पहले भी सरकारों के लिए दुश्वारी का सबब बना किसान आंदोलन


-बीरबहादुर और मायावती सरकार से दो चार हो चुका है टिकैत परिवार
-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावों में हारजीत तय करती है किसान पंचायत
-हेलीकाप्टर से महेन्द्र सिंह टिकैत को गिरफ्तार करने पहुंची थी पुलिस
-जातिसूचक टिप्पणी करने पर टिकैत पर भड़क ी थी मायावती
योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। पिछले दो महीनो केन्द्र सहित यूपी और हरियाणा सरकार के लिए दुश्वारी का सबब बने किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे भारतीय किसान यूनियन के मुखिया नरेश टिकैत और उनके भाई राकेश टिकैत से पहले उनके पिता महेन्द्र सिंह टिकैत भी किसान आंदोलनों को लेकर प्रदेश की कई पूर्व सरकारों के लिए दुश्वारी का सबब बन चुके है। यही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौ.चरण सिंह के बाद महेन्द्र सिंह टिकैत को ही किसान अपना रहनुमा मानते है। यहीं नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलोंं की हारजीत में किसानों का एक बड़ा तबका निर्णायक भूमिका निभाता है।

राष्टï्रीय लोकदल के मुखिया अजीत सिंह की भी राजनीति ज्यादातर किसान यूनियन और टिकैत परिवारों के रहमोकरम पर ही निर्भर रही है। मौजूदा कृषि कानून पर चलाए जा रहे आंदोलन के दौरान भी चौ.अजित सिंह के पुत्र और पूर्व सांसद जयंत चौधरी कई बार किसान यूनियन का मंच साझा कर चुके है।गन्ना किसानों के भुगतान से लेकर अन्य मुद्दों को लेकर किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही खड़ा होता है और उसकी अगुवाई टिकैत परिवार ही करता है। यह बात दीगर है कि महेन्द्र सिंह टिकैत के बाद इस यूनियन के कई घटक बन गए है। किसानों के मुद्दों को लेकर महेन्द्र सिंह टिकैत का प्रदेश की पूर्ववर्ती कई सरकारों से टकराव भी हुआ। राजनीतिक जानकारों की माने तो प्रदेश में जब कांग्रेस की बीर बहादुर सिंह के नेतृत्व की सरकार थी तो किसानों के मुद्दों को लेकर ही भाकियू ने बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया था।

शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चार दिन का धरना दिया था। भाकियू मुखिया टिकैत की आव्हान पर एक मार्च 1987 को करमूखेड़ी में ही प्रदर्शन के लिए गए किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फ ायरिंग कर दी। जिसमें एक किसान की मौत हो गयी। इसके बाद भाकियू के विरोध के चलते तत्कालीन यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह को करमूखेड़ी की घटना पर खेद जताने के लिए उसी साल की 11 अगस्त को सिसौली आना पड़ा था।

यही नहीं साल १९८८ में मेरठ के मंडल मुख्यालय का घेराव और इस दौरान हुआ उग्र आंदोलन भी सुर्खिया बना था। इसके अलावा रजबपुर तत्कालीन अमरोहा (जेपी नगर) सत्याग्रह के बाद नई दिल्ली के वोट क्लब पर हुई किसान पंचायत में किसानों के राष्ट्रीय मुद्दे उठाए गए और 14 राज्यों के किसान नेताओं ने चौधरी टिकैत की नेतृत्व क्षमता में भरोसा जताया। अलीगढ़ के खैर में पुलिस अत्याचार के खिलाफ आंदोलन और भोपा मुजफ्फरनगर में नईमा अपहरण कांड को लेकर चले ऐतिहासिक धरने से भाकियू एक शक्तिशाली अराजनैतिक संगठन बन कर उभरा। प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार में बिजनौर में किसानों की एक रैली में किसान यूनियन के मुखिया महेन्द्र सिंह टिकेत ने मायावती पर कथित तौर पर जातिसूचक टिप्पणी कर दी।

इसकी गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई दी। जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायाावती ने उस समय अपने प्रमुख सचिव गृह जेएन चैम्बर को महेन्द्र सिंह टिकैत की गिरफ्तारी के आदेश दिए। आनन फ ानन में कोतवाली में टिकैत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद पुलिस गिरफ्तार करने के लिए उनके गांव सिसौली पहुंच गयी। पर जैसे ही किसानों को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने पूरे गांव को घेर लिया और कह दिया बाबा को गिरफ्तार नही होने देगें। पुलिस के खिलाफ किसानों ने ट्रैक्टरों बुग्गी ट्राली से पूरे गांव को ब्लाक कर दिया। हाल यह रहा कि पुलिस गांव में तीन दिन तक घुस ही नहीं पाई। इसके बाद अधिकारियों ने हेलीकाप्टर से उनके घर पहुंचना पड़ा था।

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