जर्जर होती अपनी अर्थव्यवस्था को देखते हुए अब कम्युनिस्ट चीन गिड़गिड़ा रहा है

अमेरिका के चुनाव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की हार के आसार को देखते हुए अब चीन ने एक बार फिर से अपनी बाहें फैलाना शुरू कर दिया है और सबसे पहले उसके निशाने पर EU है। EU को हाथ से निकलता देख अब चीन ने उससे संधि करने और सभी गिले-शिकवे भुला कर फिर से सम्बन्धों को बढ़ाने का आग्रह किया है।SCMP की रिपोर्ट के अनुसार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जर्मनी और यूरोप से चीनी कंपनियों के लिए खुले रहने का आग्रह किया है। यही नहीं उन्होंने EU के साथ इसी वर्ष एक सौदा करने का आश्वासन दिया है, जिससे यूरोपीय व्यवसायों की चीनी बाजार में अधिक पहुंच बढ़ सके। बता दें कि चीनी कंपनियाँ यूरोप के बाज़ारों का भरपूर इस्तेमाल करती थी लेकिन यूरोपीय कंपनियों को चीन के बाजार का पूरा ऐक्सेस नहीं था जिसके बाद EU ने चीन की कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया था।

रिपोर्ट के अनुसार शी जिनपिंग ने मंगलवार को जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के साथ फोन पर बातचीत की । चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक जिनपिंग ने फोन के दौरान कहा कि, “हमें उम्मीद है कि जर्मनी और यूरोपीय संघ चीनी कंपनियों के लिए खुले रहेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि,”चीन और यूरोपीय संघ को पारस्परिक रूप से एक दूसरे के लिए सम्मानजनक होने का प्रयास करना चाहिए और मुख्य विषयों को बातचीत से हल करना चाहिए।”बता दें कि यूरोपीय संघ चीनी सरकार के स्वामित्व वाले उद्यमों और सरकार की सहायता प्राप्त करने वाली अन्य कंपनियों के खिलाफ अपने बाजार के व्यापार रक्षा तंत्र को मजबूत करने के तरीकों पर विचार-विमर्श कर रहा है। EU के इस कदम को चीनी व्यवसायों और कंपनियों को लक्षित करने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है।

यही नहीं यूरोपीय संघ के सदस्य देश 5G सुरक्षा के विवादास्पद मुद्दे से भी विचार कर रहे हैं, जिसमें अधिक से अधिक देश चीन की हुवावे टेक्नोलॉजीज पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का समर्थन कर रहे है। इन फैसलों में हालांकि जर्मनी एक अपवाद रहा है, शायद यही वजह है कि शी जिनपिंग अपने इस संधि प्रस्ताव को जर्मनी से ही शुरू करना चाहते हैं।

चर्चा के दौरान, शी ने मर्केल को यह भी बताया कि बीजिंग इस साल यूरोपीय संघ के साथ चल रहे निवेश समझौते की बातचीत को अंतिम रूप देना चाहता है। उन्होंने कहा कि चीनी आर्थिक विकास से जर्मनी को फायदा होगा, जो चीन में यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा निवेशक है।

हालांकि, इन निवेश समझौते में अब EU अपनी शर्तों के लिए भी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है जिससे यूरोपीय कंपनियों को चीन के बाजार का फायदा मिल सके। जिस तरह से चीन अपनी जोड़-तोड़ वाली आर्थिक नीतियों से अन्य देशों को अपने जाल में फँसाता है, अब EU चीन के इस हरकत से सावधान हो चुका है। यूरोपियन चैंबर ऑफ कॉमर्स भी चीन को अपनी कंपनियों को सब्सिडी न देने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने की मांग कर रहा है। यह प्रमुख संस्था यह भी चाहती है कि चीन अपने FDI नियमों को हल्का करें क्योंकि चीनी अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा हुआ है।

चीन में यूरोपीय संघ के राजदूत, Nicolas Chapuis ने चीनी बाज़ारों में व्याप्त भेदभाव को दर्शाते हुए कहा था, “हमें वास्तविकता और वादों के बीच के अंतर को समाप्त करना होगा।” उन्होंने सवाल किया कि, “क्यों हुवावे की यूरोप के बाज़ारों में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है… और क्यों दो यूरोपीय 5G कंपनियों एरिकसन और नोकिया की चीन के बाजार में केवल 11 प्रतिशत हिस्सेदारी है? आखिर समस्या क्या है?”

यही नहीं यूरोपीय संघ की दो प्रमुख शक्तियां- फ्रांस और जर्मनी, Indo-Pacific क्षेत्र में भारत केन्द्रित योजना बना रहे हैं, जो बीजिंग की महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ है। वहीं अन्य यूरोपीय देश भी चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन और आक्रामकता की आलोचना कर रहे हैं।

साथ में अभी जिनपिंग, मर्केल से बातचीत कर संधि करना चाहते हैं क्योंकि मर्केल के बाद कोई भी नेता उनकी नहीं सुनने वाला है। एक बार मर्केल सत्ता से बाहर हुई तो उसके बाद, यूरोपीय संघ में कोई भी नेता चीन के साथ नीतियों पर सभी देशों को एक साथ लाने में सक्षम नहीं होगा। जर्मनी की चेयरमैनशिप अगले साल जनवरी में समाप्त होने जा रही है और मर्केल खुद अगले साल जर्मन चांसलर के पद से हटने जा रही हैं। मर्केल के सत्ता से बाहर होने के बाद कोई भी चीन की परवाह नहीं करेगा। यही कारण है कि निराश चीन अब जल्द से जल्द उनके रहते EU के साथ अपने रिश्तों को फिर से सुधारने के लिए संधि के लिए बेकरार है।

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