दोस्तों आपने ऐसा कई बार सुना होगा कि पति- पत्नी को पूजा में पंडित जी हमेशा साथ में बिठाते है.. आप में से कई लोगो ने कई बार ऐसा किया भी होगा.. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है पूजा में पति- पत्नी का साथ बैठना जरुरी क्यों होतै है… आखिर किस वजह से इस पर इतना जोर दिया जाता है…
आपको बता दें हमारे हिंदू धर्म में पति-पत्नी का पूजा में एक साथ पूजा में बैठना बहुत जरुरी और महत्वपूर्ण बताया गया है… मान्यता है कि पति को कभी भी किसी पूजा में बिना अपनी पत्नी के नहीं बैठना चाहिए… क्यों कि ऐसा करने से आपके द्वारा की गयी पूजा का आपको पूरा फल नहीं प्राप्त होता है… और यही बात पत्नियों के लिए भी कही गयी है… अगर कोई पत्नी किसी पूजा में पति के बगैर बैठती है, तो उसकी वो पूजा अधूरी मानी जाती है।
इतना ही नहीं पूजा में साथ बैठते समय इस बात का भी ध्यान देना बहुत जरुरी है कि पत्नी अपने पति के किस ओर बैठे…. शास्त्रों की माने पूजा में पत्नी को हमेशा पति के दाएं हाथ की तरफ बैठना चाहिए… ऐसा करना बहुत ही शुभ और फलदायी बताया गया है… मान्यता है कि पूजा में सही दिशा में न बैठने से पति- पत्नी के जीवन में कई तरह की समस्याएं आने लगती हा.. क्यों कि ऐसे नियम को न मानना बहुत अशुभ होता है।
कहते है यज्ञ, व्रत, दान, देवयात्रा, होम और विवाह जैसे शुभ कामों में पति- पत्नी का साथ होना बहुत अच्छा माना जाता है.. और तो और हमारे पुराणों में ये भी बताया गया है कि किसी पूजनीय व्यक्ति के पैर छूते समय या फिर खाना खाते समय किस दिशा की तरफ मुंह करना चाहिए… बता दें अगर आप अपने से बड़े व्यक्ति के पैर छूते है, या स्नान करते है , या फिर भोजन करते है.. तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी को अपने पति के बाएं हाथ की तरफ होना चाहिए… तभी जो काम आप कर रहें है.. उसका आपको सही फल मिलेगा।
वैसे बता दें हमारे शास्त्रों में सही दिशा में न बैठना कोई अपराध या पाप नहीं कहा गया है.. सिर्फ इससे उस की फल की प्राप्ति नहीं होती… जो आप चाह रहे होते है।
एक प्रचलित कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम को रामेश्वरम की स्थापना करनी थी… उस वक्त सबसे बड़ी समस्या उनके लिए ये थी कि उनके साथ माता सीता नहीं.. क्योंकि रावण ने उनका हरण कर लिया था.. औप बिना पत्नी के इतना महत्वपूर्ण काम नहीं हो सकता था… इसके साथ ही एक समस्या ये भी थी की स्थापना के लिए एक पुरोहित की भी आवश्कता थी.. इसलिए श्रीराम ने जब पूछा की यहां सबसे ज्ञानी पुरोहित कौन है.. तो उन्हें रावण का सुझाव दिया गया… आपने सुना होगा रावण के जैसा विद्वान और ज्ञानी ब्राह्मण आज तक कोई दूसरा नहीं हुआ… इसके बाद जब रावण से पुरोहित बनने और शिवलिंग की स्थापना की बात बतायी गई तो अपने ब्राह्मण धर्म का पालने के लिए वो मान गया… इसकी एक वजह ये भी थी कि लंकापति रावण खुद भी महादेव का सबसे बड़ा भक्त था.. कहते उसे पता था कि माता सीता के बिना श्रीराम ये स्थापना पूरी नहीम कर सकते.. क्यों कि पूजा पाठ के कामों में पत्नी का साथ होना बहुत जरुरी होता है.. इसलिए वो देवी सीता को वहां ले गया.. फिर प्रभु राम और माता सीता ने साथ बैठकर शिवलिंग बनाया और रावण ने पुरोहित का धर्म निभाते हुए मंत्रों के उच्चारण के साथ रामेश्वरम की स्थापना करवायी… इसके बाद वो माता सीता को लेकर वापस लंका चला गया।
हालांकि हमारे शास्त्र और पुराणों में इस कथा का कोई उल्लेख नहीं है.. लेकिन कई लोगों का मानना है कि ऐसा भी हुआ था… लेकिन इस बात से आप समझ सकते है कि पूजा पाठ जैसे शुभ कामों में पत्नी का अपने पति के साथ होना कितना जरुरी है।
भगवान होते हुए भी जब श्रीराम ने इन नियमों का पालन करना जरुरी समझा तो आप तो एक साधारण इंसान है… इसलिए अच्छा होगा अगली बार ऐसा कोई काम करने के लिए अपनी पत्नी को साथ लें जाये आप।