राज्यसभा में जब PM ने कहा-गालियां मेरे खाते में जाने दो, अच्छा आपके खाते में और बुरा मेरे खाते में, पढ़े भाषण के 10 पॉइंट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब दिया। 77 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री प्रमुख रूप से किसान आंदोलन, बंगाल और कृषि कानून पर बात रखी। संसद से किसानों को आंदोलन खत्म करने की अपील की। कानूनों में बदलाव का रास्ता भी सुझाया। वहीं, विपक्ष के हमले को लेकर कहा कि गालियां मेरे खाते में जाने दो। अच्छा आपके खाते में, बुरा मेरे खाते में। आओ, मिलकर अच्छा करें।

मोदी के भाषण के 10 पॉइंट

1. राष्ट्रपति के भाषण की ताकत महसूस करें
पूरी दुनिया चुनौतियों से जूझ रही है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इन सबसे गुजरना होगा। इस दशक के प्रारंभ में ही राष्ट्रपति ने संयुक्त सदन में जो उद्बोधन दिया, जो नया आत्मविश्वास पैदा करने वाला था। यह उद्बोधन आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला था। करीब 13-14 घंटे तक सांसदों ने कई पहलुओं पर विचार रखे। अच्छा होता कि राष्ट्रपति का अभिभाषण सुनने के लिए भी सभी लोग होते, तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती। राष्ट्रपति के भाषण की ताकत इतनी थी, कई लोग न सुनने के बावजूद बहुत लोग बोल पाए। इससे भाषण का मूल्य आंका जा सकता है।

2. आंदोलन खत्म करें, मिलकर चर्चा करते हैं
आंदोलन में बूढ़े लोग भी बैठे हैं, इसे खत्म करें। आइए, मिलकर चर्चा करते हैं। ये समय खेती को खुशहाल बनाने का है, जिसे गंवाना नहीं है। पक्ष-विपक्ष हो, इन सुधारों को हमें मौका देना चाहिए। ये भी देखना होगा कि इनसे ये लाभ होता है या नहीं। मंडियां ज्यादा आधुनिक हों। MSP था, है और रहेगा।

सदन की पवित्रता को समझें। जिन 80 करोड़ लोगों को सस्ते में राशन मिलता है, वो जारी रहेगा। आबादी बढ़ रही है, जमीन के टुकड़े छोटे हो रहे हैं, हमें कुछ ऐसा करना होगा कि किसानी पर बोझ कम हों और किसान परिवार के लिए रोजगार के अवसर बढ़ें। हम अपने ही राजनीतिक समीकरणों के फंसे रहेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा।

3. कर्ज माफी चुनावी नारा बनता जा रहा
चुनाव आते ही एक कार्यक्रम होता है- कर्ज माफी। इससे छोटे किसान का कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि उसका तो बैंक का खाता भी नहीं होता। पहले की फसल बीमा योजना उस बड़े किसान के लिए थी, जो बैंक से लोन लेता था। सिंचाई की सुविधा भी बड़े किसान के लिए थी, वे ही ट्यूबवेल लगा सकते थे। बड़े किसान ही यूरिया ले सकते थे, छोटे किसान को तो लाठियां खानी पड़ती थीं।

4. नई सोच कभी भी आ सकती है
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना किसान की जिंदगी बदलने वाली योजना है। अब किसान शहरों तक अपना माल बेच रहा है। किसान उड़ान योजना का लाभ भी मिल रहा है। हर सरकारों ने कृषि सुधारों की वकालत की है। सबको लगा कि अब समय आ गया है कि ये हो जाएगा। मैं भी दावा नहीं कर सकता कि हम सबसे अच्छा सोच सकते हैं। आगे भी नई सोच आ सकती है। इसको कोई रोक नहीं सकता। आपको (विपक्ष) किसानों को ये बताना चाहिए कि सुधार वक्त की जरूरत है।

5. तीसरी दुनिया का देश रिकॉर्ड समय में वैक्सीन लाया
जिस देश को थर्ड वर्ल्ड में गिना जाता है, वह देश इतने कम समय में वैक्सीन लेकर आ जाए तो गर्व होता है। मेरे देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। कोरोना ने दुनिया के साथ हमारे रिश्तों को नया आयाम दिया। भारत ने 150 देशों में मानवजाति की रक्षा के लिए दवा भेजी। कई देश कह रहे हैं कि हमारे पास भारत की वैक्सीन आ गई है। विदेशों में जब लोग ऑपरेशन कराने जाते हैं तो देखते हैं कि कोई भारतीय डॉक्टर है या नहीं। अगर ऐसा होता है तो उनकी आंखों में चमक आ जाती है। यही हमने कमाया है।

