अब पश्चिम बंगाल में ममता दीदी का खेल बिगाड़ेगे औवेसी


-बिहार में पांच सीटे लेकर महागठबंधन का पहुंचाया नुकसान
-शुभेन्दु अधिकारी के तूणमूल छोडऩे से भाजपा की खिली बांछे
-तुष्टïीकरण के मकडज़ाल मे ंउलझी ममता भी हिन्दू कार्ड खेलने को आतुर

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। बिहार में महागठबंधन का खेल बिगाडऩे के बाद अब आईएमआईएम का अगला निशाना पश्चिम बंगाल है जहां अगले साल मईजून में विधानसभा चुनाव होने है।

बिहार के चुनाव मे ंपांच सीटों पर जीत दर्ज कराने के बाद असुदुद्दीन औवेसी तूणमूल कांग्रेस के साथ ही कांग्रेस का भी खेल बिगाडऩे की तैयारी में है। राजनीतिक जानकारों की माने तो औवेसी बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में जितना तूणमूल कांग्रेस और कांग्रेेेस सहित गैरभाजपा दलों को जितना नुकसान पहुंचायेंगे उससे कहीं ज्यादा वे भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचायेगे। जानकारों की माने तो यदि बिहार में औवेसी ने दस्तक न दी होती तो शायद महागठबंधन को बहुमत हासिल हो जाता। बिहार में गठबंधन सरकार बनने के बाद भाजपा नेतृत्व अगले साल जिन राज्यों में चुनावों को लेकर सबसे ज्यादा आशान्वित है उनमें पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु है। इसी गरज से पिछले दिनों गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार में रोडशो कर बड़ी रैली कर ममता बनर्जी के खिलाफ काफी जहर उगला।

राजनीतिक प्रेक्षकों का अनुमान है कि बिहार में भले नीतीश कुमार ने हैट्रिक बना ली है लेकिन पश्चिम बंगाल मे ंऐस हो पाएगा इसकी संभावना काफी कम है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सबसे करीबी शुभेन्दु अधिकारी के चुनाव से छह माह पूर्व मंत्री पद छोडऩे के साथ पार्टी छोडऩे के संकेत से भाजपा को लगता है उसका वेस्ट बंगाल का मिशन पूरा होने में अब ज्यादा देर नहीं है। हालांकि शुभेन्द्र अधिकारी ने भाजपा सहित किसी भी दल में शामिल होने का संके त नहीं दिया है। लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उन्हे हांथोहांथ लेने को तैयार है। हालांकि इन सबसे इतर पश्चिम बंगाल में किसी भी दल की जीतहार में मुस्लिम वोटों को काफी निर्णायक माना जाता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। जानकारों की माने तो धु्रवीकरण के खेल मे ंयहां भी पासा पलट सकता है।

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों की बहुतायत संख्या को देखते हुए गैर-भाजपा दलों को इसका बड़ा नुकसान होने की संभावना से राजनीतिक प्रेक्षकों को इकार नहंी है। औवेसी की आमद से वहां मुस्लिम वोटों के बंटवारे का सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है। यह सच्चाई स्वीकार करने में राजनीतिक पंडितों को भी इंकार नहीं है।

पश्चिम बंगाल के चुनावी गणित पर नज़र डाले तो मुस्लिम वोटों की संख्या लगभग ३० से 35 प्रतिशत के बीच है। इनमें से कुछ जिले मालदा मुर्शिदाबाद तथा चौबीस परगना आदि में मुसलमानों की बड़ी आबादी है। पश्चिम बंगाल विधानसभा में कुल 294 सीटे है। 98 विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। जो किसी भी दल का राजनीतिक गणित बनाने और बिगाडऩे निर्णायक होते हैं। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस वामदलों और तृणमूल कांग्रेस मुस्लिम वोटों सेंध लगाने की कोशिश में काफ ी दिनों से है। मुर्शिदाबाद में तो करीब 66.3 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इसी तरह मालदा जिले में 12 विधानसभा सीटें आती हैं और यहां मुस्लिम आबादी 51.3 प्रतिशत है। उत्तर दिनाजपुर जिले में मुस्लिम आबादी 49.9 प्रतिशत है।

इस क्षेत्र में 9 विधानसभा सीटें आती हैं। बीरभूमि में मुस्लिम आबादी 37.1 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 11 विधानसभा सीटें हैं। दक्षिण 24 परगना जिले में मुस्लिम आबादी 35.6 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में 31 विधानसभा सीटें हैं। जिन पर गैरभाजपा दलों की निगाह जमी हुई है। लेकिन ओवेसी की पार्टी के अपने प्रत्याशी उतारने से इन सभी दलों का गणित बिगड़ सकता है। भाजपा की रणनीति हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण पर टिकी हुई है। उसे लग रहा है कि ओवेसी अगर मुस्लिम वोटों का बिखराव कर देते हैं तो इसका सीधा लाभ उसको ही मिलेगा।

वहीं ममता बनर्जी की रणनीति मुस्लिम वोटों के साथ ही हिन्दू वोटों को भी हथियाने की है इसलिए वह साफ्ट हिन्दुत्व का फार्मूला अपना रही है। लेकिन ऐसे में कट़ट्रवादी मुस्लिम वोट ओवेसी की तरफ मुड़ सकता है। बंगाल में 2011 में वाम मोर्चे को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का फ ायदा मिलता रहा है लेकिन एआईएमआईएम के 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा से गैरभाजपा दलों की नींद उड़ गयी है। अब यह दल ओवेसी पर भाजपा का एजेंट होने का आरोप लगा रहे हैं।

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