क्या भदोही में इस बाहुबली की सियासत होगी कामयाब….

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भदोही । पूर्वांचल की सियासत में बाहुबली रमाकांत यादव की अपनी एक अलग छवि है लेकिन आजमगढ़ में मुलायम सिंह परिवार की राजनैतिक दखलंदाजी से लगता है कि बाहुबली का सियासी रसूख दांव पर लग गया है। इसी वजह से उन्हें भदोही में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरकर नयी जमीन तलाशनी पड़ी है। अगर अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव जीत गए तो फिर कैफी आजमी की जमीं पर बाहुबली राजनीति का झंडा बुलंद होना मुश्किल दिखता है।
क्या भदोही में बाहुबली की सियासत होगी कामयाब 
आजमगढ़ में रमाकांत यादव का अच्छा सियासी दबदबा है। जातीय समीकरण को आधार बनाकर रमाकांत यादव अब तक सभी दलों की नाव पर सवार होकर अपनी राजनीतिक नइया पार लगा चुके हैं। वह कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा से होते हुए फिर अपने पुराने घर कांग्रेस में लौटे हैं। आजमगढ़ से अब तक 21 सांसद चुने गए जिसमें 18 सांसद यादव जाति से हैं। आजमगढ़ में तकरीबन 20 फीसदी यादव जाति के सहारे बाहुबली रमाकांत यादव खुद चार बार सांसद और विधायक रह चुके हैं। वह समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के सामने भी पिछला चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था।
सवाल उठता है कि रमाकांत यादव को आजमगढ़ की जमीन छोड़कर भदोही क्यों आना पड़ा? क्या भदोही में वह अपनी राजनीतिक खाद पानी दे पाएंगे? क्या वह 2022 की तैयारी में जुटना चाहते हैं? कांग्रेस पूर्वांचल में रमाकांत यादव जैसे नेता पर दांव लगाकर क्या ओबीसी कार्ड के भरोसे खुद को अंकुरित करना चाहती है? क्या कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी 2022 की राजनीति में जुटी हैं?
इस तरह के तमाम कई ऐसे सवाल रमाकांत यादव की राजनीति पर भी सवाल खड़े करते हैं। राजनीति में रमाकांत यादव के रसूख से इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी वजह तब देखने को मिली जब भदोही में आयोजित सभा में मायावती और अखिलेश यादव को खुद रमाकांत यादव को टारगेट पर लेना पड़ा क्योंकि वह गठबंधन के मतों में सेंधमारी कर रहे थे।
पूर्वांचल में मुलायम परिवार का सियासी गढ़ बनेगा आजमगढ़ ?
2014 के आम चुनाव में पूर्वांचल के जातीय समीकरण साधने के लिए मुलायम सिंह यादव ने खुद आजमगढ़ को चुना। इसकी वजह सिर्फ मोदी के मुकाबले खुद की सियासी जमीन को दरकने से बचाने की नीति थी। दरअसल यूपी की राजनीति में मुलायम सिंह यादव परिवार की अपनी एक अलग पहचान है। आजमगढ़ से चुनाव जीतकर उन्होंने पश्चिमी यूपी के साथ-साथ पूर्वांचल में भी अपना एक ठिकाना तैयार कर लिया। पिछले चुनाव तक मुलायम सिंह का परिवार मैनपुरी, एटा, कन्नौज जैसी पश्चिमी यूपी की सीटों पर सिमटा था। पूर्वांचल में ओबीसी खास तौर पर यादव जातियों की लामबंदी के लिए कोई ठिकाना नहीं था लेकिन आजमगढ़ में सफलता के बाद अब यह सीट अखिलेश यादव कभी गंवाना नहीं चाहेंगे। वह गांधी परिवार के अमेठी और रायबरेली की तरह आजमगढ़ को भी समाजवादी परिवार का गढ़ बनाना चाहते हैं।
मुलायम सिंह के बाद अगर भाजपा उम्मीदवार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुवा के सामने अखिलेश यादव पिता की विरासत को बचाने में कामयाब हो गए तो यहां से फिर रमाकांत यादव का तंबू उखड़ना निश्चित है। यही वजह है कि रमाकांत यादव भदोही में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ कर नयी जमीन तलाशना चाहते हैं।

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