बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार भी निभाई जा रही है रिश्तेदारी

बिहार में तीन चरण में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। जीत और हार का फैसला तो 10 नवंबर को होगा लेकिन टिकट वितरण में इस बार भी हर बार वाला भाई भतीजावाद नजर आ रहा है। बुजुर्ग नेताओं द्वारा अगली पीढ़ी को स्थापित करने के नाम पर या फिर बाहुबल छिपाने के नाम पर या फिर जातीय समीकरण को देखते हुए इस बार के चुनाव में रिश्तेदारी काफी महत्वपूर्ण दिख रही है। नेताओं ने इस बार बेटे-बेटी, भाई बहन सभी तरह के रिश्तेदारों को टिकट दिए हैं। किसी दल ने मां-बेटे को तो किसी ने समधियों को टिकट दिया है।

खूब निभाई रिश्तेदारी

राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने अच्छी-खासी संख्या में रिश्तेदारों को मैदान में उतारा है। हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने तो दामाद और समधन तक का ख्याल रखा है। बिहार विधानसभा चुनाव में परिवारवाद के नाम पर लगभग हर तरह के रिश्ते इस बार मैदान में हैं। किसी जगह पर इनका आपस में ही मुकाबला हो रहा है तो कहीं पर वो अलग-अलग जगहों पर टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं।

राजद में लालू प्रसाद के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव इस बार भी चुनाव मैदान में हैं।  इसके अलावा पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल, विजय प्रकाश की बेटी दिव्या प्रकाश, कांति सिंह के बेटे ऋषि यादव, श्रीनारायण यादव के बेटे ललन कुमार, क्रांति देवी के बेटे अजय यादव, दुष्कर्म कांड में आरोपित अरुण यादव की पत्नी किरण देवी, रेप केस के आरोपित राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा यादव जैसे कई नामों को अपना उम्मीदवार बनाया है। पार्टी ने तो दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के आरोपितों के रिश्तेदारों से परहेज तक नहीं किया।

बच्चों के सहारे राजनीति

वहीं जेडीयू ने जयंत राज, सीता देवी, मीना कामत, डॉ. कौशल किशोर, जयवर्धन यादव, निखिल मंडल, पूर्णिमा यादव जैसे नामों को उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह कांग्रेस ने भी परिवारों में खूब टिकट बांटें हैं। वहीं लोजपा की बात करें तो वो तो वैसे भी परिवार की ही पार्टी कही जाती है। मांझी ने भी अपने दामाद और समधन तक को मैदान में उतार दिया। बिहार के कई समाचार पत्रों में एक साथ विज्ञापन देकर सीएम कैंडिडेट बनी प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया भी खुद जेडीयू नेता और विधान पार्षद विनोद चौधरी की बेटी ही है।

भाजपा ने लगाई लगाम

दरअसल पुराने नेता अपनी राजनीतिक विरासत को सौंपने के लिए ऐसी व्यूह रचना करते हैं कि पार्टी भी उनके सामने झुक जाती है। दांव-पेंच के माहिर इन नेताओं की सजाई फील्डिंग के आगे प्रतिद्वंदी का टिकना वाकई मुश्किल होता है। दरअसल उनका उद्देश्य अपने जीवन काल में बच्चों को स्थापित कर देना होता है। हालांकि भाजपा ने इस बार पार्टी के अंदर परिवारवाद पर काफी कमी दिखाई है। कोशिश तो कई नेताओं ने की लेकिन पार्टी ने नहीं सुनी। यही वजह रही कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे की मंशा भी पूरी न हो सकी। उनके बेटे की जगह पार्टी ने भागलपुर में दूसरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया।

राजनीति विरासत में मिली है

इन सब के अलावा कई ऐसे नाम भी हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है। जैसे पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी के बेटे फराज फातमी, पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद के बेटे मनोज सहनी, पूर्व परिवहन मंत्री आरएन सिंह के बेटे डॉ. संजीव, पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह के बेटे अजय और सुमित, पूर्व मंत्री उपेंद्र प्रसाद वर्मा के बेटे जयंत वर्मा, पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के बेटे चंद्रिका राय भी शामिल है।

अब अपनी विरासत को बचाने के लिए ये सब किसी न किसी तरह से मैदान में है। इस बार कोई ऐसा रिश्ता नहीं दिख रहा जो चुनाव मैदान में न दिख रहा हो। मां-बेटे के रिश्ते का सबसे नायाब उदाहरण बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद के रूप में हैं। वहीं सीवान में तो दो समधी ही आमने-सामने हैं। ये भाजपा से ओमप्रकाश यादव और राजद से अवध बिहारी चौधरी।

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