भारत के ग्रैंड मुफ्ती शेख अबू बक्र अहमद : निमिषा प्रिया की फांसी टलवाने में निभाई अहम भूमिका, जानिए इनके बारे में….

केरल की 37 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन की अदालत ने 2017 में एक यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी की कथित हत्या के मामले में मौत की सज़ा सुनाई थी. उनकी अंतिम अपील 2023 में खारिज कर दी गई और उन्हें 16 जुलाई 2025 को फांसी दी जानी थी. लेकिन फांसी से एक दिन पहले एक अप्रत्याशित हस्तक्षेप हुआ, जिससे उनकी फांसी को 11 घंटे पहले ही टाल दिया गया.

इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भारत के ग्रैंड मुफ़्ती की. 94 वर्षीय प्रसिद्ध मुस्लिम धर्मगुरु कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार, जिन्हें शेख अबू बक्र अहमद के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने यमन के धार्मिक नेताओं से बातचीत की. उन्होंने यमन के उन इस्लामी विद्वानों के माध्यम से प्रयास किए जो मृतक महदी के परिजनों से संपर्क में थे. इस हस्तक्षेप से फांसी की तारीख स्थगित कर दी गई. 

कौन हैं भारत के ‘ग्रैंड मुफ़्ती’?

शेख अबू बक्र अहमद, जिन्हें आमतौर पर कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार के नाम से जाना जाता है. वह केरल के प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान और धार्मिक नेता हैं. वे ‘मरकज़’ संस्थान के संस्थापक हैं, जो शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में कार्यरत है. उन्हें 2019 में दिल्ली में आयोजित एक इस्लामी सम्मेलन के दौरान ‘भारत के ग्रैंड मुफ्ती’ की उपाधि दी गई थी. हालांकि यह उपाधि भारत सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से मान्य नहीं है. फिर भी, दक्षिण भारत ही नहीं, पूरे देश और दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में वे सुन्नी समुदाय में अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति हैं.

मुसलियार ने सामाजिक मुद्दों पर खुलकर राय रखी है. उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का विरोध किया, पर साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद पर फैसले का सम्मान करने की भी अपील की. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले थे और नागरिकता कानूनों से धर्म को हटाने का आग्रह किया था. वे धार्मिक सहिष्णुता, शांति और शिक्षा के पक्षधर माने जाते हैं. उनका कहना है कि भारत की संप्रभुता और आपसी शांति, किसी भी एक समुदाय की जीत से अधिक महत्वपूर्ण है.

राजनीतिक समर्थन और सामाजिक सराहना

कांग्रेस नेता ओमन चांडी के अनुरोध पर शेख अबू बक्र ने यह प्रयास किया. केरल के सांसद शशि थरूर ने भी उनकी भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि “मानवता आज के युग में सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए.” उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए शेख के प्रयासों को ऐतिहासिक और मानवीय बताया.

ब्लड मनी का है ऑप्शन

यमन में शरिया कानून के अनुसार मृत्युदंड का एक विकल्प ब्लड मनी है. यदि मृतक का परिवार क्षमा कर दे और मुआवज़ा स्वीकार कर ले, तो सज़ा को रोका जा सकता है. शेख अबू बक्र ने इसी सिद्धांत के तहत यमन के अपने पुराने मित्र, सूफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफिज के माध्यम से मध्यस्थता की. 

शेख अबू बक्र ने क्या बताया?

शेख अबू बक्र ने बताया कि यमन के धार्मिक विद्वानों ने बैठक कर मामले पर चर्चा की और उन्हें औपचारिक रूप से यह सूचित किया गया कि फांसी की तिथि स्थगित कर दी गई है. इससे ब्लड मनी समझौते को आगे बढ़ाने के लिए और वक्त मिल गया है. इस बातचीत के समन्वय के लिए केरल में मुसलियार के मुख्यालय में एक विशेष कार्यालय भी खोला गया.

शेख अबू बक्र ने कहा, “इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो मानवता को सर्वोपरि मानता है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मामले में उनका हस्तक्षेप मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित है, न कि राजनीतिक या धार्मिक लाभ के लिए. उनका मानना है कि न्याय, करुणा और शांति के लिए संवाद आवश्यक है.

शेख अबू बक्र का यह कदम दर्शाता है कि कैसे धार्मिक नेता भी सामाजिक न्याय और मानवीय मूल्यों की रक्षा में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं. यह प्रयास न केवल निमिषा प्रिया के जीवन को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि धर्म, यदि सही दिशा में प्रयुक्त हो, तो वह विभाजन नहीं, बल्कि समरसता का सेतु बन सकता है.

भारत सरकार भी कर रही कोशिश

इस बीच भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वे सीमित हस्तक्षेप कर सकते हैं, क्योंकि यमन का मामला पूरी तरह वहां की न्यायिक और धार्मिक प्रक्रियाओं पर निर्भर है. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि सरकार ने यमन के प्रभावशाली शेखों से संपर्क किया है और हरसंभव प्रयास जारी हैं.

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