6. बंगाल के रास्ते लोकतंत्र की नसीहत
डेरेक ओ’ब्रायन (बंगाल से तृणमूल सांसद) से फ्रीडम ऑफ स्पीच इंटीमिडेटेशन, हाउडी जैसे शब्द सुन रहा था। लगा कि बंगाल की बात रहे हैं कि देश की। बहुत देर तक जब बोलते रहे तो लगा कि इमरजेंसी तक पहुंचेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। देश की मूलभूत शक्ति को समझने का प्रयास करें। हमारा लोकतंत्र वेस्टर्न नहीं, ह्यूमन इंस्टीट्यूशन है। यहां लोकतंत्र को लेकर भी काफी कुछ कहा गया (हंसते हुए)। मैं नहीं मानता कि कोई भी नागरिक इस पर भरोसा करेगा। हम किसी की खाल उधेड़ सकते हैं, ऐसी गलती न करें।

7. हमारा लोकतंत्र सबसे पुराना, खुद को न कोसें
प्राचीन भारत में 181 गणतंत्रों का वर्णन है। भारत का राष्ट्रवाद न संकीर्ण, न स्वार्थी और न ही आक्रामक है। यह सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित है। ऐसा सुभाष चंद्र बोस ने कहा है। जाने-अनजाने में हमने नेताजी के विचारों, आदर्शों को भुला दिया है। हम खुद को कोसने लगते हैं।

दुनिया हमें जो शब्द दे देती है, उसे पकड़कर चलने लगते हैं। हमने युवा पीढ़ी को सिखाया ही नहीं कि यह देश लोकतंत्र की जननी है। ये बात हमें गर्व से बोलनी होगी। इमरजेंसी को याद कीजिए कि उस समय क्या हाल था। हर संस्था जेल बन चुकी थी। पर संस्कारों की ताकत थी, लोकतंत्र कायम रह सका।

8. आत्मनिर्भर भारत की दुनिया में जय-जयकार
भारत में जबर्दस्त निवेश हो रहा है। एक तरफ निराशा का माहौल है। दूसरी तरफ डबल डिजिट में ग्रोथ का अनुमान है। हर महीने हम 4 लाख करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन कर रहे हैं। दुनिया में इसकी जय-जयकार हो रही है। 2014 में जब पहली बार सदन में आया था, तो कहा कि सरकार गरीबों को समर्पित है। आज फिर यही बात कहता हूं। हमने अपना लक्ष्य डायल्यूट नहीं किया है। चुनौतियां जरूर हैं, पर तय यह करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या समाधान का। समस्या का हिस्सा बनेंगे, तो राजनीति चलेगी। समाधान का हिस्सा बनेंगे, तो राष्ट्रनीति मजबूत होती चली जाएगी।

9. देश का मनोबल तोड़ने वाली बातों में न उलझें
सोशल मीडिया में देखा होगा कि फुटपाथ पर बैठी बूढ़ी मां दीया जलाकर बैठी थी। हम उसका मखौल उड़ा रहे हैं। जिसने स्कूल का दरवाजा नहीं देखा, पर उन्होंने देश में सामूहिक शक्ति का परिचय करवाया, पर इन सबका मजाक उड़ाया गया। विरोध करने के लिए कितने मुद्दे होते हैं, देश के मनोबल तोड़ने वाली बातों में न उलझें। हमारे कोरोना वॉरियर्स ने कठिन समय में जिम्मेदारी निभाई, उनका आदर करना चाहिए।

10. मेरे साथ करोड़ों लोगों की ताकत
एक मंत्र का उल्लेख करना चाहूंगा। वेदों में महान विचार है- अयूतो अहम, अयूतो मे आत्मा, अयूतं मे चक्षु…। यानी मैं एक नहीं हूं, मैं अकेला नहीं हूं, मैं अपने साथ करोड़ों मानवों को देखता हूं, अनूभूत करता हूं, मेरे साथ करोड़ों की शक्ति है। इसलिए 130 करोड़ देशवासियों की सपने देश के सपने हैं। देश जो प्रयास कर रहा है, वो दूरगामी होंगे।

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