सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिका पर सुरक्षित रखा फैसला

नई दिल्ली (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने असम के अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुरक्षित रखने का आदेश दिया।

आज सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे अवैध प्रवासियों का आंकड़ा जुटाना संभव नहीं है, क्योंकि ऐसे लोग देश में चोरी-छिपे प्रवेश करते हैं। केंद्र की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि इस प्रावधान के तहत 17,861 लोगों को नागरिकता प्रदान की गई है। केंद्र ने कहा कि 1966 से लेकर 1971 के बीच फॉरेन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत 32,381 ऐसे लोगों को पता लगाया गया, जो विदेशी थे।

कोर्ट ने सवाल पूछा था कि 25 मार्च, 1971 के बाद भारत में अवैध तरीके से घुसे प्रवासियों की अनुमानित संख्या कितनी है। इस पर केंद्र ने कहा कि अवैध प्रवासी बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के गुप्त तरीके से देश में प्रवेश करते हैं। अवैध रूप से रह रहे ऐसे विदेशी नागरिकों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना एक जटिल प्रक्रिया है। चूंकि देश में ऐसे लोग गुप्त तरीके और चोरी-छिपे प्रवेश कर जाते हैं, इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे ऐसे अवैध प्रवासियों का सटीक आंकड़ा जुटाना संभव नहीं है।

उल्लेखनीय है कि 7 दिसंबर को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 6ए के चलते प्रवासियों की बड़ी संख्या के चलते राज्य की जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ने, मूल निवासियों के रोजगार घटने, उनके संसाधनों पर कब्जा होने को लेकर याचिकाकर्ताओं ने जो चिंता जाहिर की है, वो सही हो सकती है। पर 6ए को असंवैधानिक करार देना इसका समाधान नहीं है। मेहता ने कहा था कि 6ए का दायरा बेहद सीमित है। ये प्रावधान एक खास समय में एक राज्य विशेष (असम) में एक देश विशेष (बांग्लादेश) से आने वाले प्रवासियों के लिए है।

5 दिसंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की धारा 6ए संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है। हम भारत में भाईचारा, नागरिकता, एकता और अखंडता की बात करते हैं। उन्होंने कहा था कि धारा 6ए संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 29 का उल्लंघन करता है।

दीवान ने असम के तत्कालीन राज्यपाल एसके सिन्हा की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा था कि बांग्लादेश से असम में आने वाले अवैध घुसपैठियों की वजह से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। दीवान ने 1 दिसंबर, 2015 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। तब मेहता ने कहा था कि एनआरसी न तो अधिकार है और न ही स्क्रूटनी। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता ही स्क्रूटनी की बात करता है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि जस्टिस नरीमन के फैसले के 11 बिंदु पहलू मात्र हैं।

संविधान बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। याचिकाओं में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में हुए संशोधन को चुनौती दी गई है।

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