‘कोरोना से तो जीत जाओगे, भूख से कैसे जीतोगे’ !

चीन से निकले वुहान वायरस के मामले दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ता जा रहा है। कोरोना के पॉज़िटिव मामले अब 2 मिलियन पहुंचने वाले हैं तथा इस वायरस से अभी तक 1 लाख 14 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। स्वयं चीन इससे सबसे अधिक प्रभावित हुआ है तथा वैश्विक स्तर पर कई देश चीन से नाराज भी हो चुके हैं। कोरोना ने फूड सप्लाइ चेन को बुरी तरह से प्रभावित किया है जिससे यह पूरा सिस्टम तहस नहस हो चुका है। अब अगर सबसे अधिक नुकसान होने वाला है तो वह चीन ही है क्योंकि इससे चीन को अपनी आबादी को खिलाने के लिए खाने की भयंकर कमी होने वाली है। चीन के सोशल मीडिया में इसकी खूब चर्चा भी हो रही है।

सोशल मीडिया पर कई सप्ताह से यह खबर चल रही है कि चीन में खाने की भारी कमी हो चुकी है। एक दावे में यह कहा जा रहा है कि एक सरकारी दस्तावेज़ भी सामने आया जिसमें फूड सप्लाई को कम करने की प्लानिंग की बात कही गयी है।

उसे CCP का अधिकारी नोटिफिकेशन कहा जा रहा है जिसमें सभी परिवारों के लिए 3-6 महीने तक का खाना कम करने के लिए motivate करने को कहा गया था। साथ में 3-6 महीने तक का खाना जुटाने के लिए भी कहा जा रहा है। हालांकि, चीन की सरकार ने खाने की कमी का खंडन किया है और कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने इसपर लेख भी लिख दिया था।

कोरोना वायरस के कारण जिस तरह से सभी वस्तुओं का उत्पादन और उनकी आवाजाही रुकी है उससे चीन में 1959-61 में पड़े भयंकर आकाल की याद ताज़ा हो जाती है। पूरे विश्व में जिस तरह से खेती बारी से लेकर लेबर की कमी और फिर लोजीस्टिक आवाजाही धीमी पड़ी है उससे चीन का सप्लाइ चेन टूट चुका है और खाद्यान पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना मुश्किल हो चुका है। बता दें कि चीन सबसे बड़ी आबादी होने के कारण खाने का सबसे बड़ा consumer और इंपोर्टर भी है।

चीन में किसानों ने जो भी उत्पादन किया था, उसके दो महीने तक बाज़ार में न जाने के कारण वे वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं। अब वे नए फसल को रोपने और उसके लिए फर्टिलाइजर की भी व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। वहीं वियतनाम ने भी चावल निर्यात करने से मना कर दिया है, तो वहीं थायलैंड ने भी चिक़ेन एग का निर्यात बंद कर दिया है।

वहीं, अफ्रीकी देश भी टिड्डे की समस्या के कारण खेती नहीं कर पा रहे हैं जिससे वहाँ का खाद्य उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। पिछली बार जब अफीकी देशों में स्वाइन बुखार फैला था तब चीन में खाद्य पदार्थ के दामों में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली थी। ऐसे में अफ्रीका से भी चीन को मदद नहीं मिलने वाली है।

हालांकि, चीन स्वयं विश्व की 22 प्रतिशत आबादी को खिलाता है और कुछ मामलों में आत्म निर्भर है और चावल गेहूं और कॉर्न का 95 प्रतिशत चीन में ही उत्पादन होता है। लेकिन चीन अपने सोयाबीन दूध और चीनी के 80 प्रतिशत आपूर्ति के लिए इंटरनेशनल मार्केट पर निर्भर है। चीन में मीट की खपत भी बढ़ी है जिसके कारण सोयाबीन की खपत में बढ़ोतरी देखने को मिली जिसे जानवरो को खिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अब कोरोना ने इस चेन को रोक दिया है।

कोरोना वायरस ने वैश्विक फूड चेन को इस प्रकार से प्रभावित किया है कि चीन जैसे देश की आबादी के लिए खाना जुटाना गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। चीन के किसान से लेकर अधिकारी तक कोरोना से जूझ रहे हैं। यही नहीं चीनी सरकार ने जिस तरह से अन्य देशों को खराब मास्क और नकली मेडिकल टेस्टिंग किट दे कर अपना संबंध खराब किया  है उससे आने वाले समय में भी चीन कि राहत नहीं मिलने वाली है। यही वजह है कई विशेषज्ञ भी चीन में खाने की भारी कमी होने की आशंका जाता रहे हैं जिससे चीन की आबादी भूखे रहने को मजबूर हो जाएगी।

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