देश को कोराना से निजात दिलाना है तो पीपल, बेल, शमी लगायें : स्वामी राघवेंद्र

-केला, बरगद, तुलसी और गूलर बचाएंगे चीन के छल से।

-भारत की जन्मकुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण

किसी भी देश की कुंडली में बारहवां घर गुप्त-शत्रु एवं युद्ध संबंधी कार्य का प्रतिनिधित्व करता है एवं भारतवर्ष की कुंडली के इस घर में शनि, सूर्य एवं बुध मकर राशि में विद्यमान हैं।
बारहवें घर में विद्यमान इन तीनों ग्रहों की सातवीं दृष्टि छठे घर पर पड़ रही है जो प्रत्यक्ष व परोक्ष शत्रु द्वारा रचे जाने वाले षड्यंत्र का प्रतिनिधित्व करता है।


इसीलिए यदि हम सूर्य ग्रह से संबंधित बेल का पेड़ एवं आक का पेड़ लगाएं एवम् शनि ग्रह से संबंधित पीपल व शमी के पेड़ों का अधिकाधिक रोपण करें तथा बुध ग्रह से संबंधित विधारा व आंधी झाड़ा वृक्षों का रोपण करें तो देश पर आए भीषण संकट को प्रकृति के सहयोग से काफी हद तक सुधारा जा सकता है।
व्यक्ति विशेष की कुंडली में तो छठा घर रोग का होता है परंतु देश की कुंडली में यह घर महामारी एवं आपदाओं का होता है इसीलिए यदि उपरोक्त वृक्षों का उनके अनुकूल जलवायु के स्थानों पर रोपण करें व पल्लवित करें तो प्रकृति के सहयोग से कोरोना महामारी को दूर करने में भी आशातीत सफलता प्राप्त करने की अपेक्षा की जा सकती है।


देश की कुंडली में दसवां घर प्रधानमंत्री, संसद व सरकार का प्रतिनिधित्व करता है एवं लग्न अर्थात पहला घर केंद्रीय सत्ता, मंत्रिमंडल एवं विपक्ष के साथ मतभेद का प्रतिनिधित्व करता है। भारतवर्ष की कुंडली में मंगल दसवें स्थान में अपनी स्वराशि वृश्चिक में बैठकर चौथी दृष्टि से लग्न को देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि मंगल को बरगद, नीम, खैर व ढाक के वृक्षों का ज्यादा से ज्यादा रोपण करके बलवान बनाया जाएगा तो प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए निर्णय राष्ट्रहित में और प्रभावी साबित होंगे एवं विपक्ष का भी आशातीत सहयोग प्राप्त होता रहेगा।
देश की कुंडली में चौथा भाव सरकार द्वारा जनउपयोगी कार्यों के फल स्वरुप जनता के संतुष्टि एवं पांचवा भाव विकास योजनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में मंगल ग्रह की सातवीं व आठवीं दृष्टि इन दोनों स्थानों पर पड़ने के कारण मंगल से संबंधित वृक्षों का रोपण करने से जनता सरकार के कार्यों से संतुष्ट रहेगी व विकास योजनाएं परवान चढ़ेगी।

साथ ही, एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर और देखिये।
अश्विन द्वितीये भूम्यां सैन्य चौर – रूजां – भयम्।
सुभिक्षम् केचनाप्याहु दुर्भिक्षम दक्षिणे दिशि।।

मेघ महोदयानुसार यदि किसी संवत में अधिक मास होता है तो सीमावर्ती देश द्वारा आक्रमण से प्रायः अशांति रहती है।

वर्तमान संवत 2077 में आश्विन अधिक मास होने से चीन द्वारा बार-बार युद्ध जैसी परिस्थिति पैदा करना इसका जीवंत उदाहरण है।
ऐसी परिस्थिति में यदि अधिक मास के उक्त दुष्प्रभाव को सीमित करना है तो विश्व पर्यावरण दिवस को एक दिन तक सीमित ना रखते हुए भारी संख्या में यदि बिल्व वृक्ष, आंधी झाड़ा वृक्ष, विधारा, केला, तुलसी एवं गूलर के वृक्ष लगाए जाएंगे तो बिना किसी तनातनी एवं हथियारों की तैनाती के मात्र प्रकृति को अपना सहयोग देकर हम इस टकराव एवं युद्ध जैसे हालात को टाल सकते हैं। यही हैं हमारी सनातन संस्कृति के अमूल्य सूत्र।

ज्योतिर्विज्ञान विवेचक:
महंत राघवेंद्र स्वामी
श्रीरामपंचायतन सिद्ध पीठ, मानस निकेतन, पंत विहार, सहारनपुर

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