विवाद के बाद तिब्बत बॉर्डर पर चीनी और ज़्यादा एयरबेस बना रहे हैं, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है !

चीन ने इस वर्ष मई के महीने में जब भारत के खिलाफ बॉर्डर विवाद शुरू किया था तब उसने LAC से सटे अपने इलाके में कई एयर बेस का निर्माण या पुनर्निर्माण करना शुरू कर दिया था। आज भी चीनी सेना का इन एयर बेस के पास हरकत जारी है लेकिन भारत चीन की इन हरकतों पर नजर बनाए हुए हैं और तैयार है। युद्ध की स्थिति में चीनियों को मुंहतोड़ जवाब देने की प्लानिंग को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

दरअसल, चीन अधिक संख्या में एयरबेस का निर्माण कर रहा ताकि वो भारत के खिलाफ अपनी रणनीति में तैयार रहे परन्तु भारतीय सेना की तैयारी चीन से कहीं बेहतर है। बॉर्डर पर तनाव बढ़ने के बाद मई जून के महीने में ही चीन ने तिब्बत और शिनजियांग में चीनी एयर बेस पर हमलावर जेट्स , ड्रोन और अन्य विमानों को जुटाना शुरू कर दिया था। शिनजियांग में Hotan और Kashgar  के साथ साथ लद्दाख की Ngari Gunsa, Lhasa-Gonggar और Shigatse एयरबेस जिनमें से कुछ नागरिक हवाई क्षेत्र हैं उन पर PLA की वायु सेना ने अपने एसेट जुटाना शुरू कर दिया था। चीन का इन एयर बेसों का निर्माण या पुनर्निर्माण का एक ही उद्देश्य है कि जब उनकी सेना भारत की ओर भारी तोपों के साथ बॉर्डर की तरफ बढ़े तब उन्हें जेट्स की मदद से कवर प्रदान किया जा सके।

परंतु भारत पहले से ही चीन की रणनीति का जबाव देने के लिए तैयारी कर चुका है।  रिपोर्ट के अनुसार IAF किसी भी जवाब के लिए PLA से कहीं बेहतर स्थिति में है। एक अधिकारी के हवाले से लिखा गया है कि किसी भी आक्रामक के लिए भारतीय वायुसेना की प्रतिक्रिया PLA की वायु सेना की तुलना में अधिक तेज़ है। इसका कारण चीनी एयर बेस जैसे हॉटन, ल्हासा या काशगर LAC से अधिक दूरी पर हैं और साथ में चीन द्वारा तैनात किए गए सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल साइट स्टैंड भी भारतीय लड़ाकू विमानों की हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से असुरक्षित हैं।

अधिकारी ने बताया कि एक बार अगर एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम ध्वस्त हो गया तो चीन की आर्टलरी, रॉकेट और सेना की टुकड़ी तिब्बत की मरुस्थल में पूरी तरह से एक्सपोज हो जाएगी और उन्हें निशाना बनाना आसान हो जाएगा।

उन्होंने बताया कि वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध ने भारतीय सेना को सिखाया कि जब आक्रमणकारी एक जगह पर केंद्रित और एक्सपोज होता है, तो उसे हवा के अवरोधन की सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में भारतीय सेना पर हमला करना कठिन हो जाएगा है, जो सर्दियों के महीनों में और कठिन हो जाएगा क्योंकि Pangong Tso के उत्तर और दक्षिण दोनों में भारत की सेना रणनीतिक ऊंचाइयों पर हैं। भारतीय सेना अब झील के दक्षिणी तट पर मौजूद रिगल लाइन स्थितियों पर नियंत्रण कर चुकी जो उसे उस सेक्टर पर पूरी तरह से हावी होने में मदद करेगी। इसके साथ ही भारत रेजांग ला, रेकिन पास, गुरुंग हिल और मागर की ऊंचाइयों से चीनी सैन्य गतिविधि पर नजर रख रहा है।

पहाड़ों की ऊंचाई पर बैठी भारतीय सेना का पता लगाना और ज़ीरो से भी कम तापमान में किसी कवर के हमला करना न सिर्फ स्वयं चीन की टुकड़ी के लिए घातक होगा बल्कि उनकी हार का कारण बन जाएगा। अधिकारी ने बताया कि सेना को पूरा भरोसा है कि भारतीय सेना सबसे खराब स्थिति में भी चीनी हमले का सामना करने में सक्षम है। अगर यह युद्ध भयंकर होता है तब भी भारत 10 दिनों के युद्ध के लिए तैयार है। पीएम मोदी ने 2016 के उरी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 बालाकोट में पाकिस्तान के खिलाफ हमले के बाद ही महत्वपूर्ण गोला बारूद और मिसाइलों की आपातकालीन खरीद की अनुमति दे दी थी।

वहीं भारतीय वायु सेना में राफेल की एंट्री चीनियों के होश उड़ाने के लिए तैयार है। कुछ रिपोर्ट्स की माने तो राफेल की अगली डिलिवरी के चार और जेट्स अगले महीने भारत आ सकते हैं जिसके बाद भारत की हवाई ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। वास्तव में चीन भारतीय वायुसेना की ताकत को नहीं समझ सका जिसे युद्ध के अनुभव के साथ ही सटीक जगह वार करने की काबिलियत है। वहीं जल्द ही रूस भी भारत को S400 देगा जिससे भारत का बॉर्डर किसी भी हमले पर कई गुना सुरक्षित हो जायेगा।

भले ही चीन भारत से युद्ध जीतने के लिए और अधिक एयरबेस बनाने के लिए प्रयास कर रहा है लेकिन यह न केवल काफी कम है बल्कि अब बहुत देर भी हो चुकी है। चीन भारतीय वायुसेना की बराबरी करने और भारत को हवा हमले की योजना पर काम का रहा परन्तु उसकी ये योजना उसी पर भारी पड़ने वाली है।

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