केदारनाथ आपदाः सात साल पहले का वह मंजर याद कर आज भी विचलित हो उठते हैं लोग

  • केदारनाथ आपदा में हजारों लोगों ने गंवाई थी जान
  • लोगों के आशियाने तिनके में उजड़े, रोजगार को लेकर भटकते रहे लोग
  • आपदा के बाद केदारनाथ में हेलीकाॅप्टर क्रैश में वायु सेना के जवानों और यात्रियों ने गंवाई जान
  • प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ में हो रहा निर्माण कार्य
  • तीन बड़े प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ में चल रहा कार्य

रुद्रप्रयाग, । आज केदारनाथ आपदा की बरसी है। केदारनाथ आपदा को पूरे सात साल हो चुके हैं। वो आपदा, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और हजारों लोगों ने अपनी जान इस आपदा में गंवा दी। लाखों लोगों का रोजगार छिन गया तो हजारों लोग अपना आशियाना गंवा बैठे। इस आपदा के बाद 2020 में कोरोना महामारी ने केदारघाटी के लोगों को परेशान किया है। ढाई माह से लोग अपने घरों में कैद हैं और रोजगार की आश में परेशान हैं। केदारघाटी की जनता के लिए यह कोरोना भी किसी बड़ी आपदा से कम नहीं है।

वर्ष 2013 की 16/17 जून की रात को केदारनाथ की उस भयावह और प्रलयंकारी आपदा को शायद ही कोई भूल पाया हो। आपदा ने सबकी रूह को कंपा दिया था। केदारनाथ में आपदा ने ऐसा तांडव मचाया कि लोगों के आशियाने तिनकों की तरह चंद मिनटों में उजड़ गए। हजारों लोग इस आपदा का शिकार हो गए। आपदा में कितने लोगों की जान गई, यह सटीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है लेकिन 10 हजार से ज्यादा लोगों के मरने की सूचना पुलिस रिकार्ड में दर्ज है। इस आपदा में देश-विदेश के लोगों ने अपनी जान गंवाई।

केदारनाथ आपदा में केदारघाटी के देवली-भणिग्राम, त्रियुगीनारायण, लमगौंडी के लोगों ने अपनो को खोया। इन गांवों में हर परिवार से एक से दो व्यक्ति की जान आपदा में गई। किसी का तो कमाने वाला ही नहीं रहा। आपदा के बाद सरकारी तौर पर मदद तो मिली, मगर रोजगार को लेकर सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए। प्राइवेट संस्थाओं की ओर से पीड़ितों के आंसू पौंछने का काम किया गया, जो नाकाफी ही रहा। अरविंद गोस्वामी, राकेश चन्द्र और व्यापारी रमेश प्रसाद आदि लोग केदारनाथ की प्रलयंकारी आपदा के चश्मदीद गवाह हैं, जो आज भी उस पल को सोचकर डर जाते हैं।

आपदा के बाद केदारनाथ में हेलीकाॅप्टर हादसे भी हुए, जिसमें वायु सेना के जवानों से लेकर यात्रियों ने अपनी जान गवाईं। साल 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान भी रेस्क्यू करते हुए वायु सेना के एमआइ-17 हेलीकॉप्टर समेत तीन हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुुए थे। इन दुर्घटनाओं में 23 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। गौतरलब है कि केदारनाथ में हुई भारी तबाही के बाद 19 जून को केंद्र सरकार ने वायु सेना को वहां रेस्क्यू की जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद नौ दिनों तक वायु सेना ने केदारनाथ धाम की पहाड़ियों पर रेस्क्यू कर हजारों लोगों की जान बचाई। इस दौरान वायु सेना को नुकसान भी झेलना पड़ा। 25 जून, 2013 को वायु सेना का एमआई-17 हेलीकॉप्टर गौचर से गुप्तकाशी होते हुए आपदा में मारे गए लोगों के दाह-संस्कार को लकड़ी लेकर केदारनाथ पहुंचा था। केदारनाथ में लकड़ी छोड़कर जब वह हेलीकॉप्टर वापस लौट रहा था तो अचानक मौसम खराब हो गया। इस कारण गौरीकुंड के पास दोपहर लगभग दो बजे हेलीकॉप्टर पहाड़ी से टकराकर क्रैश हो गया।

