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महाकुंभनगर की नहीं कम हो रही भीड़, एक डुबकी लगाते ही दूर हो जाती भक्तों की थकान
महाकुंभनगर । समय मध्य रात्रि, फिर भी चारों तरफ हलचल। इधर से आइए, उधर जाइए, जय माता दी आदि-आदि। यह दृश्य मुंबई जैसे शहर का नहीं है। यह स्थिति गंगा, यमुना और सरस्वती के तट पर बसे विश्व का सबसे अद्भुत और बड़े महानगर महाकुंभनगर की है। यहां जो भी आता है, संगम तट तक जाते-जाते थक जाता है, लेकिन जैसे ही संगम में डुबकी लगाता है, उसकी थकान दूर हो जाती है। लोगों का मानना था कि माघी पूर्णिमा के बाद यहां भीड़ कम हो जाएगी, लेकिन अनुमान गलत निकला। आज भी भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही है। रविवार को प्रात: 08 बजे तक 36.35 लाख श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान कर लिया है। वहीं अब तक महाकुम्भ आने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा 52 करोड़ के पार पहुंच चुका है। अभी रविवार को स्थिति यह रही है कि कानपुर रोड पर शहर के बाहर 15 किलोमीटर तक लंबा जाम लगा रहा। इसी तरह लखनऊ से आने में जो अधिकतम तीन घंटे का रास्ता है, लोगों को अपनी गाड़ी से आठ घंटे लग गये। यही हाल बनारस का रहा। हर व्यक्ति मेला के लिए आना चाहता है। प्रयागराज के चारों तरफ 25 से 40 किलोमीटर पहले से ही आपको महाकुंभनगर का एहसास करा देता है। भक्ति की भीड़ दिखने लगती है। लोगों के चेहरे पर थकान दिख जाता है, लेकिन एक डुबकी लगते ही थकान मिट जाती है।
गुजरात से आये शिवेन्द्र का कहना है कि रास्ते में तो बहुत ही परेशानी हुई, लेकिन संगम में डुबकी लगाने के बाद शरीर पूरी तरह से तरोताजा हो गयी। ऐसा लग ही नहीं रहा है कि मैं दस किलो मीटर पैदल भी चला हूं। इसी तरह सुलोचना देवी कहती है कि एक डुबकी लगाते ही मां गंगा, सरस्वती और मां यमुना शरीर में ताजगी भर देती हैं। थकान रह नहीं जाती और व्यक्ति पूरी तरह फ्रेस हो जाता है।
प्रयागराज के स्थानीय पंडा लोगों का कहना है कि कभी भी अधिकतम माघी पूर्णिमा तक ही भीड़ रही है। इस बार भी यही अनुमान था, लेकिन अनुमान गलत निकला। अब भी चारों तरफ से भीड़ आ रही है। अब तो ऐसा लगता है कि मेला को होली तक कर दिया जाय तब भी भीड़ कम नहीं होगी। इस भीड़ का कारण है कि अमावस्या तक बहुत लोग यह सोचकर चल रहे थे कि इसके बाद भीड़ कम हो जाएगी तो बसंत पंचमी पर चलेंगे, लेकिन मीडिया ने जब भीड़ उस समय भी दिखाया तो कुल लोग रूक गये और माघी पूर्णिमा के आस-पास प्लानिंग करने लगे। इससे उस समय भी भीड़ बढ़ गयी। इससे बहुत लोग रूक गये और माघ माह के बाद पूरी उम्मीद थी कि मेला उजड़ने लगता है, कल्पवास वाले लोग भी जा चुके होते हैं। उस समय निश्चित ही भीड़ कम हो जाएगी। अब वैसे लोग आ रहे हैं, इस कारण भीड़ अब भी कम होने का नाम नहीं ले रही है। यह बात तो निश्चित है कि हर कोई मेला आना चाहता है। इस अवसर को कोई गंवाना नहीं चाहता।