काठमांडू (हि.स.)। पिछले पांच महीने में कोशी प्रदेश में पांचवे मुख्यमंत्री की नियुक्ति हुई है। लेकिन इस बार सत्तारूढ़ गठबन्धन में दरार आ गई है। प्रदेश में सत्तारूढ़ गठबन्धन की सबसे बडी पार्टी नेपाली कांग्रेस के एक गुट ने विपक्षी दल नेकपा एमाले के समर्थन में मुख्यमंत्री का पद ले लिया है। इस घटनाक्रम ने सत्तारूढ़ गठबन्धन में स्पष्ट विभाजन ला दिया है।
एक नाटकीय घटनाक्रम में सत्तारूढ़ गठबन्धन की सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस के विधायक केदार कार्की ने अपने साथ 8 विधायकों को लेकर विपक्षी दल नेकपा एमाले के 40 विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री के पद पर दावा कर दिया। नेपाल के संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक कोशी प्रदेश के राज्यपाल ने कार्की को मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति दे दी है।
हालांकि गठबन्धन के तरफ से माओवादी विधायक को मुख्यमंत्री के पद पर दावा करने का निर्णय किया गया था। लेकिन गठबन्धन के ही आठ विधायकों के विपक्षी दल के साथ मिल जाने से गठबन्धन के उम्मीद्वार को बहुमत नहीं मिल पाया। नेपाल के संविधान के मुताबिक जब किसी भी एक पार्टी या कोई एक गठबन्धन सरकार बनाने में असफल रहता है तो सदन के किसी भी एक विधायक जो अपने पक्ष में बहुमत सांसदों का समर्थन जुटा लेता है वह सरकार बना सकता है। ऐसी परिस्थिति में कोई भी राजनीतिक दल अपने विधायक पर पार्टी का ह्वीप नहीं लाद सकता है या फिर पार्टी लाईन से बाहर जाकर समर्थन देने पर उस पर पार्टी कार्रवाई नहीं कर सकती है।
इसी संवैधानिक प्रावधान के तहत सत्तारूढ़ दल के कार्की ने विपक्षी दल का समर्थन लेकर मुख्यमंत्री नियुक्त हो गए हैं। शनिवार को कोशी प्रदेश के राज्यपाल परशुराम खापुंग के पक्ष में हस्ताक्षर करने वाले सभी 47 विधायकों की व्यक्तिगत शिनाख्त करते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति कर दी। कार्की को रविवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी।
कार्की के मुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति के तुरन्त बाद प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल प्रचण्ड ने कहा कि गठबन्धन को बचाने के लिए कार्की को ही सभी सत्तारूढ़ गठबन्धन के तरफ से समर्थन दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की आन्तरिक कलह के कारण जो असमझदारी बन गई है उसको हटाते हुए कार्की को ही समर्थन दिया जाएगा। सत्तारूढ़ घटक के एक अन्य नेता माधव कुमार नेपाल ने कहा कि कोशी प्रदेश में मध्यावधि चुनाव रोकने के लिए सर्वदलीय सरकार गठन करना चाहिए।
गठबन्धन के बांकी दलों की तरह नेपाली कांग्रेस खुल कर कुछ भी नहीं बोल रही है। उसके आठ विधायकों के द्वारा विद्रोह करने पर पार्टी के भीतर का अन्तरकलह खुल कर सामने आ गया है। अपने बागी विधायकों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग पार्टी के भीतर से ही उठ रहा है। लेकिन दूसरी तरफ गठबन्धन टूटने का खतरा भी बना हुआ है।