‘रूह अफज़ा’ vs ‘शरबत जिहाद’ : क्या अब धार्मिक या सांप्रदायिक संदर्भों के सहारे होगा ब्रांड प्रचार?

दिल्ली हाईकोर्ट ने योग गुरु और पतंजलि के संस्थापक रामदेव की उस टिप्पणी पर कड़ी नाराज़गी जताई है, जिसमें उन्होंने फेमस शरबत ‘रूह अफज़ा’ को ‘शरबत जिहाद’ कहकर संबोधित किया. न्यायालय ने इसे “अस्वीकार्य” और “न्यायिक अंतरात्मा को झकझोरने वाला” करार देते हुए कहा कि ऐसे बयान समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकते हैं.

जज अमित बंसल हमदर्द लैबोरेटरीज द्वारा दायर उस याचिका की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें रामदेव पर उनके उत्पाद की साख को सांप्रदायिक रंग देकर नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया. कोर्ट ने कहा कि यह मामला केवल मानहानि नहीं बल्कि सामाजिक सौहार्द पर आघात का भी है. 

वकील ने क्या दी दलील?

हमदर्द की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस टिप्पणी को ‘नफरत फैलाने वाला बयान’ बताया और कहा कि यह धार्मिक विभाजन पैदा करने की कोशिश है. उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि ऐसे मामलों को हल्के में न लिया जाए क्योंकि देश पहले से कई सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहा है.

मैंने किसी का नाम नहीं लिया: रामदेव

विवाद के बाद मीडिया से बातचीत में रामदेव ने सफाई दी कि उन्होंने किसी विशेष ब्रांड या समुदाय का नाम नहीं लिया. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी को ‘शरबत जिहाद’ से परेशानी है, तो वे खुद ही यह मान रहे हैं कि यह बयान उनके लिए था. 

दिग्विजय सिंह ने दर्ज कराया केस

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने रामदेव पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ भोपाल पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 और 299 के तहत कार्रवाई की मांग की, जिसमें सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और धार्मिक भावनाएं ठेस पहुंचाने का उल्लेख है.

शरबत से होता है मदरसों का निर्माण

रामदेव के विवादित वीडियो में उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि कुछ कंपनियों का शरबत पीने से मस्जिद और मदरसे बनते हैं, जबकि पतंजलि का शरबत गुरुकुल और भारतीय शिक्षा के विकास में मदद करता है. उन्होंने इसे “शरबत जिहाद” की संज्ञा देते हुए “लव जिहाद” और “वोट जिहाद” से जोड़ा. 

मार्केटिंग या नफरत का प्रसार?

वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा गया था, “शरबत जिहाद के नाम पर बेचे जा रहे टॉयलेट क्लीनर जैसे ज़हर से बचें.” विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस तरह की भाषा केवल एक प्रोडक्ट की मार्केटिंग नहीं बल्कि धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करती है.

सवालों के घेरे में ब्रांड पॉलिटिक्स

इस पूरे विवाद ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब ब्रांड प्रचार धार्मिक या सांप्रदायिक संदर्भों के सहारे होगा? अदालत के सख्त रुख और सामाजिक नेताओं की प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत जैसे विविधता-भरे देश में इस प्रकार की मार्केटिंग को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.

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