…तो क्या पहली बार बिहार में कोई भाजपा का मुख्यमंत्री बनने वाला है!

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भारतीय राजनीति भी बड़ी विचित्र चीज है। रंक कब राजा बन जाए और राजा कब रंक, पता ही नहीं चलता। अब खबर आ रही है कि नीतीश कुमार जल्द ही बिहार मुख्यमंत्री का पद त्यागकर केंद्र सरकार में अपनी सक्रियता बढ़ा सकते हैं।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में सुशील मोदी के राज्यसभा चुनाव हेतु नामांकन को अटेंड करके आए नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, “अब चूंकि वे [सुशील मोदी] राज्यसभा जा रहे हैं तो उन्हे ढेर सारी बधाई। मैं आशा करता हूँ कि वे ऐसे ही अपनी सेवाएँ देते रहेंगे और जल्द ही वे राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम भूमिका भी निभाएंगे।”

उन्होंने आगे कहा, “हम दोनों ने साथ में मिलकर काम किया था, और हमारी इच्छाएँ सभी को पता हैं। पर हर पार्टी को कुछ निर्णय लेने पड़ते हैं, और अगर वे उन्हे केंद्र में ला रहे हैं तो ये तो बड़ी खुशी की बात है”।

यहां पर स्पष्ट दिखाई देता है कि नीतीश कुमार सुशील मोदी के बिहार से जाने से कितने दुखी हैं। कहने को सुशील मोदी भाजपा के नेता हैं, लेकिन जब वे बिहार के उपमुख्यमंत्री थे तो उनकी वफादारी नीतीश के प्रति ज्यादा थी। परंतु बिहार चुनाव में पासा पलटा, और भाजपा ने एनडीए की सरकार में वापसी करते हुए JDU से अधिक सीटें जीती, तो एक अहम निर्णय में भाजपा की ओर से तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बिहार के उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया। बता दें कि बिहार चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें जीती, जिसमें पहली बार जनता दल [यूनाइटेड] को भाजपा से कम सीटें मिली, और वह केवल 49 सीटों पर विजय प्राप्त कर पाई।

लेकिन शायद नीतीश कुमार के विचारों पर बहुत कम पत्रकारों ने ध्यान दिया। जब उन्होंने कहा कि वे सुशील मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में एक अहम भूमिका निभाते हुए देखना चाहते हैं, तो वे केंद्र सरकार में अपनी सक्रियता बढ़ाने की ओर भी कहीं न कहीं इशारा कर रहे हैं, क्योंकि जहां सुशील मोदी, वहीं नीतीश।इसका क्या अर्थ हो सकता है? हालांकि, अभी कुछ भी उचित नहीं होगा, लेकिन यदि नीतीश कुमार का संकेत स्पष्ट है, तो इसका अर्थ है कि वे जल्द ही बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ सकते हैं, और केंद्र सरकार में अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। इससे पहले उन्होंने 1999 में एनडीए सरकार में अपनी सक्रियता बढ़ाई थी, और कुछ समय के लिए वे रेल मंत्री भी रहे थे।

ऐसे में इस निर्णय का एक अर्थ यह भी है कि इतिहास में पहली बार भारतीय जनता पार्टी का कोई व्यक्ति बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ भी ले सकता है। हालांकि, ये वाकई में सत्य सिद्ध होता है या नहीं, ये तो भविष्य के गर्भ में है। परंतु जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने सुशील मोदी के राज्यसभा में नामांकित होने के पश्चात केंद्र सरकार में अपनी भूमिका की ओर संकेत दिए हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि वे संभवत बिहार के मुख्यमंत्री पद को त्याग भी सकते हैं।

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