कोरोना के खिलाफ कारगर ’इलेक्ट्रोहोम्योपैथी’, जानिए इसके और भी लाभ…

 सामरिक और सांस्कृतिक विविधताओं के साथ ही भारत में चिकित्सा पद्धतियों के मामले में भी कई विधिताएं मौजूद है। आयुर्वेद, यूनानी, योग, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा, तिब्बती, एलोपैथी के साथ-साथ ’इलेक्ट्रोहोम्योपैथी’ भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। अब गांवों में भी इलेक्ट्रोहोम्योपैथी के चिकित्सक लोगों का दुख-दर्द दूर कर रहे हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के खिलाफ भी विशेषज्ञ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी को कारगर बता रहे हैं।

इलेक्ट्रोहोम्योपैथी का आविष्कार वर्ष 1865 में इटली के बोलोग्ना निवासी काउंट सीजर मैटी ने किया था। यह चिकित्सा पद्धति पूर्णतः पौधों पर आधारित है। भारत में 1880 में पहुंची इलेक्ट्रोहोम्योपैथी को सस्ती व पूरी तरह से हानिरहित बताया जाता है।

इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (ईडीओ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. डीके पाल का कहना है कि शरीर की प्रत्येक कोशिका के अंदर ऊर्जा होती है और यह ऊर्जा हमें प्राकृति रूप से पौधों से मिलती है। हमारा शरीर ऊर्जा द्वारा ही चलता है। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी विधा यह मानती है कि शरीर में किसी क्रिया की कमी का कारण ही रोग है या किसी क्रिया का बढ़ जाना भी रोग है। क्रिया घटने को नकारात्मक रोग और बढ़ने को सकारात्मक रोग कहा जाता है अथवा शरीर के अंदर इन क्रियाओं में सहयोगी तत्वों में कमी आ जाती या अधिकता हो जाती है। पौधों के अंदर ऊर्जा अथवा तत्वों की नकारात्मक व सकारात्मक अवस्था को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। इससे रोग नष्ट हो जाता है। शरीर में होने वाली क्रियाओं के लिए पौधों के रूप में भिन्न-भिन्न औषधियां बनाई जाती है और उनका प्रयोग होता है। यह ऊर्जा (इलेक्ट्रीसिटी) ही होती है। इसी कारण पद्धति का नाम इलेक्ट्रोहोम्योपैथी पड़ गया तथा जीवों का शरीर पौधों से मिले प्राकृतिक तत्वों को सरलता से पचा लेता है, जबकि रसायनिक पदार्थों को आसानी से स्वीकार नहीं करता।

दूसरी पद्धतियों से अलग है इलेक्ट्रोहोम्योपैथी
यह चिकित्सा पैथी दूसरी पद्धतियों से पूरी तरह से अलग है। यह प्राकृतिक रूप से पूर्णतया औषधीय पौधों पर आधारित है। जबकि आयुर्वेकि चिकित्सा पद्धति पूरी तरह से पौधों पर आधारित नहीं है। आयुर्वेद में पौधों के साथ ही लौह, सोना, चांदी, पारा आदि भस्मों का प्रयोग होता है। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी में 114 प्रकार के पौधों का प्रयोग किया जाता है। औषधि निर्माण प्रक्रिया वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें ताजे पौधे को लेकर डिस्टीलेशन प्रक्रिया में डाला जाता है। पौधे के जीवन तत्व को इस प्रक्रिया द्वारा संग्रहित किया जाता है। पौधे को सुखाकर उसकी आदि शक्ति नष्ट हो जाती है। पहली प्रक्रिया पूरी होने के बाद पौधे के बचे भाग को सड़कार फिर से डिस्टीलेशन प्रक्रिया में डालकर दूसरा भाग प्राप्त किया जाता है। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी में संपूर्ण पौधे का उपयोग किया जाता है।

कोरोना में लाभदायक है इलेक्ट्रोहोम्योपैथी

पूरी तरह से पौधों पर आधारित चिकित्सा पद्धति होने के कारण इलेक्ट्रोहोम्योपैथी कोरोना के खिलाफ भी कारगर है। यह लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से कोरोना वायरस बेअसर हो जाता है। नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के जर्नल में प्रकाशित अपने शोध पत्र में जैनेटिक्स के वैज्ञानिक डाॅ. बीएस त्यागी, डाॅ. डीके पाल और डाॅ. एसके शर्मा ने बताया है कि प्रकृति ने पौधों में ऐसी प्रयोगशाला दी है कि यह औषधि उत्पादित हैं जिसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी पूरी तरह से भारतीय परिवेश के अनुरूप है।

मान्यता के लिए केंद्र सरकार ने बनाई समिति

इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मान्यता संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. डीके पाल ने बताया कि भारत में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी को मान्यता की लड़ाई आजादी से पहले से चल रही है। आजादी के बाद 1953 में फिर से मांग उठी। देश के कई कोर्ट ने इस पद्धति के पक्ष में निर्णय दिए हैं। 2010 में केन्द्र सरकार ने इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की प्रैक्टिस और शिक्षा देने की अनुमति दे दी। फिलहाल सरकारी स्तर पर इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री जारी करने पर कोई आदेश नहीं हुआ है। इस पर विचार के लिए केंद्रीय स्तर पर एक विभागीय समिति का गठन किया गया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद भी इस पर विचार कर रही है।

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