म्यांमार में सैन्य तख्तापलट को एक साल होने को है। इस सैन्य तख्तापलट में राष्ट्रीय आइकन आंग सान सू की को गिरफ्तार और उनकी सरकार को भंग कर दिया गया था। इस बीच आज संयुक्त राष्ट्र (UN) महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने म्यांमार के लोगों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि UN एक समावेशी, लोकतांत्रिक समाज की वापसी के लिए खड़ा है और वह मानवाधिकारों का हनन नहीं होने देगा।

बिगड़ती मानवीय स्थिति पर जताई चिंता
एक बयान में महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कई संकटों का वर्णन करते हुए कहा है कि वह म्यांमार में हिंसा, मानवाधिकारों के उल्लंघन, बढ़ती गरीबी और सैन्य शासन द्वारा बिगड़ती मानवीय स्थितियों के प्रति चिंतित है। उन्होंने कहा कि म्यांमार में सभी लोगों की कई कमजोरियों और इसके क्षेत्रीय प्रभावों के लिए तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
आसियान को सहयोग देने की कही बात
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि वह म्यांमार के लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के बीच मजबूत सहयोग सहित तत्काल कार्रवाई करना जारी रखेंगे। गुटेरेस ने कहा कि समावेशी संवाद के लिए एक बेहतर वातावरण बनाने के लिए यह महत्वपूर्ण है। किसी भी समाधान को मौजूदा संकट से प्रभावित सभी लोगों के साथ सीधे जुड़ने और ध्यान से सुनने से प्राप्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि लोगों की आवाज को सुना और बढ़ाया जाना चाहिए।
चीन ने दो दिन पहले ही लगाई थी गुहार
संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जुन ने शुक्रवार को गुहार लगाते हुए कहा था कि संघर्षग्रस्त म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्राथमिक उद्देश्य उसे और हिंसा तथा गृह युद्ध की स्थिति से बचाना होना चाहिए। सुरक्षा परिषद के दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के 10 सदस्यीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के नए राजदूतों से बंद कमरे में हुई बैठक के बाद झांग जुन ने उम्मीद जतायी थी कि उनके तथा अन्य लोगों के प्रयासों से स्थिति को शांत किया जाएगा।
पिछले साल बर्मी सेना ने किया था तख्तापलट
बता दें कि बर्मी सेना ने पिछले साल 1 फरवरी को आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन मिंट के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका था और आपातकाल की घोषणा की थी। इस दौरान लोकतांत्रिक नेताओं को कैद भी किया गया था, जबकि तख्तापलट और मार्शल लॉ लगाने के खिलाफ सड़क पर हो रहे विरोध को क्रूरता से दबा दिया था। गौरतलब है कि विरोध की आवाज उठाने के लिए लगभग 12,000 को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया था, जिनमें से लगभग 9,000 हिरासत में हैं, और कम से कम 290 हिरासत में मारे गए थे।