बिहार चुनाव : उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया, देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

बिहार चुनाव

-महाराष्ट्र का फार्मूला दोहराने के मसूंबो पर पानी फिरा
-यूपी में विपक्षी दलों का जोश भी हुआ ठंडा
-बिहार में चैथी बार फेल हुआ एक्जिट पोल

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। उल्टी हो गयी सब तद्बीरे कुछ न दवा ने काम किया,देखा इस बीमारे दिल ने आखिर काम तमाम किया, मशहूर शायर मीरतकी मीर के शेर की यह पंक्तियां आखिकार बिहार मे चरितार्थ हुई। महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनने से उत्साहित विपक्ष की बिहार में राजग गठबंधन को शिकस्त देने तथा अपनी सरकार बनाने के मंसूबो पर आखिर पानी फिर गया। बिहार में पिछले पन्द्रह साल से सत्तारूढ़ जेडीयू और भाजपा गठबंधन सरकार से दोचार होने के लिए वहां के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव की घोषणा के बाद से ही शानदार प्रदर्शन करने की गरज से ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया था। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजद के साथ कांग्रेस सहित कुछ अन्य छुटभैय्ये दल भी इस महागठबंधन में शामिल हो गए थे।

बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस बार वहां महागठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा थे। चुनाव में बाजी मारने की गरज से उन्होंने सरकार बनते ही दस लाख लोगों को रोजगार देने और स्वास्थ्य सेवाओं में लगी सेविकाओं को नियमित करने जैसी कई लोकलुभावन घोषणाएं कर दी थी। उसके बाद से लग रहा था कि इन प्रलोभनों के साथ पिछड़ा दलित और मुस्लिम वोटबैंक मिलकर बिहार में सत्तापरिवर्तन करके रहेगा,लेकिन राजनीतिक पंडितों के सारे अनुमान बेमानी साबित हुए। इस बार चुनाव में राजद के युवा नेता तेजस्वी यादव ने प्रचार अभियान से अपने पिता लालू यादव और मां राबड़ीदेवी को दूर ही रखा था।

वे स्वयं अपने आप और महागठबंधन के बाकी नेताओं के साथ सभाओं में थे। इस बार बहुमत का जादुई आंकड़ा पाने की गरज से उन्होंने कोई कोरकसर नहीं उठा रखी थी,सारे टोटके इस्तेमाल किए उसके बाद भी बिहार का किंग बनने का उनका सपना साकार नहीं हुआ। पोलिंग बूथ पर पहुंचे मतदाताओं ने जो फैसला सुनाया उससे यह साफ हो गया कि वहां की जनता अभी बिहार में लालूराज में हुए जंगलराज का भूली नहीं थी इसलिए उसे फिलवक्त नीतीश कुमार और राजगठबंधन ही बेहतर विकल्प लगा। इसी के साथ महागठबंधन की राजग का विकल्प बनने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई। लेकिन एक बात यह भी रही पिछली बार की अपेक्षा इस बार महागठबंधन का प्रदर्शन पहले से बेहतर रहा। तीन चरणों के मतदान के बाद जो एक्जिट पोल आए उसने महागठबंधन को आगे क्या दिखाया बिहार सहित पूरे देश में भाजपा विरोधी सारे दलों और गठबंधनों में की बांछे खिल गयी थी।

यह चैथा मौका था जब बिहार में एक्जिट पोल पूरी तरह से गलत साबित हुए। इससे पूर्व वर्ष २००५ और २०१० और २०१५ में हुए चुनावों में भी जो एक्जिट पेाल दिखाए गए थे वे भी पूरी तरह गलत साबित हुए थे। इस बार के एक्जिट पोल से यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और उसके नेता तो ऐसे बल्लियों उछलने लगे मानों बिहार के चुनाव नतीजों के साइड एफेक्ट यहां तक दिखाई देंगे। लेकिन शाम तक आए नतीजों ने सपा नेताओं को भी मायूस किया। बिहार के साथ यूपी के हुए उपचुनाव में सपा ने खासी ताकत झोंक रखी थी लेकिन यहां केवल अपनी ही सीट बचाने में सफल रही। बाद में बाकी सीटों पर हार का ठीकरा सपा नेतृत्व ने योगी सरकार के सिर फोड़ दिया। बात बिहार की, मंगलवार को मतगणना में जब महागठबंधन राजग को पछाड़ कर आगे बढने लगा तो विपक्षी नेताओं को इस बात का भरोसा हो चला था कि महाराष्ट्र के बाद बिहार से भी राजग गठबंधन की विदाई होगी लेकिन विपक्ष के उन मसूंबों पर पानी फिर गया जब दोपहर बाद राजग गठबंधन ने महागठबंधन को पछाडना शुरू किया तो विपक्षी दलों में मायूसी छाने लगी।

बिहार में महागठबंधन इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि सारे मतों की गिनती होने के बाद उनका गठबंधन बहुमत तक पहुंचेगा लेकिन उसकी संभावना भी निर्मूल साबित हुई। हालांकि इस बार जब महागठबंधन मात्र ग्यारह सीटों से बहुमत का आंकड़ा छूने में विफल रहा तो राजग गठबंधन ने १२४ सीटे हासिल करके बहुमत की जादुई संख्या तो हासिल कर ली लेकिन इस बार उसका बहुमत का आंकड़े से उसकी सीटों की संख्या से मात्र दो ज्यादा है। बता दे बिहार में बहुमत का जादुई आंकड़ा १२२ है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें