कांग्रेस के लिए अब गढ़ बचाना कड़ी चुनौती, प्रियंका की ‘रणनीति’ पस्त

कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद विधानसभा सत्र में भाग लेने पर  भड़के कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने विधायक अदिति सिंह से इस्तीफे की मांग कर दी। गुस्साए कांग्रेसियों ने उन पर भाजपा की कठपुतली होने का आरोप लगाते हुए उनके कार्यालय के सामने जमकर प्रदर्शन किया। सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी कार्यालय पर इकट्ठा हुए और पास में स्थित विधायक अदिति सिंह के जनसंपर्क कार्यालय पहुंच गए। कार्यकर्ताओं ने अपनी ही पार्टी के विधायक के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाजी की और उन पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया। सभी कार्यकर्ता विधायक के इस्तीफे की मांग वाली तख्तियां लिए हुए थे। कल तक विधायक अदिति सिंह के मामले में चुप्पी साधे नेताओं ने अचानक उनके इस्तीफे की मांग करते हुए जमकर प्रदर्शन किया जिसे कांग्रेस के हाईकमान का निर्देश माना जा रहा है।

कांग्रेस के गढ़ में भाजपा की व्यूह रचना प्रियंका वाड्रा की रणनीति पर भारी पड़ रही है। कांग्रेस को घेरने में जुटी भाजपा ने रायबरेली में कांग्रेस के लिए खासी मुश्किलें पैदा कर दी है। प्रियंका की रणनीति अब उन्हीं पर भारी पड़ रही है। हालांकि इस सबके लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भाजपा के सत्ता के अतिवादी रवैया के साथ-साथ नेताओं की सत्ता लोलुपता को जिम्मेदार मानते हैं।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के एक मात्र बचे गढ़ रायबरेली को बचाने में प्रियंका ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यहां से उन्होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए स्थानीय कद्दावर नेताओं पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने की रणनीति अपनाई, जिसका असर भी दिखा और भाजपा की लहर के बावजूद कांग्रेस ने दो विधानसभा की सीटें यहां से जीत ली। करीब डेढ़ दशक से कांग्रेस से अलग-थलग रहे अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस में शामिल करके प्रियंका ने पार्टी को मजबूत आधार दिया था।

अदिति सिंह पर प्रियंका का भरोसा इतना था कि उन्हें कम समय के अंदर ही राष्ट्रीय महिला कांग्रेस का महासचिव तक भी बना दिया गया। इसके पहले प्रियंका वाड्रा के प्रयास से ही एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को बीएसपी से कांग्रेस में शामिल कराया गया। 2017 के चुनाव में उनके छोटे भाई राकेश सिंह को पार्टी का टिकट भी दिया गया। वह चुनाव भी जीते। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भी दिनेश सिंह के दूसरे भाई अवधेश सिंह की जीत हुई। ऐसे में रायबरेली में कांग्रेस का.फ़ी मजबूत हुई इसके पीछे प्रियंका वाड्रा की रणनीति को माना जाता है।
2014 के लोकसभा चुनाव में इसका असर भी दिखा और सोनिया गांधी को भारी अंतर से जीत मिली। करीब दो वर्षों से जिस तरह भाजपा ने रायबरेली पर अपना ध्यान केंद्रित किया और प्रियंका की ही कद्दावर नेताओं को जोड़ने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। उसमें भाजपा को खासी सफलता मिली और 2018 में एमएलसी दिनेश सिंह भाजपा में शामिल हो गए। इससे कांग्रेस को काफी बड़ा झटका लगा।

पार्टी के विधायक राकेश सिंह केवल तकनीकी रूप से कांग्रेस के रह गए। जिला पंचायत अध्यक्ष भी भाजपाई हो गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश सिंह को भाजपा ने टिकट देकर सोनिया गांधी को कड़ी चुनौती दी और जीत के अंतर को आधे से भी कम कर दिया। अब कांग्रेस के बचे एक मात्र विधायक अदिति सिंह की बगावत से पार्टी के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा हो रही है। भाजपा ने जिस तरह से रायबरेली में अपनी व्यूह रचना की है। उसमें कांग्रेस के लिये अपने गढ़ को बचाना कठिन होता जा रहा है। अपनों की ही बेरुखी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन गई है। अमेठी के बाद रायबरेली को बचाना, जहां प्रियंका वाड्रा के लिए एक बड़ी चुनौती होगी,वहीं आम कांग्रेस जनों के मनोबल को बरकरार रखना भी।

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