विधवाओं को रंगीन वस्त्र पहनना है मना, क्या आपको सही लगती है ये वजह

ये तो सब जानते है कि हमारे समाज में जितनी भी विधवा महिलाएं है, वो सब केवल सफ़ेद कपडे ही पहनती है. हालांकि विधवा महिलाएं केवल सफ़ेद कपडे ही क्यों पहनती है, इसकी ठोस वजह कोई नहीं जानता. लेकिन हमारे शास्त्रों में कुछ ऐसे कारण बताये गए है, जिन्हे जानने के बाद आप समझ जायेंगे, कि विधवा महिलाओ द्वारा सफ़ेद कपडे पहनने का रिवाज क्यों है.

सबसे पहले तो हम आपको बता दे कि शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है, कि विधवा महिला की दोबारा शादी नहीं हो सकती, इसलिए उनके लिए शास्त्रों में कुछ खास नियम लिखे गए है. जी हां दरअसल शास्त्रों के अनुसार पति को ही परमेश्वर माना जाता है और जब जीवन से परमेश्वर का अंत हो जाता है, तो महिला को भी संसार का हर माया मोह त्याग कर सादा जीवन व्यतीत करना पड़ता है. इस दौरान महिला को केवल भगवान् में मन लगाने की अनुमति दी जाती है.

गौरतलब है कि विधवा महिलाओ का ध्यान कही दूसरी तरफ न भटके, इसलिए उन्हें सफ़ेद वस्त्र पहनने को कहा जाता है. वो इसलिए क्यूकि रंगीन कपडे भौतिक सुविधाओं की याद दिलाते है. यही वजह है कि उन्हें सफ़ेद कपडे ही पहनने पड़ते है. वही अगर भोजन की बात करे तो आज भी हमारे समाज में विधवा महिलाओ को सात्विक भोजन ही खाना पड़ता है. जी हां वो अपनी मर्जी से पहन और खा नहीं सकती है. दरअसल विधवा महिलाओ को तला और भूना हुआ, मांस और मछली आदि सब खाने से इसलिए मना किया जाता है, क्यूकि ऐसा भोजन काम भावना को बढ़ाता है. यही वजह है कि विधवाओं को ऐसा भोजन दिया ही नहीं जाता.

इसके इलावा देश में आज भी ऐसी कई जगहे है, जहाँ विधवा महिलाओ के बाल काट दिए जाते है, क्यूकि ऐसा कहा जाता है कि बाल यानि केश ही महिला का असली श्रृंगार होता है और यही उसकी खूबसूरती को बढ़ाता है. ऐसे में किसी दूसरे पुरुष की नजर उसकी सुंदरता पर न पड़े, इसलिए उस बेचारी के बाल काट दिए जाते है और इसी तरह बिना रंगो के उनका पूरा जीवन निकल जाता है. ऐसे में इन महिलाओ के जीवन में उदासी के सिवाय कुछ नहीं बचता, पर हमारे समाज को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

हमारे शास्त्रों ने ये तो बता दिया कि अगर महिला विधवा हो जाएँ तो उसे कैसा जीवन जीना चाहिए, पर शायद हमारे शास्त्र ये बताना भूल गए कि यदि किसी पुरुष की पत्नी मर जाए तो उसका जीवन कैसा होना चाहिए. जी हां जहाँ हमारे समाज में विधवाओं को साँस भी पूछ कर लेनी पड़ती है, वही पुरुषो की खुलेआम दूसरी शादी तक कर दी जाती है, क्या इसके लिए हमारे शास्त्र इजाजत देते है? आपको क्या लगता है क्या ये दोहरा नियम सही है ?

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें