मानसून सत्र में सरकार का शक्ति प्रदर्शन, गठबंधन की मजबूरी बनी चुनौती….विवादित मुद्दों से माहौल होगा गर्म

-21 जुलाई से शुरु होगा संसद का मानसून सत्र

नई दिल्ली । संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस बार सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक निर्णायक संघर्ष का मैदान बनने जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह सत्र न केवल विधायी एजेंडे को लेकर, बल्कि सत्ता की स्थिरता और विपक्ष की शक्ति प्रदर्शन को लेकर भी बेहद अहम होने वाला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो कि इससे पहले तक पूर्ण बहुमत वाली सरकारों का नेतृत्व करते रहे हैं, अब गठबंधन की सरकार चला रहे हैं। इस बार संसद में विपक्ष भी पहले की तुलना में कहीं अधिक मजबूत हुआ है। ऐसे में मानसून सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने अस्तित्व और प्रभाव के लिए पूरी ताकत झोंक सकते हैं। सरकार में भाजपा के दो प्रमुख सहयोगी—तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू)—केंद्रीय सत्तारूढ़ गठबंधन की रीढ़ बने हुए हैं। लेकिन दोनों दलों के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद उभरते दिख रहे हैं। यदि इन दलों का समर्थन हटा, तो सरकार संकट में आ सकती है और मध्यावधि चुनाव की नौबत भी आ सकती है।

विवादित मुद्दों से माहौल होगा गर्म
विपक्षी इंडिया गठबंधन ने पहले ही कई मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है। ऐसे ही मुद्दों में बिहार में मतदाता सूची पर विवाद और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल, जम्मू-कश्मीर का पहलगाम हमला, ऑपरेशन सिंदूर में कथित खामियां, पाकिस्तान-चीन गठजोड़, सेना पर राजनीतिक हस्तक्षेप, मणिपुर में अशांति, दलाई लामा पर चीन की नाराज़गी, भारत-चीन व्यापार घाटा और चीन दौरे पर भारतीय मंत्रियों की चुप्पी, अमेरिका से व्यापारिक दबाव, रूस से डिफेंस डील पर दवाब प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त विपक्ष चुनाव आयोग पर विश्वास की कमी, सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों, और जजों पर महाभियोग के प्रयास को लेकर भी सत्तापक्ष को घेरने की तैयारी में है।

सरकार के एजेंडे में हैं कई महत्वपूर्ण विधेयक
सरकार इस सत्र में कई प्रमुख विधेयक पास कराना चाहती है, जिनमें शामिल हैं:
डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक, जीएसटी न्यायाधिकरण विधेयक, दिवालियापन एवं ऋण शोधन संहिता संशोधन, खेलों में नैतिक आचरण विधेयक, भू-वैज्ञानिक विरासत संरक्षण विधेयक, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने का विधेयक और इसी के साथ ही साथ वक्फ बिल और बिहार मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी सदन में बड़ा मुद्दा बन सकता है।

विपक्ष के तेवर आक्रामक

विपक्ष का रुख साफ है—अगर अभी ताकत नहीं दिखाई, तो भविष्य में कोई अस्तित्व नहीं बचेगा। विपक्ष के रणनीतिकार 1975 के आपातकाल पूर्व के माहौल से इस समय की तुलना कर रहे हैं, जब छात्र आंदोलनों और महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों ने सत्ता बदलने की भूमिका तैयार की थी। इस बार वोटर अधिकार को मुद्दा बनाकर विपक्ष ने जनभावनाओं को आंदोलित करने की रणनीति बनाई है।

संसद में होगा शक्ति प्रदर्शन
कुल मिलाकर 21 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में राजनीतिक तापमान चरम पर रहने की उम्मीद है। इसलिए दोनों पक्षों के लिए यह सिर्फ सत्र नहीं, बल्कि भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाला संग्राम हो सकता है।

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