
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले फैसले को लेकर न्यायपालिका के प्रति कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है। धनखड़ ने कहा कि हम देश में ऐसी स्थिति नहीं बना सकते हैं जहां पर अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने जस्टिस वर्मा के आवास पर मिले कैश को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने इस मामले में कोई FIR ना किए जाने पर भी सवाल खड़े किए हैं।
जस्टिस वर्मा केस पर क्या बोले धनखड़?
जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह के दौरान कहा, “14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना घटी। सात दिनों तक किसी को इस बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे, क्या देरी की वजह समझ में आती है? क्या यह माफी के लायक है?” उन्होंने कहा कि 21 मार्च को एक अखबार ने खुलासा किया और तब जाकर इसका पता चल सका। उन्होंने कहा, “देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है। क्योंकि हमारी एक संस्था जिसे लोग हमेशा सर्वोच्च सम्मान और आदर के साथ देखते हैं वो कटघरे में है। अब एक महीने से ज़्यादा हो गया है। अब चीज़ों को सार्वजनिक किए जाने का समय आ गया है।”
धनखड़ ने कहा, “मुझे किसी व्यक्ति पर संदेह करने के रूप में गलत नहीं समझा जाना चाहिए। लेकिन एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में इसकी आपराधिक न्याय प्रणाली की शुद्धता इसकी दिशा निर्धारित करती है। जांच की आवश्यकता है। फिलहाल कानून के तहत कोई जांच नहीं चल रही है। क्योंकि आपराधिक जांच के लिए FIR की ज़रूरत है जो अब तक नहीं की गई है। संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट न करना खुद में एक अपराध है।”
उन्होंने कहा, “इस मामले की जांच तीन जजों की समिति कर रही है, लेकिन जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है। जांच न्यायपालिका का अधिकार क्षेत्र नहीं है। क्या यह समिति भारत के संविधान के अधीन है? नहीं। क्या तीन जजों की इस समिति को संसद से पारित किसी कानून के तहत कोई मंजूरी मिली हुई है? नहीं। समिति अधिक से अधिक सिफारिश कर सकती है।”
राष्ट्रपति को लेकर SC के आदेश पर नाराज़ हुए धनखड़
धनखड़ ने कहा, “हाल ही में एक निर्णय के द्वारा राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया था। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें अत्यंत संवेदनशील होना चाहिए। यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है तो यह कानून बन जाता है।” उन्होंने कहा, “इसलिए हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे, और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है। प्रत्येक सांसद, और विधानसभा या संसद के किसी भी चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी संपत्ति घोषित करना आवश्यक है। वे ऐसा नहीं करते हैं। कुछ करते हैं लेकिन कुछ नहीं करते हैं।”
न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों पर धनखड़
धनखड़ ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के फैसलों को लेकर कहा है, “संसद न्यायालय के निर्णय को नहीं लिख सकती। संसद केवल कानून बना सकती है और न्यायपालिका तथा कार्यपालिका सहित संस्थाओं को जवाबदेह ठहरा सकती है। निर्णय लिखना, निर्णय लेना, न्यायपालिका का एकमात्र विशेषाधिकार है जितना कि कानून बनाना संसद का है। लेकिन अक्सर हम देख रहे हैं कि कार्यकारी शासन न्यायिक आदेशों द्वारा होता है।” धनखड़ ने कहा, “जब सरकार लोगों द्वारा चुनी जाती है तो वह संसद के प्रति जवाबदेह होती है। सरकार चुनाव में लोगों के प्रति जवाबदेह होती है। जवाबदेही का एक सिद्धांत लागू होता है। संसद में, आप प्रश्न पूछ सकते हैं, महत्वपूर्ण प्रश्न, क्योंकि शासन कार्यपालिका द्वारा होता है। लेकिन अगर यह कार्यकारी शासन न्यायपालिका द्वारा होता है, तो आप प्रश्न कैसे पूछेंगे? आप चुनावों में किसे जवाबदेह ठहराते हैं?”