कानपुर : देश के लिए 9 गोल्ड मेडल जीतने वाला एथलीट अब मज़दूरी करने को हुआ मजबूर, घरों में कर रहा है वॉल पुट्टी !

जब देश के लिए गोल्ड मेडल जीता तब किसी ने नहीं पूछा, आज जब बंदूक उठा ली तो सब पूछता फिर रहा है’ यह डायलॉग मशहूर फिल्म पान सिंह तोमर का है। एथलीट पान सिंह तोमर ने रंजिश, सिस्टम और मजबूरी में बंदूक उठा ली थी। कुछ ऐसी ही मजबूरी देश को 9 गोल्ड मेडल जीताने वाले कानपुर के एथलीट धनंजय की रही। लॉकडाउन के बाद घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई किसी ने ध्यान नहीं दिया जिसके बाद उन्हें मजबूरन दूसरों के घरों में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर वॉल पुट्टी कर रहे हैं।

लॉकडाउन से कुछ माह पहले हुआ पिता की आंत के ऑपरेशन ने पूरे परिवार की माली हालत खराब कर दी। खिलाड़ी धनंजय लॉकडाउन से पहले एक स्कूल में बच्चों को खेल की ट्रेनिंग देने की नौकरी करते थे। जिससे घर का खर्च और गुजारा ठीक ठाक चल जाता था। पर लॉकडाउन में जब स्कूल कॉलेज बन्द हुआ तो धनंजय के परिवार की आर्थिक हालत इस कदर खराब हुई कि उन्हें दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है।

विजयनगर के जे-2 पार्क वाली गली में रहने वाले एथलीट धनंजय के घर मे माता पिता के अलावा दो छोटे भाई भी हैं। धनंजय व उसके परिवार ने बड़ी दिक्कतें झेलते हुए देश का नाम करने के लिए मेहनत की है। लेकिन उन्हें क्या पता था कि देश के नीति नियंताओं की नजर में उनकी मेहनत किसी लायक नहीं है। नतीजतन लॉकडाउन के बाद परिवार को दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए धनंजय हाथों में ब्रश और वॉल पुट्टी का सामान लिए मजदूरी कर रहा है।

कभी जिन हाथों से विरोधियों को पस्त करने वाले धनंजय ने अब तक देश के लिए राष्ट्रीय व राज्य स्तर के 9 गोल्ड मेडल जिताये हैं। कोरोना संकट के समय रोजगार छिना तो मजबूरन उन्हें यह काम अपनाना पड़ा। धनंजय कहते हैं पिता की बीमारी और घर तथा भाइयों का ख्याल उन्हें यह काम करने को बाध्य कर गया, किसी ने मदद भी नहीं की।

धनंजय को अपने कोच संजीव शुक्ला से काफी कुछ प्रेरणा मिली। घर की हालत ठीक ना होने के बाद कोच ने ही उन्हें एक स्कूल में बच्चों को एथलीट सिखाने की नौकरी दिलाई थी। एक एथलीट की डाइट के बारे में पूछने पर धनंजय मीडिया से कहते हैं ‘उन्हें आज तक कभी भरपूर डाइट ही नहीं मिली। अब अपनी डाइट लें कि घर का खर्च चलाए। पूरे घर का जितना खर्च होता है उनकी एक दिन की डाइट होती है। ऐसे में क्या फायदा है डाइट का। अकेले तो खा नहीं सकता।’

धनंजय के पिता श्रीनिवास से बात करने पर उनकी आंखें व गला भर आता है। अपने रुंधे हुए गले से वो कहते हैं ‘बेटे का शुरू से ही खेल को लेकर रुझान था। हमने अपना पेट काट-काटकर उसे ग्रीनपार्क स्टेडियम में ट्रेनिंग दिलाई। दूसरे शहरों में जब खेलने जाता था तो पड़ोसियों से कर्जा मांग-मांगकर इसे भेजते थे। सोंचता था बेटा देश का नाम रोशन करेगा। कुछ बन जायेगा तो घर की हालत भी सुधर जाएगी और कर्जा भी अदा हो जाएगा। पर लॉकडाउन के बाद तो सब कुछ खतम होता से लग रहा है। सरकार की तरफ से कोई मदद मिली नहीं कभी।

बीती 26 जून को सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने लगभग करोङो लोगों को नौकरी दे डाली है। साथ ही कल यानी 27 जून को हाईस्कूल व एंटरमीडिएट के निकले रिजल्ट में जिन अभ्यर्थियों ने टॉप किया है उन्हें एक-एक लाख रुपये की धनराशि व लैपटॉप राज्य सरकार की तरफ से दिया जाएगा। इसके अलावा परीक्षा में टॉप करने वाले बच्चों के घर के आस पास के चौराहों दुराहों तिराहों का नाम उनके नाम पर रख दिया जाएगा, सड़के नहीं बनी हैं तो बनवा दी जाएगी। ऐसा सरकार ने घोषणा की है। लेकिन ये जो देश के लिए गोल्ड मेडल जीताने वाले हाथ दिहाड़ी मजदूरी और दूसरों के घरों में वॉल पुट्टी कर रहे हैं इनके लिए सरकार संवेदनहीन क्यों हो जाती है। यह सवाल धनंजय के परिवार में लगभग सभी का है जो समाज मे घूम रहा है।

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