इस हादसे की सूचना शाम साढ़े चार बजे मिल पाई और दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर को ढूंढने में भी दो दिन लग गए। इस हेलीकॉप्टर में सवार सभी 20 लोग काल का ग्रास बन गए थे। इनमें वायु सेना के दो पायलट समेत पांच क्रू-मेंबर, एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा प्रतिवादन बल) के नौ सदस्य और आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के छह सदस्य थे। इस हादसे के मात्र तीन दिन बाद 28 जून को केदारनाथ से दो किमी दूर गरुड़चट्टी के पास एक प्राइवेट हेलीकॉप्टर भी क्रैश हो गया। हादसे में पायलट व को-पायलट समेत तीन लोगों की मौत हो गई थी। यह हेलीकॉप्टर भी राहत एवं बचाव कार्य में लगा हुआ था। इससे पूर्व 19 जून को रेस्क्यू के दौरान जंगलचट्टी में भी एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हालांकि, इस दुर्घटना में किसी प्रकार की जनहानि नहीं हुई।

आपदा के बाद केदारनाथ में पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया गया। सबसे पहले चुनौती गौरीकुण्ड से केदारनाथ पैदल मार्ग को दुरुस्त करने की थी, जिसे 2014 में पूरा किया गया। इसके साथ ही बड़ी-बड़ी मशीनों को धाम में पहुंचाया गया और हेलीपैड, काॅटेज का निर्माण किया गया। इसके बाद वर्ष 2015 में बाॅयो टायलेट, मंदिर के पीछे वीआईपी हेलीपैड और सुरक्षा दीवार, मंदाकिनी नदी व सरस्वती नदी पर घाट निर्माण किया गया। केदारनाथ में पहले तीन-चार सालों तक नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की टीम ने पुनर्निर्माण कार्य किया और इसके बाद जिंदल ग्रुप को पुनर्निर्माण का कार्य सौंपा गया। जिंदल ग्रुप और वुड स्टोन कंपनी केदारनाथ में वर्तमान समय में कार्य कर रहा है। अभी तीन बड़े प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ में कार्य हो रहे हैं। इनमें आदि गुरू शंकराचार्य समाधि स्थल, तीर्थ पुरोहित भवन और आस्था पथ का कार्य चल रहा है।

केदारनाथ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगाध आस्था जुड़ी हुई है। 1980-90 के दशक में पीएम मोदी ने गरुड़चट्टी में तपस्या की थी। उसके बाद वे केदारनाथ आपदा के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए अपने लोगों को हेलीकाॅप्टर के जरिये रेक्स्यू कर सकुशल पहुंचाया और वे देश में एक अलग पहचान बना पाए। प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी अब तक तीन बार केदारनाथ पहुंच चुके हैं और उनके पांच ड्रीम प्रोजेक्ट केदारनाथ में कार्य चल रहे हैं। इनमें से दो प्रोजेक्ट पूरे हो गए है। केदारनाथ धाम में गुफाओं का निर्माण और मंदिर से सरस्वती नदी तक पैदल मार्ग का चौड़ीकरण। दोनों ही कार्य पूरे हो गये हैं, जबकि तीन कार्य शेष हैं। इनमें से शंकराचार्य समाधि स्थल, तीर्थ पुरोहित भवन एवं आस्था पथ का कार्य चल रहा है।

वर्ष 2019 में केदारनाथ धाम की यात्रा ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिए। 2019 में महज डेढ़ महीने की यात्रा में ही 7.35 लाख यात्रियों के दर्शन करने से सभी पुराने रिकार्ड भी टूट गये। पूरे सीजन में दस लाख तीर्थयात्रियों ने बाबा केदार के दर्शन किए। वर्ष 1988 से लेकर 1999 तक करीब एक से डेढ़ लाख यात्री ही प्रतिवर्ष केदारनाथ धाम के दर्शनों को पहुंचते थे जबकि वर्ष 2000 से लेकर 2005 तक यह संख्या बढ़कर प्रतिवर्ष लगभग ढाई से 3 लाख हुई। वर्ष 2006 से यात्रियों की संख्या में इजाफा होने लगा। वर्ष 2020 में लोगों को लगा था कि यात्रा का आंकड़ा 12 लाख पार करेगा, मगर कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष ढाई माह तक यात्रा बंद रही और अब स्थानीय लोगों के लिए यात्रा खोली गई है। महज पांच दिनों में चालीस तीर्थयात्री ही केदारनाथ जा पाए हैं। कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष केदारघाटी के लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा गया है। यह साल भी केदारघाटी के लोगों के लिए किसी आपदा से कम नहीं है।

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