नई दिल्ली। देश में मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग की आड़ में नए छात्रों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार ने यौन अपराधों और महिलाओं के प्रति हिंसा की प्रवृत्ति को सामने ला दिया है। मेडिकल कॉलेजों में सीनियर्स द्वारा नए छात्रों को अश्लील गालियों और महिलाओं के खिलाफ हिंसक भाषा से भरी किताबें पढ़ने और याद करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह केवल रैगिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि यौन हिंसा और लैंगिक भेदभाव के रेप कल्चर को बढ़ावा देने वाला एक गंभीर मुद्दा बना गया है।
जूनियर छात्रों को मजबूर किया जाता है कि वे महिलाओं को सिर्फ एक वस्तु के रूप में देखें। इन किताबों में महिलाओं, नर्सों और छात्राओं के प्रति हिंसक और अश्लील टिप्पणियां होती हैं। नए छात्रों के मुताबिक, उन्हें इन किताबों को जोर से पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है, जिसमें महिलाओं के शरीर और उनके साथ यौन हिंसा का अश्लील वर्णन होता है।
इस मामले में कुछ डॉक्टरों ने अपने अनुभव साझा किए हैं, जहां मरीजों के शरीर को लेकर भद्दे मजाक होते हैं। महिला मरीजों और छात्रों को अनावश्यक रूप से छूना और उनका अपमान करना इन कॉलेजों के अंदर की संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इस मामले से जुड़े जानकारों का कहना है कि जो सीनियर्स रैगिंग के नाम पर जो इस तरह के कृत्यों में शामिल होते हैं, वे भविष्य में महिला सहयोगियों और मरीजों के लिए खतरा बन सकते हैं।
क्या होना चाहिए समाधान?
कड़ी निगरानी और जांच: कॉलेज प्रशासन को सख्त कदम उठाकर ऐसी गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिए। छात्रों और स्टाफ को शिकायत करने के लिए सुरक्षित और प्रभावी माध्यम उपलब्ध होना चाहिए। मेडिकल शिक्षा में नैतिकता और संवेदनशीलता का पाठ अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। इस तरह की घटनाएं केवल मेडिकल कॉलेजों की प्रतिष्ठा को धूमिल नहीं करतीं, बल्कि महिलाओं के प्रति समाज की सोच और भविष्य के डॉक्टरों की नैतिकता पर भी सवाल खड़े करती हैं।