जब जानेंगे साबूदाने की ये सच्चाई, तो व्रत में इसे हाथ तक नहीं लगाएंगे

हिन्दू परिवारों में ‘साबूदाना’ का नाम तब सुनने को मिलता है जब कोई व्रत-त्यौहार आने वाला होता है। क्योंकि यह एक ऐसी खाद्य सामग्री है जिसे व्रत का आहार माना जाता है।ज्यादातर घरों में व्रत या उपवास में फलाहार में लोग साबूदाना का उपयोग करते हैं उपवास में लोग साबूदाना के हलवा ,खिचड़ी बनाकर इस्तेमाल करते है व्रत के दौरान साबूदाना का प्रयोग जोरो-शोरों से किया जाता है। व्रत नवरात्रि का हो या कोई भी, साबूदाना एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसे व्रत का ही भोजन माना गया है।

और इसीलिए इसे पूर्ण शाकाहारी एवं व्रत के नियमों के अनुसार सात्विक भोजन है। लेकिन अगर हम कहें कि वर्षों से व्रत के दौरान खाया जा रहा साबूदाना शाकाहारी नहीं, बल्कि मांसाहारी है तो क्या आप यकीन करेंगे?

व्रत में इस्तेमाल किया जाने वाला साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह सफ़ेद और गोल होते हैं। यह सैगो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है। पकने के बाद यह अपादर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है। भारत में साबूदाने का उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। सूप और अन्य चीज़ों को गाढ़ा करने के लिये भी इसका उपयोग होता है।

शुरुआती तौर पर देखें तो साबूदाना पूरी तरह से प्राकृतिक वनस्पति है। क्योंकि यह सागो पाम के एक पौधे के तने व जड़ में पाए जाने वाले गूदे से बनाया जाता है। लेकिन बाजार में मिलने वाले साबूदाने के निर्माण की जो पूरी प्रक्रिया होती है उसके बाद ये कहना गलत हो जाता है कि ये वानस्पतिक है। क्योंकि इसकी निर्माण प्रक्रिया में ही साबूदाना मांसाहारी हो जाता है।खासतौर पर साबूदाना तमिलनाडु की कई बड़ी फैक्टरियों से बनकर आता है |दरअसल तमिलनाडू में बड़े पैमाने पर सगो पाम के पेड़ हैं इसिलिये तमिलनाडु को सबसे बड़ा साबूदाने का स्त्रोत माना गया है |

साबूदाने का एक पेड़ होता है और इसी की जड़ का गूदा निकालकर साबूदाना बनाया जाता है. केरल वाले इसको कप्पा कहते हैं. मजे की बात ये है कि ये खाया तो सबसे ज्यादा उत्तर भारत में जाता है और पैदा होता है दक्षिण भारत में. वैसे तो स्मार्ट टेक्नोलॉजी के वक्त ये दूरी कुछ नहीं है.लेकिन बनते-बनते इसकी दुर्गति हो जाती है. कचूमर निकल जाता है.कायाकल्प हो जाता है. जड़ें काटकर, ट्रकों में लादकर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक की फैक्ट्रियों में पहुंचता है. वहां उसके साथ कांड शुरू होता है.

छीलकर मेन चीज निकाल ली जाती है. वो फैक्ट्रियों में कई चक्कर घिसकर, कटकर महीन टुकड़ों में बंट जाता है. फिर उसे पानी में डालकर बड़े-बड़े खुले टैंकों में रखा जाता है. बस इसी जगह सारी छीछालेदर हो जाती है. यहां पड़ा-पड़ा वो फूलता है. सड़ता है. इसमें तमाम कीड़े पड़ जाते हैं.

वही कीड़े साबूदाने को लज़ीज़ बनाते हैं भाईसाब. बहुत दिनों तक उन खुली टंकियों में रखने के बाद उसे दानेदार बनाते हैं. पॉलिश करते हैं और बोरों में भरकर पैकिंग के लिए भेज देते हैं. जो मन्नू किराना स्टोर पर पहुंचता है. वहां से आपके घर, किचन से होकर प्लेट में.वैसे खास बात ये है कि ये मांसाहारी नहीं होता. अमा कीड़ों के न हड्डियां होती हैं न मांस, न खून.

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें