पाकिस्तान में हिन्दू मंदिरों का हाल आपकी सोच से भी ज्यादा बुरा है, इस रिपोर्ट में हुआ खुलासा!

इमरान खान के नए पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की क्या स्थिति है. किसी से भी नहीं छुपी है. फिर भी पाकिस्तान भारत के मामलों पर अक्सर टांग अड़ाते हुए दिखाई देता है. शायद वो आइना साफ़ करने की जगह अपनी शक्ल ही साफ़ करते रहता है. यही वजह है कि उसे हर जगह गंदगी दिखाई देती है. जी हाँ अक्सर अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर चिल्लाने वाले पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यकों की क्या हालत है ये किसी से भी नहीं छुपी. हाल के ही महीनों में एक हिन्दू मंदिर के अंदर आगजनी की तस्वीर भी दुनिया ने देखि थी. खूब हो हल्ला हुआ तो पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट को खुद इस मामले में आना पड़ा. और अब फिर से पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इमरान को आइना दिखाने की कोशिश की है.

अब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के बनाए आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जो खुलासा किया है वो हैरान करने वाला है. दरअसल रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं के मंदिरों की हालत कितनी खराब स्तिथि में है. और शायद इस मामले में न तो ग्रेटा नज़र आएगी और न मिया खलीफा कूदेगी

दरअसल पाकिस्तान के अखबार डॉन न्यूज के मुताबिक़ उच्चतम न्यायालय ने हिंदू मंदिरों की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए डॉक्टर शोएब सदल के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया है. इस आयोग ने शीर्ष अदालत को पांच फरवरी को अपनी सातवीं रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट में अफसोस जताया गया है कि ईवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड यानी ईटीपीबी ने हिंदुओं के अधिकांश प्राचीन धर्म स्थलों को संभालने में विफल रहा है.

इतना ही नहीं रिपोर्ट में देश में स्थित हिंदू समुदाय के सबसे सम्मानित स्थलों की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ शोएब सदल की आयोग की स्थापना सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई थी. हालांकि इसमें तीन सहायक सदस्य- डॉ रमेश वांकवानी, साकिब जिलानी और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल भी हैं. यहां आपको बता दें कि अटॉर्नी जनरल ने डिप्टी अटॉर्नी जनरल को आयोग की तथ्यान्वेषी गतिविधियों में भाग लेने के लिए नामित किया था.

आयोग के सदस्यों ने छह जनवरी को चकवाल के कटस राज मंदिर और सात जनवरी को मुल्तान में प्रह्लाद मंदिर का दौरा किया. और रिपोर्ट में पाकिस्तान के चार सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मंदिरों में से दो की जानकारी दी गई है और इसके साथ इनकी तस्वीरें भी रिपोर्ट में दी गई है.

रिपोर्ट में कहा गया कि करक के टेरी मंदिर, चकवाल के कटस राज मंदिर, मुल्तान में प्रह्लाद मंदिर और लासबेला में हिंगलाज मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए सहयोगात्मक प्रयास किए जाने चाहिए, साथ ही आयोग ने रिपोर्ट में बताया है कि पाकिस्तान में 365 मंदिर हैं जिनमें से सिर्फ 13 के रखरखाव की जिम्मेदारी ईटीपीबी ने ली हुई है. अब सवाल ये की बाकी के मंदिरों का क्या, क्या उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए. तो बता दें कि रिपोर्ट में आगे कही गई बात आपको और चौंका देगी.

रिपोर्ट के मुताबिक़ 65 मंदिर ऐसे हैं जिनकी देखरेख हिंदू समुदाय खुद कर रहा है तो वहीं 287 मंदिरों को भू-माफियाओं के हवाले छोड़ दिया गया है. यानी उन मंदिरों की देख रेख कौन कैसे कर रहा है. शायद ये प्रशासन को भी मालुम न हो. खैर रिपोर्ट में हिंदुओं और सिखों के पवित्र स्थलों के पुनर्वास के लिए एक कार्यकारी समूह स्थापित करने के लिए ईटीपीबी अधिनियम में संशोधन का भी सुझाव दिया गया है.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 73 साल बीतने के बाद भी ईटीपीबी की रुचि सिर्फ प्रवासित अल्पसंख्यकों की महंगी संपत्तियों को कब्जे में लेने में रही, इतना ही नहीं सैकड़ों कस्बों में अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मस्थलों, पूजा स्थलों या अन्य संयुक्त संपत्तियों को भी ईटीपीबी ने अपने कब्जे में लिया हुआ है. अब ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही की इस रिपोर्ट में जो खुलासा हुआ है. उसके बाद इमरान सरकार क्या फैसला लेती है. आखिर कब तक पाकिस्तान अल्पसंख्यक के नाम पर रोता रहेगा. जबकि उसके देश की स्तिथि सबसे बदतर है. ये तो बात हो गई कि बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना, पर पाकिस्तान के मामले में ये कहा जा सकता है कि यहाँ अब्दुल्लाह बना इमरान दीवाना ही नहीं है वो नाच भी रहा है. और दावत भी उड़ा रहा है. चाहे खुद के घर में खाने को एक दाने न हो.

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