इसरो ने शुरु की रोवर प्रज्ञान और लैंडर विक्रम को जगाने की को‎शिश, इसरो चीफ ने ‎दी बड़ी जानकारी

-इसरो चीफ ने ‎दी जानकारी, बड़ी उपल‎ब्धि के ‎लिए 14 दिनों तक चलेगा इंतजार

नई दिल्ली (ईएमएस)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को फिर से जगाने की कोशिश शुरु कर दी है। यह प्र‎क्रिया 6 अक्टूबर को चंद्रमा पर होने वाले अगले सूर्यास्त तक जारी रहेगी। इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि चंद्रमा की सतह पर सूरज के उदय होने के एक दिन बाद चंद्रयान-3 मिशन के बोनस चरण को शुरू करने की महत्वाकांक्षी कोशिशों को तेज कर दिया गया।


बहरहाल इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि इस बारे में कोई निश्चित वक्त नहीं बताया जा सकता है कि इन उपकरणों के साथ संपर्क कब बहाल होगा। सोमनाथ ने कहा कि ‘हम नहीं जानते कि यह कब जागेगा। यह कल हो सकता है, या यह चंद्र दिवस के आखिरी दिन भी हो सकता है। लेकिन हम कोशिश कर रहे हैं। अगर लैंडर और रोवर जाग गए तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।’ एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी आशंका है कि लैंडर और रोवर एक चंद्र रात पूरे अंधेरे और माइनस 200 से माइनस 250 डिग्री सेल्सियस तक कम तापमान में बिताने के बाद निष्क्रिय ही रहेंगे। इतना कम तापमान इन उपकरणों के लिए बिजली का भंडारण करने वाली बैटरियों के लिए विनाशकारी है।

गौरतलब है कि चंद्रमा पर एक दिन और रात पृथ्वी के 14 दिन और रात के बराबर होता है। बहरहाल वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जैसे-जैसे चंद्रमा पर दिन आगे बढ़ेगा और चंद्रमा की सतह पर तापमान बढ़ेगा, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के जागने की संभावना भी बढ़ेगी। इससे पहले इसरो चीफ सोमनाथ ने कहा था कि जहां रोवर का परीक्षण कम तापमान में जीवित रहने के लिए किया गया है, वहीं लैंडर विक्रम के लिए ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ‘रोवर का पूरी तरह से परीक्षण किया गया है। लेकिन प्रज्ञान और विक्रम का बहुत सारा डिजाइन एक जैसा है। इसका मतलब यह है कि जो परीक्षण प्रज्ञान के लिए काम आए, वे विक्रम के लिए भी काम करने चाहिए।

निर्धारित समय के मुताबिक इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर को जगाने की कोशिश फिर शुरू कर दी थी। उस वक्त सूर्य की रोशनी उन उपकरणों को फिर से ताकत देने के लिए काफी मानी गई, जिन्हें लगभग 14 दिन पहले चंद्रमा पर रात की तैयारी में निष्क्रिय कर दिया गया था। इनको निष्क्रिय करने से पहले बैटरियों को पूरी तरह से चार्ज कर दिया गया था। साथ ही सौर पैनलों को इस तरह से सेट किया गया था कि सूरज उगते ही उन्हें रोशनी मिले। उनके रिसीवर भी चालू रखे गए थे, ताकि अगर उपकरण कम तापमान का सामना करने में सफल हों तो उन्हें फिर जगाया जा सके।

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