
- हृदयरोग संस्थान और चेस्ट अस्पताल में कुछ भी गड़बड़ नहीं मिला
- दोनों संस्थानों की तमाम रिपोर्ट में दिल-फेफड़ा को चंगा बताया गया
- पीड़ितों का दावा है कि, जमानत के लिए मेडिकल आधार की जुगत
भास्कर ब्यूरो
कानपुर। तनिक फ्लैशबैक में चलते हैं। 27 सितंबर शनिवार की सुबह जिला कारागार में कैद अखिलेश दुबे ने सीने में तेज दर्द की शिकायत दर्ज कराई तो आनन-फानन में जेल के डाक्टर्स ने जांच के बाद कार्डियोलॉजी अस्पताल रेफर कर दिया। जांच में कुछ भी गड़बड़ नहीं मिला तो पड़ोस में मुरारीलाल चेस्ट अस्पताल में जांच हुई। यहां भी सब कुछ चंगा मिलने के बाद साकेत दरबार के आका को वापस बैरक में भेज दिया गया। अखिलेश के कहर से पीड़ितों का कहना है कि, कानूनी दांव-पेंच के महारथी ने दया के आधार पर जमानत हासिल करने के लिए स्वांग रचा था। पीड़ितों के दावों में दम है, क्योंकि रिपोर्ट में कुछ भी गड़बड़ नहीं मिला, बावजूद जेल के डाक्टर्स ने हड़बड़ी में क्यों बाहर भेजा। इसके अतिरिक्त सामान्य रुटीन जांच के लिए कार्डियोलॉजी भेजा गया था तो अखिलेश दुबे के परिजनों को भनक क्यों और कैसे लगी। ऐसे तमाम सवालों पर जेल प्रशासन मौन है, लेकिन अंदरखाने जमानत के जुगाड़ और जुगत की कारस्तानियां सामने आने लगी हैं।
रुटीन जांच थी तो सिर्फ एक कैदी क्यों
बीते शनिवार को अखिलेश दुबे ने सीने में दर्द की शिकायत दर्ज कराई तो जेल अस्पताल के काबिल डाक्टर्स से जांच और इलाज कराने की सुविधा मुहैया थी। बावजूद, जेल प्रशासन ने अखिलेश दुबे को आनन-फानन में हृदयरोग संस्थान भेजने का फैसला किया। सवाल करने पर जेल अधीक्षक बी.डी. पाण्डेय ने बताया कि, रुटीन जांच कराई गई थी। जेल अधीक्षक के तर्क पर अखिलेश दुबे के खिलाफ इंसाफ के लिए मोर्चा थामने वाली प्रज्ञा त्रिवेदी का सवाल है कि, क्या जेल अस्पताल में कैदियों के रूटीन जांच की सुविधा मुहैया नहीं है। यदि सुविधा उपलब्ध है तो अखिलेश दुबे को बाहर क्यों भेजा गया। जेल में सामान्य रुटीन जांच की सुविधा मुहैया नहीं है, तो अन्य कैदियों को शिकायत दर्ज कराने के बावजूद बाहर के अस्पतालों में क्यों नहीं रेफर किया जाता है। अधिवक्ता सौरभ भदौरिया का कहना है कि, यदि अखिलेश दुबे की स्थिति नाजुक थी तो हृदयरोग संस्थान और चेस्ट अस्पताल की रिपोर्ट में किसी अंग में कोई गड़बड़ी क्यों नहीं आई। सौरभ भदौरिया का दावा है कि, राजधानी में तैनात कुछ वरिष्ठ आईपीएस के इशारों पर जेल के अंदर अखिलेश दुबे की वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा है। इसी के नतीजे में शनिवार को अखिलेश दुबे को जेल से बाहर आने का मौका मिला, भले की कुछ घंटे के लिए।
पहले भी मेडिकल आधार पर जमानत की गुहार
अखिलेश दुबे को जेल अस्पताल से इतर हृदयरोग संस्थान में जांच कराने के फैसले को अखिलेश दुबे से पीड़ित अधिवक्ता मनोज सिंह भी संशय की नजर से देखते हैं। मनोज सिंह ने कहाकि, अव्वल सीने में दर्द की शिकायत सच होती तो कार्डियोलॉजी और चेस्ट अस्पताल की जांच रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ी दिखती, जोकि सामान्य है। उन्होंने बताया कि, पहले भी अखिलेश दुबे ने सीजेएम कोर्ट में जमानत के लिए उम्र और बीमारी का हवाला देते हुए गुहार लगाई थी। कोर्ट ने जमानत याचिका को खारिज करते हुए जेल प्रशासन को अखिलेश दुबे की समुचित और बेहतर चिकित्सा के लिए आदेश दिया था। उन्होंने कहाकि, एक बार फिर गंभीर बीमारी का हवाला देकर जमानत की जुगत है, लेकिन कार्डियोलॉजी में सेटिंग नहीं होने के कारण अरमानों पर पानी फिर गया।
बाहर भेजा तो परिजनों को खबर क्यों हुई
चर्चा है कि, जांच के लिए कार्डियोलॉजी जाते समय अखिलेश दुबे की परिजनों की कार भी जेल के कारवां में शामिल हो गई थी। हृदयरोग संस्थान में अखिलेश दुबे का पत्नी से आमना-सामना भी हुआ था। सूत्रों ने बताया कि, चश्मे के केस से एक पर्ची निकालकर अखिलेश ने पत्नी को थमाई थी। इस मुद्दे जवाहर विद्या समिति के सदस्य आशीष शुक्ला का कहना है कि, समूचे प्रकरण में साजिश की बदबू आती है। अव्वल किसी कैदी को जेल से बाहर अन्यत्र भेजने की सूचना बेहद गोपनीय होनी चाहिए, क्योंकि रास्ते में विरोधी अथवा समर्थक पक्ष द्वारा अनहोनी की आशंका रहती है। ऐसे में अखिलेश दुबे के परिजनों को बगैर गंभीर स्थिति कार्डियोलॉजी पहुंचने की सूचना क्यों भेजी गई। उन्होंने कहाकि, अस्पताल परिसर में पर्ची देने की जांच जरूरी थी कि, आखिर पर्ची में क्या संदेश लिखा था।
कोट्स….
मेडिकल आधार पर जमानत मिलना आसान होता है, लेकिन किसी स्थापित अस्पताल से गंभीर समस्या की रिपोर्ट होनी चाहिए। इसी कारण शातिर अपराधी और माफिया मेडिकल ग्राउंड पर गुहार लगाते हैं। इसके अतिरिक्त जेल के बाहर अस्पताल में भर्ती होने की कोशिश का प्रयास भी मुमकिन है।
- आशुतोष मिश्रा, वरिष्ठ अधिवक्ता