महाभारत युद्ध के विधवाओं का क्या हुआ था ?

महाभारत युद्ध पौराणिक युग में लड़ा गया सबसे बड़ा युद्ध था जिसमे लाखों की संख्या में योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध की विभीषिका ने सम्पूर्ण भारतवर्ष को लगभग योद्धा विहीन कर दिया। कुरुक्षेत्र में भाग लेने वाले सभी योद्धा पुरुष थे लेकिन दर्शकों क्या आप जानते हैं की युद्ध के बाद वीरगति को प्ऱप्त हुए सैनिकों की पत्नियों का क्या हुआ। आइये मिलकर जानते हैं।क्या हुआ था महाभारत युद्ध के विधवाओं का?

युधिष्ठिर का राज्याभिषेक

इस कथा का वर्णन महाभारत ग्रन्थ के आश्रमवासी पर्व के तैंतीसवें अध्याय में पढ़ने को मिलता है। कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात् पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर का हस्तिनापुर के नरेश के रूप में राज्याभिषेक हुए। उसके पश्चात पांचों पांडव राज-काज के साथ साथ अपने ज्येष्ठ पिताधृतराष्ट्र,बड़ी माँ गांधारी और माता कुंती की दिन रात सेवा किया करते थे। पांडवों की सेवा से धृतरष्ट्र और गांधारी धीरे-धीरे अपने पुत्रों के शोक से बाहर आ गए। इसी तरह पंद्रह वर्ष का समय बीत गया। तब एक दिन धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से कहा हे युधिष्ठिर अब हम अपना बचा हुआ जीवन वन में बिताना चाहते हैं। इसलिए हमें जाने की आज्ञा दो। अपने ज्य्ष्ठ पिता की बातों को सुनकर युधिष्ठिर दुखी हो गए.परन्तु विदुर के समझने पर उन्होंने धृतराष्ट्र सहित गांधारी,माता कुंती और विदुर को वन जाने की आज्ञा दे दी।उसके अगले दिन धृतराष्ट्र,गांधारी.कुंती,विदुर और संजय सन्यासी का रूप धारण कर वन को प्रस्थान कर गए। 

पांडवों का अपनी माता से मिलना 

उसके पश्चात् पांचों पांडव अब हर समय अपने प्रजा की सेवा में लगे रहते। पांडवों की सेवा से हस्तिनापुर की प्रजा तो खुशहाल थी लेकिन अपने युद्ध में विधवा हुई स्त्रियों के शोक में अक्सर रोया करती थी पर इसका आभास अपने राजा को ना होने देती। कुछ समय पश्चात् एक दिन पांडवों में सबसे छोटे सहदेव को माता कुंती से मिलने की इच्छा हुई। सहदेव ने अपनी इच्छा शेष चारों पांडवों से जाकर कहा। सहदेव की बातें सुनकर शेष तीनों पांडव भीम,अर्जुन,नकुल और उनकी पत्नियों के मन में भी माता कुंती से मिलने की इच्छा जागृत हो उठी। यह देख हस्तिनापुर नरेश युधिष्ठिर ने वन जाने के लिए आवश्यक तैयारियां करने का आदेश दे दिया।  

अगले दिन पांचों पांडव द्रौपदी के साथ वन की ओर चल पड़े यह देख हस्तिनापुर की के निवासी भी उनके साथ देख पड़े। उन लोगों में वो विधवा स्त्रियां भी थी जिनके पति महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। वन पहुंचकर पांचों पांडव उस आश्रम में गए जहाँ सभी निवास कर रहे थे। बांकी के हस्तिनापुर निवासी उसी आश्रम के आस-पास निवास करने लगे।

महर्षि वेद व्यास का वन में आना 

कुछ दिन पश्चात् एक दिन महर्षि वेद व्यास उस आश्रम में पांडवों से मिलने आये। परन्तु वहां महर्षि वेद व्यास देखा की पांडव सहित हस्तिनापुर के सभी निवासी भी युद्ध में मारे गए अपने परिजनों के शोक में डूबे हुए हैं। यह देख महर्षि वेद व्यास ने सभी से कहा की आप लोग युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए अपने परिजनों मत करिये। वे सभी स्वर्ग या फिर दूसरे लोकों में सुखी पूर्वक निवास कर रहे हैं। वे सभी अपने-अपने लोकों में अतिप्रसन्न हैं।परन्तु महर्षि वेद व्यास के इन कथनो से भी उनलोगों का शोक दूर नहीं हुआ। तब महर्षि वेद व्यास ने सभी से कहा की अगर आप लोगों को मेरे द्वारा कही गयी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है तो आज रात मैं आप सभी को अपने परिजनों से मिलवाऊंगा। यह सुन पांडवों सहित सभी के चेहरों पर हलकी मुस्कान उभर आई।   

व्यास का विधवाओं को समझाना   

जिस आश्रम के आस-पास सभी निवास कर रहे थे वह गंगा नदी के तट पर स्थित था। शाम को सूर्यास्त होने से पहले महर्षि वेद व्यास सभी को लेकर गंगा के तट पर पहुंचे फिर सूर्यास्त के बाद उन्होंने अपने तपोबल से महाभारत युद्ध में मारे गए सभी योद्धाओं का आवाहन किया। महर्षि के आवाहन से सभी योद्धा एक एक कर गंगा जल से बाहर निकलने लगे। अपने मृत परिजनों को अपने सामने खड़ा देख पांडव सहित हस्तिनापुर के सभी निवासी खुश हो गए। फिर सभी ने अपने परिजनों से बात की। तब जाकर उनहे विश्वास हो गया की उनके बंधु-वांधव मृत्युलोक के सभी कष्टों से मुक्ति पाकर अपने-अपने लोकों में प्रसन्नता पूर्वक निवास कर रहे हैं। तत्पश्चात सभी के मन जो अपने परिजनों के लिए शोक व्याप्त था वह समाप्त हो गया।

विधवाओं का परलोक गमन 

कुछ समय बाद युद्ध में मारे गए योद्धा एक एक कर गंगा जल में डूबकी लगाकर अदृश्य होने लगे। यह देख महर्षि वेद व्यास ने विधवा स्त्रियों से कहा की जो स्त्रियां अपने पति के साथ उनके लोक जाना चाहती है वह गंगा के इस पवित्र जल में अपना जीवन त्याग कर जा सकती है। महर्षि के इतना कहते ही सभी विधवा स्त्रियों ने गंगा के जल डुबकी लगाकर अपने जवान को त्याग दिया और सभी अपने अपने पति के लोक चली गई।  

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