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दोस्तों जन्म और मृत्यु दो ऐसे सत्य है, जिन्हें चाहकर भी कोई बदल नहीं सकता.. न कोई किसी के जन्म का समय बदल सकता है और न ही किसी को उसकी मौत से बचा सकता है… और इसी बात को साबित करने के लिए आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनायेंगे कि आप भी ये बोल उठेंगे कि मृत्यु का समय और जगह कोई नहीं बदल सकता..
दरअसल, एक बार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठे शिव जी से मिलने जा रहे थे.. कैलाश पहुंच कर विष्णु जी भगवान शिव से मिलने चले गये और गरुड़ को द्वार पर ही रुकने को बोलने गये… अपने स्वामी की बात मानकर गरुड़ देव द्वार पर ही रुक गये.. तभी उनका ध्यान वहां बैठी एक छोटी सी चिड़िया पर गया.. वो चिड़ियां देखने में जितनी सुंदर थी.. उतनी ही चंचल भी.. उसकी हरकतें बार- बार गरुण देव का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी।
गरुण देव उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा ही रहे थे कि तभी वहां यमराज आ गये.. अंदर जाने से पहले वो कुछ देर द्वार पर रुके और बहुत ही अजीब तरह से उस चिड़िया को घूरने लगे… गरुण समझ गये कि यम देव उस चिड़िया को इतने आश्चर्य से देख रहें है, मतलब इसका अंत पास ही है.. लगता है कैलाश से वापस जाते समय वो इसे यमलोक ले जायेंगे।
यम देव तो शिव जी से मिलने अंदर चले गये लेकिन गरुण देव को ये चिंता खाये जा रही थी.. उन्हें चिड़िया की मासूमता पर दया आ गयी.. और उसकी जान बचाने के लिए उन्होंने उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारों मीलों दूर जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया.. अब मन ही मन वो इस बात से बहुत खुश हो रहे थे कि अब इस प्यारी सी चिड़िया की जान बच जायेगी।
गरुण देव वापस आये तो देखा यमराज कैलाश से वापस जा रहें हैं.. उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने यम देव को रोक कर उनसे पूछा ही लिया.. प्रभू आप उस मासूम चिड़िया को इतने आश्चर्य से क्यों देख रहे थे.. यम देव ने कहा, गरुण उस चिड़िया की मृत्यु निकट थी.. पर वो कैलाश में नहीं यहां से बहुत दूर एक जगह पर होनी थी.. मैं यही सोच रहा था कि ये छोटी सी चिड़िया इतनी जल्दी उड़कर हजारों कोस दूर कैसे जायेगी… पर अब वो यहां नहीं है, इसका मतलब वो वहां पहुंच चुकी है जहां उसकी मृत्यु होनी थी.. और अब तक उसकी मृत्यु हो भी चुकी होगी।
गरुण देव को खुद के किये पर बहुत पछतावा हुआ.. क्यों कि वो स्वयं उस चिड़िया को वहां छोड़कर आये थे.. लेकिन वो इस बात को समझ चुके थे कि किसी भी जीव की मृत्यु का समय तो तय होता ही है.. साथ ही उसका स्थान भी पहले ही निश्चित हो चुका होता है… आप सब के साथ चतुराई कर सकते हैं, लेकिन मृत्यु के साथ नहीं।
दोस्तों क्या आप जानते है मृत्यु का देवता कहे जाने वाले यमराज किस के पुत्र है…
आपको बता दें यमदेव किसी और के नहीं बल्कि सूर्य देव के पुत्र है और इनकी माता का नाम संज्ञा है… जीवों की मृत्यु लाने वाले देवता यम देव यमलोक के राजा है और इसीलिए इनका नाम यमराज है… वैसे क्या आपको पता है यमदेव को दक्षिण दिक्षा का दिक्पाल भी कहा जाता है.. यानि की दक्षिण दिक्षा की देख- रेख कि जिम्मेदारी भी इन्हीं के पास है… इसी लिए मृत्यु के समय शव को दक्षिण दिक्षा में ही रखा जाता है… बता दें मृत्यु के बाद सबसे पहले मनुष्य यमलोक ही जाता है.. इसके बाद वहां पर चित्रगुप्त उस प्राणी के कर्मों का हिसाब करते है… हिसाब के बाद ही यमराज ये तय करते है कि उसे नर्क मिलेगा या स्वर्ग… आपको बता दें यमपुरी एक हजार योजन तक में फैली हुई है.. और इसके चार द्वार है.. यमराज के पास ब्रह्मा जी से मिला काल दंड नाम का बेहद शक्ततिशाली अस्त्र है… कहा जाता है कि एक बार ये अस्त्र जिस पर छोड़ दिया जाये तो फिर दुश्मन को खत्म कर के ही वापस आता है… यमराज ने एक बार ये अस्त्र रावण पर भी छोड़ना चाहा था.. लेकिन तभी ब्रह्मा जी ने उन्हें ये कहकर रोक दिया था.. कि मैं रावण को वरदान दे चुका हूं… अगर रावण की मृत्यु हो जाती है.. तो मेरी बात झूठी साबित हो जायेगी.. इसलिए आप इस अस्त्र का इस्तेमाल रावण पर न करें।