( राजकुमार शर्मा )
बाबागंज ( बहराइच ) भारत में करवा चौथ पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसकी खास रौनक उत्तर भारत में देखने को मिलती है। यह प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। करवा चौथ को कर्क चतुर्थी भी कहते है यूँ तो हिन्दू धर्म मे सुहागिन महिलाओं के लिए ढेर सारे व्रत है। लेकिन करवा चौथ का अपने आपमे विशेष स्थान है। खास बात यह है कि इस साल करवा चौथ पर चार अद्भुत संयोग पड़ रहे है। ऐसे संयोग 70 सालो बाद पड़ रहा है। करवा चौथ का व्रत कठिन होता है। क्योंकि व्रत अवधि में जल ग्रहण भी नही किया जाता है। शादी शुदा महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के कामना से इस व्रत को रखती है। इस दिन पूरे विधिविधान से माता पार्वती और भगवान गणेश व कार्तिके की पूजा अर्चना की जाती है और करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात में निश्चित समय पर चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद यह व्रत सम्पन्न होता है। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से अखण्ड सौभाग्य का वरदान मिलता है।। *
करवा चौथ व्रत का महत्व*:-
मान्यता के अनुसार ऐसा मन जाता है कि इस दिन सुहागिन स्त्रियां उपवास रखे तो उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है । हालांकि पूरे भारत वर्ष में हिन्दू धर्म मे आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम धाम से इस त्यौहार को मनाते है। लेकिन कुछ स्थानों पंजाब, हरियाणा , राजस्थान , उत्तर प्रदेश में इसका विशेष महत्व है। इस दिन इन स्थानों पर कुछ और ही नजारा होता है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरू हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला है। सामान्यतः विवाहोपरांत 12 व 16 साल तक लगातार उपवास रखा जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती है।। *
करवा चौथ व्रत में कथा सुनना है जरूरी*:-
करवा चौथ व्रत में जितना महत्व व्रत और पूजा का है उतना ही महत्व करवा चौथ के व्रत की कथा सुनने का भी है। इस व्रत को नियम के साथ ही रखा जाता है। विना व्रत कथा सुने ये व्रत अधूरा माना जाता है। इसलिए महिलाओ को यह आवश्यक है कि पूजा के बाद कथा जरूर सुने।।।*ऐसे करते है व्रत पारण*:- निर्जला व्रत करने के बाद शाम को स्त्रियां पूजा करके चंद्रमा को जल का अर्ध्य देती है।फिर चलनी में चाँद और पति को देखती है और पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है।