्र सरकार का तर्क है कि कृषि अध्यादेशों में जो प्रावधान किए गए हैं, इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। ऐसे में सरकार यह जवाब दें कि जब यहीं बिक्री की यहीं व्यवस्था तो सब्जियों में हैं। फिर क्यों नहीं सब्जी उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी हो रही है?

किसान अध्यादेशों को केंद्र सरकार किसानों के हित में बता रही है। दावा किया जा रहा है कि इससे जमाखोरी को बढ़ावा नहीं मिलेगा। 

इस वक्त आलू प्याज की फसल किसान के पास नहीं हैं, बल्कि बिचौलियों के पास है। वह मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। क्यों? क्योंकि आलू प्याज और सब्जी की फसलों की बिक्री खुले बाजार में होती है। इस पर कंट्रोल करने के लिए कोई सिस्टम नहीं है। यहीं वजह है कि जब सब्जी की फसल का सीजन होता है तो कई बार इतनी सस्ती हो जाती है कि किसान सब्जी की ट्राली यूं ही फेंक कर चले जाते हैं।

यह क्यों होता है

यह इसलिए होता है, क्योंकि सरकार के पास आंकड़ा ही नहीं होता कि कितनी सब्जी का उत्पादन हुआ। सब्जी मंडी सिस्टम इतना मजबूत नहीं है। आलू प्याज का उत्पादन कितना हुआ। तब बिचौलिए किसानों से बहुत ही सस्ते दाम पर आलू प्याज खरीद कर जमा कर लेते हैं। बाद में धीरे धीरे बाजार में सप्लाई करते हैं। इससे वह मोटा मुनाफा कमाते हैं। यह सिलसिला साल दर साल चल रहा है। लेकिन सरकार इस पर ही रोक नहीं लगा पायी। 

हर साल का सिलसिला है

यह इस बार का नहीं बल्कि हर साल का सिलसिला है। आपको याद होगा हर बार इन दिनों आलू, प्याज, टमाटर के दाम बढ़ने शुरू हो जाते हैं। बिचौलिएं लाभ कमाते हैं। तब सरकार हरकत में आती है। विदेश से आलू प्याज आयात होता है। इसके बाद दाम थोड़े बहुत कंट्रोल होते है।

आम उपभोक्ता को भी होता है नुकसान

ऐसा नहीं सिर्फ किसान ही सस्ते में आलू, प्याज और टमाटर बेचने पर मजबूर है। इसका नुकसान आम उपभोक्ता को भी उठाना पड़ता है। उन्हें आलू प्याज और टमाटर के दाम ज्यादा चुकाने पड़ते हैं। उनके पास ऐसा कोई मंच नहीं है, जहां वह विरोध कर सके। इसलिए केंद्र सरकार जो करने जा रही है, इसका नुकसान आम उपभोक्ता को भी देर सवेर भुगतना पड़ सकता है। 

तो क्या यह फसलों के साथ नहीं हो सकता

निश्चित ही ऐसा हो सकता है। यहीं वजह है कि सरकार की कोशिश है कि जिस तरह से सब्जी मंडी में काम होता है, इसी तरह से अनाज मंडियों में भी काम हो। सरकार मंडी सिस्टम खत्म ही इसलिए करना चा रही है कि फसलों की बिक्री निजी हाथों में हो। किसान फसल को लेकर शहर तक ही मुश्किल से आ पाता है, वह दूसरी जगह बेचने नहीं जा सकता। इसके लिए न तो उसके पासा पैसा है, न ही संसाधन। अब होगा यह कि कंपनियां किसानों से सस्ते में अनाज खरीदेंगी। जिस तरह से आलू और प्याज में होता है, वहीं खेल फसलों में ही होगा। यदि ऐसा होगा तो फिर निश्चित ही हमें गेहूं चावल के भी बहुत ज्यादा दाम तो चुकाने ही होंगे, इसके साथ ही साल में एक दो बार इनकी किल्लत का भी सामना करना पड़ सकता है। 

तो यहीं है विरोध की वजह

यहीं वजह है कि किसान और आढ़ती कृषि अधिनियम का विरोध कर रहे हैं। आढ़ती इसलिए विरोध रहे हैं, क्योंकि उनका कारोबारा खत्म हो जाएगा। नए कानून की वजह से अब व्यापारी मंडी के बाहर से ही किसानों से फसल खरीद सकता है। इस कानून में इससे भी ज्यादा छूट दी है। यदि व्यापारी मंडी से फसल खरीदते है तो उसे खरीद पर चार प्रतिशत टैक्स भी देना होगा, इसके विपरीत यदि वह मंडी के बाहर से फसल खरीदते है तो उसे यह टैक्स भी नहीं देना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस अधिनियम से किसानों को तो नुकसान होगा ही , इसके साथ ही इसका असर उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा।

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