सरकार ने बैंकों से माँगा जवाब- दो लाख करोड़ रुपये दिए थे उसका क्या किया…

घरेलू मांग में कमी को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि वित्त मंत्रालय ने सरकारी क्षेत्र के बैंकों से पूछा है कि उन्हें इस वर्ष दो लाख करोड़ रुपये की जो पूंजी दी गई है, उसका क्या किया गया है। खासतौर पर इसका कितना हिस्सा छोटे व कमजोर गैर- बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को दिया गया है। इस बारे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों को कहा है कि वह अगले हफ्ते पूरे डाटा के साथ उनके साथ बैठक करे। इस पूरी कवायद का उद्देश्य यही है कि छोटी एनबीएफसी की फंडिंग की समस्या खत्म हो, ताकि वे आम जनता में ज्यादा कर्ज का वितरण करें और मांग बढ़े।

वित्त मंत्री ने बताया कि छोटे और नॉन-टिपल ए रेटिंग वाले एनबीएफसी के दल ने उनसे मुलाकात की थी और फंड की दिक्कतों के बारे में बताया था। इस बारे में बैंकों से पूछा गया है कि पिछले एक वर्ष के दौरान उन्होंने टिपल ए रेटिंग वाली एनबीएफसी को कितनी और इससे कम रेटिंग वाली एनबीएफसी को कितनी फंडिंग की है। बैंकों को इसका डाटा उपलब्ध कराने को कहा गया है, ताकि हालात की समीक्षा की जा सके। असल में वित्त मंत्रालय यह जानना चाहता है कहीं बैंकों ने अपना कर्ज वितरण सिर्फ शीर्ष 50 एनबीएफसी तक ही नहीं समेट रखा है।

सरकार की इस चिंता की वजह यह भी बताई जा रही है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान कर्ज की रफ्तार बढ़ाने की कोशिशों का बहुत ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। छोटे स्तर पर ग्राहकों को कर्ज देने का काम एनबीएफसी करती हैं और एनबीएफसी को फंड बैंक उपलब्ध कराते हैं। एनबीएफसी की फंडिंग की समस्या वैसे पिछले दो वर्षों से चल रही थी लेकिन जब से आइएलएंडएफएस का संकट सामने आया है तब से बैंकों की तरफ से बहुत ज्यादा सावधानी बरती जाने लगी है। देश में ऑटो, रियल एस्टेट की मौजूदा समस्या की मुख्य वजह भी यही बताई जा रही है कि एनबीएफसी को बैंकों की तरफ से कर्ज नहीं मिल रहा है। इसलिए वे ग्राहकों तक कर्ज पहुंचा नहीं पा रहे हैं।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें