कब पूरा होगा इनका अच्छे दिनों का इंतजार


-समायोजन की बांट जोह रहे है भाजपा के तीन पूर्व अध्यक्ष
-फायरब्रांड नेता विनय कटियार भी हाशिए पर
-जनाधार बढ़ाने वाले बाजपेयी भी हुए करकिनार
-उपेक्षा से आहत ओमप्रकाश ने पार्टी आयोजनो से किया किनारा

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। केन्द्र और प्रदेश में सत्तारूढ़ होने के बाद जनता की कौन कहे पार्टी के कई कद्दावर नेताओं को अच्छे दिनों का इंतजार है। इनका इंतजार कब पूरा होगा। इस बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। लेकिन जिस तरह पार्टी में दलबदलुओं को चुनावों मे टिकट के साथ सरकार में मलाईदार ओहदों पर बिठाया जा रहा है। उसकों लेकर पार्टी के पुराने नेताओं में अपने भविष्य को लेकर चिंता स्वाभाविक है।

इनमें जो उम्रदराज हो चुके है वे भी चाहते है उनका भी कलराज मिश्र और लालजी टंडन की तरह समायोजन हो और जो बाकी दमखम वाले है राज्यसभा या फिर विधानपरिषद में अपनी आमद चाहते है। लेकिन पार्टी लाइन से बंधे होने के कारण कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। ऐसे नेताओं में वे लोग भी शामिल है जो प्रदेशाध्यक्ष की बागडोर संभाल चुके है। प्रदेशाध्यक्ष रहे कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह जैसे नेता तो मुख्यमंत्री के ओहदे तक पहुंचे तो केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम है। बाकी प्रदेशाध्यक्षों में सूर्यप्रताप शाही प्रदेश में,महेन्द्र पांडेय केन्द्र मे मंत्री है तो चार बार प्रदेशाध्यक्ष रहे कलराज मिश्र इस समय राजस्थान के राज्यपाल है और केशरी नाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके है। इन प्रदेशाध्यक्षों की फेहरिस्त में तीन प्रदेशाध्यक्ष ऐसे भी है जिन्होंने संगठन का नेतृत्व किया लेकिन केन्द्र और प्रदेश में सरकार होने के बाद उन्हे किसी तरह का दायित्व के लायक नहीं समझा गया।


डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी-विपक्ष में रहते हुए प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करने वाले डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी भी इनदिनों हाशिए पर है। प्रदेश में भाजपा-बसपा गठबंधन सरकार में राज्यमंत्री रहे डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने प्रदेशाध्यक्ष रहते तत्कालीन अखिलेश सरकार के नाक में दम कर रखा था। उन्हीं के संघर्ष का परिणाम रहा कि २०१७ के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को ८० में सहयोगी दलों के साथ मिलाकर ७३ सीटे मिली थी।

सदन में मात्र 38 विधायकों के साथ तीसरी पायदान पर होने के बावजूद पर डा. वाजपेयी ने सपा सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। डा. वाजपेयी के नेतृत्व में विधानसभा के सामने पार्टी विधायकों को लेकर 24 घंटे का ऐतिहासिक धरना दिया वो आज तक लोगों को याद है। डा. वाजपेयी ने अपने कुशल सांगठनिक क्षमता के चलते ही 2012 के नगर निकाय चुनाव में 12 नगर निगमों में 9 पर पर भाजपा का परचम लहराया था। अपनी उपेक्षा के बावजूद भी डा.बाजपेयी कभी नेतृत्व के खिलाफ मुखर नहीं हुए।

वे आज भी पूरी तरह से पार्टी के साथ निष्ठïा से जुड़े हुए है। पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर अक्सर उन्हे सचिवालय या अन्य प्रशासनिक कार्यालयों में देखा जा सकता है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल और योगी सरकार के तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। पार्टी के एक से एक जनाधारविहीन नेताओं को लाभ के पद दे दिए गए। जिन्होंने कभी पार्टी के लिए पसीना तक नहीं बहाया वे ही सरकार और संगठन में मलाई काट रहे है और बाजपेयी जैसे नेता नेतृत्व की उपेक्षा झेलते हुए चुप है। वे पार्टी के अनुशासन और मर्यादा से बंधे हुए है।
ओमप्रकाश सिंह-भाजपा सरकारों में मलाईदार विभागों के कैबिनेट मंत्री और प्रदेशाध्यक्ष रहे ओमप्रकाश सिंह भाजपा के विपक्ष में आने के बाद 2007 से 2012 तक विधानमंडल दल के नेता रहे। मिर्जापुर की चुनाव सीट से १९७४-७७-९३-९६,२००२-२००७ में विधायक चुने गए ओमप्रकाश सिंह को २०१२ के चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा।

भाजपा में सत्ता और संगठन में पर्याप्त अवसर दिए जाने के बाद भी पिछड़ों को भाजपा से जोडऩें में विफल रहे। बावजूद इसके २०१४ के लोकसभा चुनाव में लडऩे को तैयार थे लेकिन टिकट ही नहीं मिला। कार्यकर्ताओं को पद प्रतिष्ठा और पद लोलुपता से दूर रहने की नसीहत देने वाले ओमप्रकाश सिंह भाजपा सरकारों में मंत्री रहने के साथ ही प्रदेशाध्यक्ष भी रहे और इनकी पत्नी वाराणसी की मेयर रही। पुत्र अनुराग सिंह इस समय पार्टी के विधायक है। २०१७ के विधानसभा चुनाव से पहले वे२००९ का मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव लड़े और जमानत गंवा बैठे थे। उपेक्षा से आहत ओमप्रकाश सिंह अब पार्टी आयोजनों से दूर ही रहते है।

उनके मन में भी पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कल्याण सिंह,कलराज मिश्र,केशरी नाथ त्रिपाठी की ही तरह कहीं का राज्यपाल बनने की दमित आंकाक्षा है। लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व फिलवक्त उनकी ऐसी कोई जरूरत महसूस नहीं कर रहा है।


विनय कटियार- यूपी के मंदिर आंदोलन से निकले भाजपा नेता विनय कटियार का शुमार किसी समय फायरब्रांड नेताओं में था। संसद के दोनों सदनो का प्रतिनिधित्व कर चुके कटियार इस समय किसी सदन के सदस्य नहीं है। केन्द्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल और योगी सरकार के कार्यकाल तीनसाल पूरे होने के बाद भी वे इस समय हाशिए पर है। कहीं समायोजन तो दूर रहा बल्कि उनकी सुरक्षा में कटौती कर दी गयी।

इसको लेकर भी उनके मन में पीड़ा स्वाभाविक है। राम मंदिर आन्दोलन से निकले कटियार 2004 का लोक सभा चुनाव हारने के बाद भाजपा अध्यक्ष पद से हटाये गए थे। उन्हें २००६ में रायबरेली में कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ लोकसभा उपचुनाव लड़ाया गया था। इस चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे। वे १९९१-९६-९९ में निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचे। २००४ को लोकसभा चुनाव लखीमपुर खीरी संसदीय सीट से लड़े और तीसरे स्थान पर रहे। तीन बार लोक सभा व इस समय राज्यसभा सदस्य विनय कटियार न तो केंद्र में मंत्री बन सके और नहीं संगठन के कामकाज की दृष्टिï से उन्हें कोई प्रमुखता प्राप्त हैं।

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