
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सियासी और कानूनी संग्राम तेज हो गया है. विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की इस कवायद को भेदभावपूर्ण और मनमाना बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए फिलहाल चुनाव आयोग के फैसले को संविधान सम्मत माना है और कहा है कि मतदाता सूची की यह समीक्षा पूरी तरह वैध है.
मुख्य याचिकाकर्ता NGO ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ सहित 10 से ज्यादा विपक्षी नेताओं और दलों ने इस विशेष पुनरीक्षण के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की थीं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से स्पष्ट रूप से कहा कि वे यह साबित करें कि चुनाव आयोग का तरीका नियमों और कानून के खिलाफ है. वहीं आयोग ने इसे नियमित प्रक्रिया बताते हुए कहा कि ऐसा पूर्व में भी (2003 में) किया जा चुका है और यह पूरी तरह संविधान के तहत है.
चुनाव आयोग के तर्क और कोर्ट की टिप्पणी
- चुनाव आयोग ने कहा कि SIR पूरी तरह संविधान के तहत है और यह अंतिम बार 2003 में हुआ था.
- आयोग के मुताबिक बिहार की 7.9 करोड़ की आबादी को कवर करते हुए ये पुनरीक्षण किया जा रहा है.
- आयोग ने कहा कि Aadhaar और Voter ID को नागरिकता प्रमाण नहीं माना गया है.
- कोर्ट ने आधार को पहचान पत्र मानने के मुद्दे पर आयोग से सवाल किया कि अगर आधार काफी नहीं है तो फिर मान्यता की कसौटी क्या होगी?
विपक्षी याचिकाकर्ताओं के प्रमुख तर्क
- अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि SIR नियमों के खिलाफ, पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण है.
- उन्होंने कहा कि 1 जुलाई 2025 से 18 साल पूरे करने वाले युवाओं के लिए अलग मानक तय किया गया है.
- 2003 से पहले के मतदाताओं से सिर्फ फॉर्म मांगा जा रहा है, जबकि बाद के मतदाताओं से दस्तावेज मांगे जा रहे हैं.
- सिंघवी ने कहा कि किसी को भी मतदाता सूची से हटाने के लिए शिकायतकर्ता को सबूत देना होता है, यहां 4 से 7 करोड़ लोगों को सामूहिक रूप से बाहर करने जैसा माहौल बनाया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में सवाल-जवाब
- कोर्ट ने पूछा, क्या SIR की प्रक्रिया चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आती है? याचिकाकर्ता ने माना, हां.
- कोर्ट ने कहा कि आप SIR के अधिकार को नहीं, बल्कि प्रक्रिया को चुनौती दे रहे हैं.
- अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग की तर्कों में व्यावहारिकता है, क्योंकि यह डिजिटल युग के बाद की पहली प्रक्रिया है.
अपील तंत्र को लेकर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
- सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब लोगों को सूची से बाहर किया जाएगा तो अपील की क्या प्रक्रिया होगी?
- कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट से किसी का नाम हटाने के लिए सुनवाई और जवाब देने का अवसर जरूरी है.
- सिंघवी ने कहा कि अगर दो साल में ये प्रक्रिया पूरी हो जाए तो यह मान्य हो सकता है लेकिन अभी चुनाव सिर पर है.
राजनीतिक नेताओं की याचिकाएं
याचिका दाखिल करने वालों में RJD के मनोज झा, TMC की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, NCP (SP) की सुप्रिया सुले, CPI के डी राजा, सपा के हरिंदर मलिक, शिवसेना (UBT) के अरविंद सावंत, JMM के सरफराज अहमद और CPI(ML) के दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं.