क्या बात है जनाब ! बेटा मंत्री है तो पिता जी मुख्यमंत्री

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। सियासत की राह में बड़े पेंचोखम है। अपना वजूद बनाये और बचाए रखने के लिए कौन किस हद तक जाएगा इसंका अंदाजा लगा पाना बड़ा मुशकिल है। अन्य विधाओं की तरह इसमें भी अपने अपनों को आगे बढ़ाने का सबक राजनेताओं को फिल्मों से मिला या किसी दूसरे पेशे से कहना मुशकिल है। लेकिन इतना जरूर है कि परिवारवाद वंशवाद को लेकर जो पार्टियां सदन से सार्वजनिक मंंचों तक एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से नहीं थकती वही सारी पार्टियां आज इसी का अनुसरण भी कर रही है। हाल ही में जिस तरह शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पहले स्वयं मुख्यमंत्री पद की शपथ बाद में हुए विस्तार में उन्होंने अपने पुत्र आदित्य ठाकरें को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया।

उससे एक बात साफ है कि वंशवाद और जातिवाद से कोई पार्टी अछूती नहीं रही है। महाराष्टï्र में सरकार गठन से पहले पहले शिवसेना की कोशिश थी कि यदि भाजपा से गठबंधन की सरकार बने तो मुख्यमंत्री आदित्य ठाकरें को बनाया जाए लेकिन गठबंधन सरकार बनने के बाद उद्वव ठाकरे स्वयं मुख्यमंत्री बने और बेटे को मंत्री बनाया। यह पहला मौका है जब ने महाराष्टï्र मे पहली बार ठाकरे परिवार ने स्वयं सत्ता में सीधे सहभागिता की है। महाराष्टï्र में जहां पहली बार बेटा मंत्री और बाप मुख्यमंत्री बना है तो इस तरह के उदाहरण देश के दूसरे राज्यों में भी देखने को मिलते है।

उत्तर प्रदेश सहित देश के क ई राज्यों में जहां मुख्यमंत्रियों के बेटे उसी राज्य के मुख्यमंत्री बने तो कुछ सांसद और केन्द्र में मंत्री तक बने। महाराष्टï्र से पहले हरियाणा में मुख्यमंत्री रहे देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला वहां के मुख्यमंत्री रहे तो इस समय उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री है जबकि इन सबसे पहले मुख्यमंत्री रहे देवीलाल ने पहली बार सत्ता संभालने पर 17 जुलाई 1987 को जब वहां की कमान संभाली तो उन्होंने अपने पुत्र रणजीत चौटाला को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हे कृषि मंत्री बनाया। देवीलाल 2 दिसंबर 1989 तक हरियाणा के सीएम रहे उसके बाद वे केन्द्र में जनतादल आीर भाजपा गठबंधन सरकार में उपप्रधानमंत्री बने। देवीलाल के पुत्र रणजीत सिरसा इस समय भी वहां के बिजली मंत्री है। वे हरियाणा रानिया निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय चुनकर विधानसभा पहुंचे है।

हरियाणा की ही तरह दक्षिण के राज्य तामिलनाडु में भी बाप के सीएम रहते हुए बेटे को मिनिस्टर बनाए जाने का उदाहरण मौजूद है। कई बार तामिलनाडु के सीएम रहे एम.करूणानिधि के नेतृत्व मे 2006 में जब उनके नेतृत्व में सरकार बनी तो उन्होंने अपने पुत्र एमके स्टालिन को कैबिनेट मंत्री बनाया। स्टालिन2006 से 2009 तक मंत्री फिर 2009 से 2011 तक वहां के उपमुख्यमंत्री रहे। एमकरूणानिधि के निधन के बाद से वहीं उनकी राजनीतिक विरासत संभाल रहे है। हालांकि करूणानिधि की पुत्री कनिमोझी भी राजनीति में सक्रिय रही लेकिन उन्हे कभी सरकार में शामिल होने का मौका नहीं मिला।

आन्ध्रप्रदेश को काटकर बने नए राज्य तेलांगाना के पहले और मौजूदा मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव ने राज्यगठन के बाद दूसरी बार सत्तारूढ़ होने पर अपने पुत्र कलावाकुंतला तराका रामाराव को भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है। वे इस समय वहां के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्री है। तेलांगाना राज्य के गठन में के.चन्द्रशेखर राव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। केन्द्र में मंत्री रह चुके के.चन्द्रशेखर रामाराव ने तेलागांना राज्य के गठन को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। उसी आंदोलन का उन्हे लाभ मिला कि वे राज्य के गठन से लेकर अब तक वहां के मुख्यमंत्री बने हुए है। कांग्रेस से अलग होने के बाद ही उन्होने तेलांगाना राज्य के गठन को लेकर तेलांगाना राज्य समिति का गठन किया था।

लंबे समय से राष्टï्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा रहे शिरोमणि अकाली दल के मुखिया और कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने अपने पुत्र सुखबीर सिंह बादल को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया। 2007 में पंजाब भाजपा अकालीदल गठबंधन की सरकार बनने पर प्रकाश सिंह बादल ने पहले अपने पुत्र सुखबीर सिंह बादल को अकालीदल संगठन की कमान सौंपी फिर उन्हे 2009 मेंं उपमुख्यमंत्री बनाया जो इस पद पर 2012 तक रहे।

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