फिर शुरू हुई तीसरे मोर्चे के गठन की क वायद

  • दलों को एकजुट करने में के.चन्द्रशेखर राव
  • -दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हैदराबाद में होनी है बैठक
  • -ममता,नीतीश, अखिलेश भी हो सकते है शामिल\

योगेश श्रीवाातव
लखनऊ। लोकसभा चुनाव को भले अभी चार साल बाकी हो,पर जिस तरह राज्यों में एक-एक करके राष्टï्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का वर्चस्व बढ़ रहा है उसे रोकने की गरज से एक बार फिर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद तेज हो गयी है। हालांकि देश की राजनीति में मोर्चो का प्रयोग बहुत कारगर नहीं रहा बावजूद इसके अभी भी इसका प्रयोग जारी है। हिन्दी भाषी राज्यों के अलावा जिस तेजी से दक्षिण के राज्यों में एनडीए का प्रभाव बढ़ रहा है उसे रोकने की गरज से इस बार गैर भाजपा और गैर कांग्रेस नेताओं को एक मंच पर लाने का बीड़ा तेलागंाना के मुख्यमंत्री और तेलागांना राष्टï्र समिति के अध्यक्ष के.चन्द्रशेखर राव ने उठाया है। इस बावत वे दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हैदराबाद में एक बड़ी बैठक करने जा रहे है जिसमें किस-किस दल और किन-किन नेताओं को बुलाया जाएगा इसका खुलासा तो नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि इस बैठक में कांग्रेस के नेताओ को बुलाने पर विचार करने के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी,राजद के नेता तेजेस्वी यादव,सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव,राष्टï्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार,बीजू जनता दल के प्रमुख और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक,तामिलनाडु के पूर्व उपमुख्यमंत्री स्टालिन सहित विभिन्न राज्यों के अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं को आमंत्रित किया जा सकता है। टीआरएस के प्रमुख के.चन्द्रशेखर राव जो पूर्व में कई मुद्दों पर मोदी सरकार के साथ खड़े दिखाई दिए अब उनका भाजपा के खिलाफ थर्ड फ्रंट खड़ा करने का मंसूबा लोगों के गले नहीं उतर रहा है। जब से तेलागांना राज्य में भाजपा ने अपने पांव पसारने और उपचुनाव में एक सीट जीती है तब से के.चन्द्रशेखर राव के फं्रट गठन के प्रयासों में तेजी आई है। हालांकि तीसरा मोर्चा बनाने की पहल कोई नयी नहीं है इससे पहले साल २०१९ के लोकसभा चुनाव से पहले भी वे फेडरल फ्रंट बनाने की जोरआजमाइश कर चुके है। इस बावत उन्होंने कई राज्यों का दौरा स्वयं को डिप्टी पीएम के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने का प्रस्ताव भी दिया था। केन्द्र में मोर्चो बनाने का प्रयोग पिछले कई दशकों से होता आया है लेकिन कोई कारगर साबित नहीं हुआ। ऐसे मोर्चे और उनकी सरकारें दो साल भी पूरा नहीं कर पाई। १९७७ में आपातकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई। इस सरकार के मुखिया मोरारजी देसाई बने। यह देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। लेकिन न तो जनता पार्टी में जुटे सारे दल ही ज्यादा दिन साथ रह पाए न ही सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाई। और तीन साल में दो प्रधानमंत्री हुए और १९८० मे फिर चुनाव हो गए। १९८० में जनता पार्टी के टूटने के बाद १९८९ में जनता दल के नेतृत्व में राष्टï्रीय मोर्चा बना। इस मोर्चे की भाजपा और वामदलों के समर्थन से सरकार बनी। जल्द ही इस मोर्चे मे ंमोरचा लग
गया और मोर्चे के कुछ धड़ो को साथ लेकर कांग्रेस के समर्थन से चन्द्रशेखर देश के बन गए। १९९१ में राष्टï्रीय मोर्चे का वजूद समाप्त हो गया। और इस मोर्चे कुल १८ महीने १९ दिन ही सरकार रही। १९९६ में एक बार फिर जनता परिवार के लोगों ने मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाया। दो साल में इस मोर्चे के दो प्रधानमंत्री हो गए। १९९८ के लोकसभा चुनाव आने तक इस मोर्चे का वजूद खत्म हो गया। दो साल के भीतर ही इस मोर्चे के दो प्रधानमंत्री हुए एचडी देवगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल। इस मोर्चे के दो प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल मात्र २१ महीने १८ दिन ही रहा। २००८ में राष्टï्रपति चुनाव के दौरान सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एआईएडीएमके के साथ मिलकर यूएनपीए(राष्टï्रीय जनतांत्रिक प्रगतिशील गठबंधन) बनाया। इस एलायंस का मकसद यूपीए और एनडीए दोनों से दूरी बनाए रखना था। लेकिन राष्टï्रपति का चुनाव आते ही एआईएएमडीके ने इस एलायंस से दूरी बना ली और सपा का भी रूझान परमाणु करार के मुद्दे पर यूपीए के साथ हो गया और अस्तित्व मे आने से पहले ही इस एलायंस का दम निकल गया। २००९ में लोकसभा चुनाव से पहले १२ मार्च २००९ को बेंगलुरू से सटे तुमकुर मे एक सभा के दौरान तीसरे मोर्चे के गठन की घोषणा हुई। इसमें सीपीआई,सीपीआईएम,अन्नाद्रुमुक,जेडीएस,बीएसपी, जैसे दल शामिल हुए लेकिन चुनाव आने तक सब तीन तेरह हो गए। इसी तरह १५वीं लोकसभा चुनाव के दौरान भी जनता परिवार से जुड़े लोगों ने इकट़ठा होकर जो मोर्चा बनाया उसे चौथे मोर्चे का नाम दिया गया। इसमें सपा,राजद,लोजपा, शामिल हुए।सभी ने एक दूसरे के खिलाफ उ मीदवार न उतारने का निर्णय लिया। लेकिन फैसलें पर लोग कायम नहीं रख सके और मोर्चा पारे की तरह बिखर गया।

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