बांग्लादेश में फिर भड़की हिंसा: हिंदू कारोबारी की पीट-पीटकर हत्या, लाश पर जश्न मनाती रही भीड़

बांग्लादेश में बीते एक साल में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाएं खतरनाक रूप से बढ़ी हैं. अगस्त 2024 की ‘जुलाई क्रांति’ के बाद भीड़ द्वारा हमले, मंदिरों की तोड़फोड़, धार्मिक अपमान के झूठे आरोप, व्यवसायों पर कब्ज़ा और हत्याएं आम हो गई हैं.

9 जुलाई 2025 की शाम लगभग 6 बजे पुराने ढाका के मिटफोर्ड अस्पताल के चौथे गेट के पास हिंदू शख्स लाल चंद सोहाग नाम के 39 साल के कबाड़ व्यापारी को पत्थरों और कंक्रीट स्लैब से इतनी बेरहमी से पीटा गया, जिसके कारण उसकी मौत हो गई.

लाश पर नाची भीड़

लाल चंद की हत्या करने के बाद भीड़ ने उसके शव के ऊपर नाचना शुरू कर दिया. यह सब कैमरे में कैद हो गया और वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है, जिसे देख लोगों में आक्रोश की लहर दौड़ गई है.

छात्रों ने किया प्रदर्शन

ढाकाविश्वविद्यालय (DU), BUET, जगन्नाथ, जाहांगीरनगर और राजशाही विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के छात्र एक साथ सड़कों पर उतर आए. उनके हाथों में तख्तियां थीं और आंखों में आक्रोश. सिर्फ सरकारी विश्वविद्यालय ही नहीं, BRAC, NSU, ईस्ट वेस्ट यूनिवर्सिटी और ईडन कॉलेज जैसे निजी संस्थानों के छात्र भी अपने कैम्पस की दीवारों को चीरते हुए बाहर आए. 

पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारी

लाल चंद सोहाग की निर्मम हत्या के बाद बांग्लादेश का माहौल सुलग उठा था. पुलिस ने तुरंत एक्शन लेते हुए एक-एक करके सात गैंगस्टरों को हिरासत में लिया. उनमें से दो के पास से अवैध हथियार भी बरामद हुए. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, कोतवाली पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई एफआईआर से चौंकाने वाले खुलासे हुए. 19 नामजद आरोपियों के साथ-साथ 15 से 20 अज्ञात संदिग्धों की तलाश भी शुरू हुई,जो उस खौफनाक भीड़ का हिस्सा थे जिसने इंसानियत को कुचल दिया.

जुबो दल का नाम आया सामने

इसी बीच, राजनीतिक गलियारों में भी खलबली मच गई. हत्या का नाम जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की युवा शाखा जुबो दल से जुड़ने लगा, तो संगठन ने डैमेज कंट्रोल मोड में आते हुए चार सदस्यों को तत्काल निष्कासित कर दिया.

भीड़ हिंसा बनी एक बड़ी चिंता

जुलाई 2024 बांग्लादेश के इतिहास में एक ऐसा मोड़ लेकर आया, जिसे अब लोग “जुलाई क्रांति” के नाम से जानते हैं. भ्रष्टाचार, भेदभाव और राजनीतिक हुकूमत के खिलाफ़ छात्र सड़कों पर उतरे थे. पहले तो यह क्रांति उम्मीद का चेहरा लगी, लेकिन जैसे-जैसे इसकी चिंगारी फैली, समाज के अंधेरे कोनों से भीड़ हिंसा की लपटें उठने लगीं. एक साल के भीतर, बांग्लादेश की सड़कों, गलियों और गांवों में कुछ ऐसा बदला कि अल्पसंख्यक समुदाय डर के साए में जीने लगे. 2442 घटनाओं की शिकायत हुई. जून 2025 तक भीड़ हिंसा की 444 घटनाओं में 179 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके है.

दर्दनाक घटना, न्याय की पुकार

लाल चंद की हत्या ने बांग्लादेश के अंदर आचरण, राजनीतिक संरक्षण और कानून व्यवस्था पर गहरी सवालिया निशान छोड़ी है. छात्रों का आक्रोश इस बात का प्रतीक है कि युवा पीढ़ी अब उत्पीड़न के खिलाफ खड़ी हो चुकी है और न्याय की तेज़ी से मांग कर रही है. सरकार और सुरक्षा संस्थाओं के लिए यह वक्त है जवाबदेही की.

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