बिहार के साथ यूपी में भी फिर दिखा योगी का दम

  • सभी छह सीटों पर बरकरार रहा भाजपा का कब्जा-
  • अपनी एक सीट बचाने में सपा भी रही कामियाब
  • -जोरआजमाइश की बसपा कांग्रेस की कोशिश बेकार 

योगेश श्रीवास्तव 

लखनऊ। बिहार के साथ यूपी विधानसभा की सात सीटों पर हुए उपचुनाव में छह सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराकर सभी प्रमुख विपक्षी दलों के विकल्प बनने के मसंूबो पर पानी फेर दिया है।

हालांकि इन सात सीटों के जो परिणाम आए उनमें जहां कांग्रेस बसपा के पास कुछ खोने को नहीं था तो भाजपा के पास अपनी छह सीटे बचाने की चुनौती थी। भाजपा जहां चुनौती को स्वीकारने में सफल रही तो सपा भी इस मिशन में कामयाब रहीं। २०१७ के चुनाव में इन सभी सीटों पर यही स्थिति थी।  इस बार के उपचुनाव की खास बात यह रही है कि इसमें सपा कांग्रेस के साथ बसपा ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि इन सात सीटों में बसपा के पास एक भी सीट भी नहीं थी जबकि सपा के पास एक सीट जिसे बचाने में वह कामयाब रही। हालांकि इन चुनावों में बाजी मारने की गरज से इन सभी दलों ने खासी ताकत झोंक रखी थी।  

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पार्टी की जीत का तारतम्य बनाए रखने की गरज से स्वयं भी कई विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार करने गए थे और संगठन स्तर से भी प्रदेशाध्यक्ष स्वतंत्र देव सिह सहित विभिन्न पदाधिकारियों को क्षेत्रवार दायित्व सौंपा गया था। इस बार के उपचुनाव भाजपा के लिए भी खासे महत्वपूर्ण थे क्योंकि लाकडाउन के दौरान सरकार की कार्यशैली को लेकर सभी दलों ने उसे घेरने और उसकी नीतियों को जनविरोधी साबित करने में कोई कसर नहीं उठा रखी थी। विपक्ष को जहां इस बात का भरोसा था कि सरकार के विरोध मे माहौल बनाकर उपचुनाव में ठीकठाक प्रदर्शन कर २०२२ का मार्ग प्रशस्त कर पाएगी तो भाजपा इस बात से आश्वस्त थी कि केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं ने जनता के बीच भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाई है जिसका लाभ उसे इन चुनावों में भी मिलेगा।

उपचुनावा में विपक्ष के  कोई हथकंडा  काम नहीं आया। हालंाकि इन उपचुनावेां को लेकर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार लल्लू खासे उत्साहित थे। उन्होंने प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार अभियान तक में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। उन्हे लगता था कि प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद से उनके  द्वारा किए धरने प्रदर्शनों से जनता के बीच कांग्रेस की पैठ बनी है। उपचुनावों को लेकर उन्होंने पार्टी के वरिष्ठï नेताओ को जिम्मेदारी सौंपी थी। लोकसभा चुनाव के बाद एक साथ आधादर्जन सीटों पर उपचुनाव में अपनी सीटे बरकरार रखने को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा काफी सशंकित थी जबकि सपा इनसीटों पर काबिज होकर अपने बढ़ते जनाधार का प्रदर्शन करना चाहती थी। बसपा की मंशा थी कि इन सीटों पर हो रहे उपचुनाव में उसे भले एक भी सीट न मिले लेकिन सपा के हिस्से में एक भी सीट न जाने पाए।

सातों सीटों में छह सीटो ंपर अपना कब्जा बरकरार रखकर भाजपा ने साबित कर दिया है कि डबल इंजन की सरकार की कार्यशैली को लेकर जनता में उसकी स्वीकार्यता बढ़ी है। विपक्ष के अनेक प्रयासों के बाद भी जनता का भरोसा भाजपा से डिगा नहीं है। राजनीतिक प्रेक्षकों कीमाने तो इन उपचुनावों के नतीजे साल २०२२ में होने वाले विधानसभा चुनाव में योगी सरकार के काम काज पर जनता की मुहर है। सरकार के साथ प्रदेश नेतृत्व के समन्वय ने भी इन चुनावों में पार्टी को शतप्रतिशत सफलता दिलाने मे ंनिर्णायक भूमिका निभाई।

सात सीटों के उपचुनाव के लिए  संगठन की रणनीति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कोरोना काल के दौरान जब प्रदेश  में लाकडाउन था।  उस समय भी सरकार के साथ ही संगठन ने आम आवाम से अपना समन्वय बनाए रखा। सरकार की विभिन्न योजनाओं के साथ संगठन स्तर पर डिजिटल प्लेट फ ार्म के माध्यम से मोदी रसोई का संचालन और कार्यकर्ताओं से प्रत्याशियों  के चयन को संगठन ने खासी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए पूरे सरकार के अलावा संगठन स्तर से भी कई अभियान चलाए गए थे।

जिसको लेकर जनता के बीच भाजपा के प्रति लोगों मे स्वीकार्यता बढ़ी। उपचुनावों के आए नतीजों से हालांकि मुख्यविपक्षी दल समाजवादी पार्टी संतुष्टï नहीं है पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की माने तो भाजपा चुनाव जीतने के लिए साजिश रचती है। इन चुनावों मे ंभाजपा से सीटे छीनने में किसी दल ने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। 

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