कितनी सैलरी पाते हैं पाक आर्मी चीफ असीम मुनीर? क्या विदेशों में भी है अरबों की संपत्ति?

Pakistan Army Chief: पाकिस्तान कितनी ही अपनी ताकत का झूठा प्रचार कर ले, सच क्या है, भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरी दुनिया ने देख लिया. पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान को धो डाला. भारतीय सेना ने POK स्थिति 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किया और 100 से ज्यादा आतंकी ढेर किए. पाकिस्तान की सेना और सरकार हमेशा से आतंकी आकाओं को शरण देती आई है और जब पोल खुलती है तो खुलेआम झूठा प्रपंच करते नजर आते हैं. पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर का नाम भी काफी चर्चा में है. इसलिए नहीं कि उन्होंने कोई बहादुरी का काम किया है बल्कि इसलिए की वो भारतीय सेना के आगे टिक नहीं पाए. चार दिन के युद्ध में ही पाकिस्तान की सेना कितनी मजबूत है, सब दिख गया. आसिम मुनीर का नाम आतंकियों को समर्थन देने में सबसे पहले आता है. पाक में तो वैसे ही सरकार कम और सेना की ज्यादा चलती है. इसलिए आतंकियों की मौत पर मुनीर को आंसू बहाते देखा गया. 

पाकिस्‍तान जैसा देश, जो दुनिया भर के कर्ज में डूब हुआ है और उसकी पूरी अर्थव्‍यवस्‍था कर्ज के भरोसे ही चल रही है, अपनी सेना के ऊपर बहुत ज्‍यादा पैसे खर्च करता है. ऐसे में यह जानना दिलचस्‍प होगा कि आतंकियों के खैरख्‍वाह असीम मुनीर को कितनी सैलरी मिलती है.

कितनी है सैलरी?

भारत में सातवें वेतन आयोग के मुताबिक सेना प्रमुख को करीब ढाई लाख रुपये सैलरी दी जाती है. साथ ही गार्ड, बंगला, अलग से अलाउंस, ड्राइवर, मेडिकल आदि शामिल हैं. वहीं रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है. वहीं पाकिस्तान की बात करें तो वहां भी आर्मी चीफ की सैलरी 2,50,000 पाकिस्‍तानी रुपये ही है, जो कि भारत के 75 हजार रुपये के बराबर है. वहां चीफ को कम सुविधा मिलती है. उनके पास फ्री इलाज, बंगला, ड्राइवर और गाड़ी होती है. इसके अलावा पाकिस्‍तान में बड़े सैन्‍य अफसरों के कई और भी बिजनेस होते हैं, वैसे ही जनरल मुनीर भी डेयरी और ट्रांसपोर्ट के बिजनेस के मालिक हैं. 

आसिम मुनीर आतंकियों के हमदर्द

भारत और पाकिस्तान की सेना में जमीन आसमान का अंतर है. भारतीय सेना हमेशा देश हित और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती है वहीं पाकिस्तान में तो सेना आतंकियों के मारे जाने पर फूट-फूट कर रोती नजर आती है. जैसे कि आसिम मुनीर. पाकिस्तान में आर्मी चीफ का कार्यकाल तीन साल का ही होता है, लेकिन इसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है. वहां की सेना अपनी ड्यूटी निभाने से ज्यादा राजनीति और आर्थिक मामलों में दखल देने में व्यस्त रहती है. आर्मी चीफ सरकार, खुफिया विभाग और विदेश नीति में योगदान देते हैं.

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