पानी की बोतल 10 रुपए में बेच रहा था लड़का, एक मुसाफिर बोला- 7 में देगा? और फिर..

रेलवे स्टेशन की एक घटना है. एक सज्जन बैठे हुए थे खिड़की के बिलकुल पास में और पास से कई सारे पकौड़े वाले, बिस्किट वाले और पानी वाले गुजर रहे थे. तभी वहाँ से एक लडका गुजरा जो चिल्ला रहा था. पानी ले लो.. पानी ले लो.. खिड़की के पास में बैठे व्यक्ति ने पूछा पानी की बोतल कितने की दी? इस पर लड़के ने कहा 10 की बोतल है साब. जवाब देते हुए व्यक्ति ने कहा 7 रूपये देगा क्या बोतल? इस पर लड़के ने उस व्यक्ति की तरफ देखा, फिर हल्का सा मुस्कुराया और वहां से पानी पानी चिल्लाते हुए चला गया.

उसी ट्रेन के डिब्बे में सामने वाली खिड़की पर दूसरा आदमी इस पूरी घटना को देख रहा था. वो ये सब देखकर के आवाक रह गया और उसके दिमाग में आया कि आखिर वो लड़का मुस्कुराया क्यों? जब कोई कम पैसे बोलता है तो उसे तो गुस्सा आना चाहिए क्योंकि सबको मालूम है कि पानी तो दस का मिलता है. इस पर वो उतरकर के भागके गये और उस लड़के से पूछा कि तुम हँसे क्यों?

इस पर लड़के ने सीधा सा जवाब दिया, उन सेठ को पानी पीना ही नही था. जिनको प्यास लगती है वो पहले मुझसे पानी मांगते है और फिर पूछते है कितना पैसा हुआ? ये पहले पैसे का मोल भाव कर रहे थे यानि उनको पानी की जरूरत ही नही थी. अब अगर मैं उनसे बहस करूंगा कि पानी तो दस का ही आता है तो मेरा टाइम खराब होता, इससे अच्छा दो बोतल दूसरो को बेच दूंगा. लकड़े की बात सुनकर के वो बहुत ही प्रभावित हुए और वापिस आकर के बैठ गये

जिन्दगी में बिलकुल इसी तरह के ही मेनेजमेंट की जरूरत होती है. इन्सान इधर उधर की बातो में उलझा रह जाता है और ऐसे में वो अपने मूल लक्ष्य से भटक जाता है और फिर जब तक उसे महसूस होता है कि अब तो देर हो गयी है तब तक उसके सारे ग्राहक और ट्रेन निकल चुकी होती है.

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