Uttarakhand Glacier Burst: ग्लेशियरों पर मंडरा रहा पिघलने का खतरा, हिमालयन क्षेत्र का बढ़ा तापमान

नई दिल्ली। साल 2013 में केदारनाथ में हुई त्रासदी को लोग अभी भूले भी नहीं थे, कि उत्तराखंड एक बार फिर कांप उठा है। यहां के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की घटना ने सबको हिलाकर रख दिया है। पानी के सैलाब से हो रही तबाही को देख भविष्य के लिए भी खतरा बढ़ गया है। एक स्टडी के मुताबिक शोधकर्ताओं ने आने वाले दशकों में हिमालय के धरती से गायब हो जाने की आशंका जताई है। क्योंकि 650 ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का पता चला है। ये ग्लोबल वाॅर्मिंग की ओर इशारा कर रहा है।

साल 2019 में हुई एक स्टडी में पाया गया कि साल 1975 से 2000 तक हर साल औसतन 400 करोड़ टन बर्फ पिघलती रही, लेकिन इसके बाद ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई। स्थिति का सटीक पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 40 सालों तक भारत, चीन, नेपाल और भूटान में फैले हिमालयन ग्लेशियरों पर सैटेलाइट के जरिए नजर रखी थी।

दो तिहाई तक पिघल जाएंगे ग्लेशियर
ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरे तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस पर नियंत्रण न लगाए जाने से साल 2100 तक हिमालय क्षेत्र के दो तिहाई ग्लेशियर पिघल चुके होंगे। ये आगे जाकर भयंकर तबाही ला सकते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से सबसे ज्यादा नुकसान भारत, चीन, म्यांमार, नेपाल, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भूटान को होगा।

हिमालयन क्षेत्र का बढ़ा तापमान
विज्ञान पत्रिका साइंस एडवांसेज में छपी स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक 2 हज़ार किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैले हिमालयन एरिया का तापमान एक डिग्री से ज़्यादा तक बढ़ चुका है। नासा और जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के डाटा विश्लेषण के मुताबिक हिमालयन क्षेत्र बदल रहा है। इससे 650 ग्लेशियरों पर खतरा बढ़ गया है।

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