चैत्र नवरात्रि पर बना है महासंयोग, मां की कृपा पाने के लिए रखे इन विशेष व्रतों का ध्यान

मनुष्य जीवन को सफल करने में व्रत की बहुत बड़ी महिमा मानी गई है। भारतवर्ष की संस्कृति बहुत ही गौरवशाली संस्कृति है। सनातन धर्म को मानने वाले लोग सौभाग्यशाली हैं कि अपने जीवन को सार्थक करने का अवसर व्रत एवं उपवास के माध्यम से वर्षभर उन्हे निरंतर प्राप्त होता रहता है। वास्तव में व्रत और उपवास दोनों एक हैं अंतर यह है कि व्रत में एक समय भोजन किया जा सकता है और उपवास में निराहार रहना होता है। सत्य बोलने और प्राणी मात्र में निर्वैर रहने से वाचिक और मन को शांत रखने की दृढ़ता से मानसिक व्रत होता है।

श्रीराम पंचायतन सिद्ध पीठ मानस निकेतन, सहारनपुर के महंत राघवेंद्र स्वामी के अऩुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होने वाले नवरात्र का सनातन धर्म में अपना अलग ही महत्व है। स्त्री हो या पुरुष सभी को नवरात्र का व्रत एवं उपवास अवश्य करना चाहिए। चैत्र के नवरात्र में मां भगवती की उपासना तो अत्यधिक लोकप्रिय है परंतु इन दिनों में भगवान नारायण अथवा प्रभु राम की उपासना भी की जाती है। यही कारण है कि इन्हें देवी नवरात्र के साथ-साथ राम नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है।

युगों युगों से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होने वाले नवरात्र का महत्व एवं पूजन विधि जनमानस अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार करते आ रहे हैं। परंतु इन्हीं चैत्र नवरात्रि की विभिन्न तिथियों में बहुत ही जनोपयोगी व्रत ऐसे हैं जिन्हें करने से नवरात्र की महिमा अनंत गुना बढ़ जाती है। महंत राघवेंद्र स्वामी के अनुसार घट स्थापना का शुभ मुहूर्त चेत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 25 मार्च 2020 को प्रातः 6:19 से 7:17 तक रहेगा।

इन अलग-अलग व्रत से आप अपने जीवन काे कर सकते हैं सुखी

संवत्सर पूजन : संवत्सर का पूजन चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को किया जाता है। इसमें मुख्यतः ब्रह्मा जी व सृष्टि के प्रधान देवी-देवताओं, यक्ष, राक्षस, गंधर्व ऋषियों, नदियों, पर्वतों आदि का पूजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि का आरंभ किया था।

तिलक व्रत : यह व्रत भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। इस व्रत को प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को वर्षभर यदि करा जाए तो भूत, प्रेत, पिशाच आदि की बाधाओं का शमन हो जाता है।

आरोग्य व्रत: यह व्रत भी चैत्र शुक्ल की प्रथमा को किया जाता है। इस व्रत को करने के लिए पहले दिन व्रत करना चाहिए एवं अगले दिन अर्थात एकम तिथि को एक छोटी चौकी पर कमल के पुष्प बिछाकर भगवान सूर्यनारायण का ध्यान करना चाहिए। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूरे वर्ष भर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यदि व्रत को करा जाए तो आरोग्यता प्राप्त होती है।

विद्या व्रत : यदि बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता तो यह व्रत भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ करके वर्षभर प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का व्रत करें एवं 12 वे महीने में गोदान करें तो मां सरस्वती की कृपा से बच्चे में ज्ञान उपार्जन की इच्छा जागृत हो जाती है।

बालेंदु व्रत : यह व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को किया जाता है। इस व्रत को प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया को करने से परिवार में सुख – समृद्धि एवं भाग्य की वृद्धि होती है।

नेत्र व्रत : यह व्रत भी चैत्र शुक्ल की द्वितिया को किया जाता है। वर्ष पर्यंत इस व्रत को करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

दोलनोत्सव : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अयोध्या नरेश भगवान श्री रामचंद्र जी का पूजन करके उनको पालने में विराजमान कर झुलाने से परिवार में यदि कोई विपत्ति है तो दूर हो जाती है।

गौरी तृतीया : चैत्र शुक्ल तृतीया को सौभाग्यवती स्त्रियां इस व्रत को करें एवं दिन भर में मात्र एक बार दूध पिएं तो पति एवं पुत्र का दीर्घ समय का सुख प्राप्त होता है।

गणेश दमनक चतुर्थी : यह चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनायी जाती है। भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिये ‘गणेश दमनक चतुर्थी व्रत’ किया जाता है। इस दिन व्रत रखकर यदि भगवान गणेश का मोदक आदि से पूजन किया जाये तो ऋण संबंधी हर परेशानी दूर हो जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

लक्ष्मी व्रत : सभी प्रकार के दुखों को दूर करने एवं लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए चैत्र शुक्ल पंचमी को यह व्रत किया जाता है।

कुमार व्रत : ईश्वर द्वारा प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ उपहार स्वरूप प्राप्त बुद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि हेतु चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कार्तिकेय का पूजन एवं व्रत किया जाता है।

नाम सप्तमी : चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से वर्षभर शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान सूर्य नारायण के 12 नामों से यदि क्रमानुसार पूजन एवं श्रद्धा पूर्वक व्रत करें तो आयु, आरोग्यता एवं समृद्धि में अप्रत्याशित वृद्धि होती है।

अशोककलिका प्राशन व्रत : जीवन को शोक रहित बनाने हेतु चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अशोक के वृक्ष की पूजा करके व्रत किया जाता है।

राम नवमी व्रत : चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि को भगवान राम के जन्मोत्सव के अवसर पर यदि इस व्रत को रखा जाए तो
सका अमिट फल प्राप्त होता है।

इस प्रकार मां भगवती की साधना के साथ-साथ यदि अपनी विभिन्न मनोकामना की पूर्ति हेतु उपरोक्त व्रतों में से कुछ व्रतों को विशेष रूप से किया जाए तो नवरात्र के पुण्यों में अनंत गुणा वृद्धि हो जाती है।

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