छत्तीसगढ़ी व्यंजन से बनी भगवान गणेश की मूर्ति, विसर्जन के बाद जलचरों को मिलेगा चारा

इस वर्ष गणेश गणेश उत्सव के मौके पर नागरिकों ने पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों से परहेज करते हुए लोगों ने ऐसी मूर्तियों का निर्माण कराया है जो अनोखी तो है ही शहर की पर्यावरण की सेहत का भी ख्याल रखे हुए हैं। ऐसी ही भगवान गणेश की एक अनोखी मूर्ति राजधानी रायपुर के डगनिया क्षेत्र में स्थापित की गई है। यह मूर्ति छत्तीसगढ़ी व्यंजनों से निर्मित है। इस मूर्ति को प्रदेश में त्योहारों के मौके पर बनाए जाने वाले छत्तीसगढ़ी व्यंजनों से बनाया गया है। इस मूर्ति में 40 किलो से अधिक व्यंजनों का उपयोग किया गया है।

शहर के डगनिया क्षेत्र में स्थापित इस मूर्ति को बनाने वाले कलाकार का नाम शिवचरण यादव है। लगभग 48 वर्षीय शिवचरण ने 15 दिनों की अथक मेहनत के बाद इस मूर्ति का निर्माण किया है। हिन्दुस्थान समाचार से बात करते हुए शिवचरण ने बताया कि वे जटिल मानसिकता वाले समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि जीवन छत्तीसगढ़िया जैसा सहज, सरल और मिठास युक्त होना चाहिए।

उन्होंने गणेश बप्पा की मूर्ति बनाने में छत्तीसगढ़ी पकवानों का उपयोग किया है। कागज के बेस पर बनाए गए इस मूर्ति में उन्होंने पगड़ी बनाने के लिए बूंदी का इस्तेमाल किया है। भगवान श्री गणेश का चेहरा बनाने के लिए सलोनी का इस्तेमाल किया गया है। लंबोदर का पेट बनाने के लिए 15 किलो ठेठरी का उपयोग किया गया है। गहना बनाने के लिए पेठा और गुजिया का इस्तेमाल किया गया है। जबकि पैर बनाने में खुरमी का इस्तेमाल किया गया है।

बाल महाराज गणेशोत्सव समिति द्वारा स्थापित इस मूर्ति को देखने दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। समिति के लोकेश्वर साहू ने बताया कि वे लोग पिछले 5 वर्षों से भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना कर रहे हैं। समिति का उद्देश्य शुरू से ही यह रहा है की इको फ्रेंडली मूर्ति स्थापित की जाए। उन्होंने कहा कि इस मूर्ति के विसर्जन से जलचरों को भी आहार मिलेगा। जो कि एक पुण्य का काम है।

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