
अगर आपके घरवाले शादी के लिए तंग कर रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए एक हथियार से कम नहीं! नई रिसर्च का दावा है कि शादीशुदा लोगों की तुलना में अविवाहित, तलाकशुदा या विधुर लोग डिमेंशिया (यानी भूलने की बीमारी) के कम शिकार होते हैं. पहले ऐसा माना जाता था कि शादी मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, लेकिन अब ये मान्यता टूटती दिख रही है.
क्या कहती है नई रिसर्च?
यह अध्ययन अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी ने किया और इसे ‘द जर्नल ऑफ द अल्ज़ाइमर एसोसिएशन’ में प्रकाशित किया गया है. रिसर्च में 24,000 से ज़्यादा लोगों को 18 सालों तक ट्रैक किया गया. नतीजा चौंकाने वाला था. जो लोग कभी शादीशुदा नहीं थे या जिनका तलाक हो चुका था, उनमें डिमेंशिया (स्मृति लोप) होने की संभावना शादीशुदा लोगों की तुलना में कम पाई गई. यह रिसर्च 2019 में सामने आए उस पुराने शोध के उलट है, जिसमें कहा गया था कि अकेले रहने वालों में डिमेंशिया का खतरा ज़्यादा होता है.
तो क्या शादी दिमाग के लिए हानिकारक है?
विशेषज्ञों का कहना है, “हर रिश्ता एक अलग इमोशनल सिस्टम है. सिर्फ शादी होने से कोई सेहतमंद नहीं बनता.” उल्टा, खराब शादी, तनाव, अकेलापन और अधूरे सपने मानसिक सेहत को और कमजोर कर सकते हैं. वहीं, अविवाहित लोग अक्सर ज्यादा एक्टिव रहते हैं, अपनी पसंद की ज़िंदगी जीते हैं और खुद की खुशी को तरजीह देते हैं. ये सब मिलकर ब्रेन को हेल्दी बनाए रखते हैं.
इंडियन कॉन्टेक्स्ट में क्या फर्क है?
भारत जैसे समाज में, जहां विवाहित महिलाओं की भूमिका अक्सर घर तक सीमित होती है, डॉ. कुलकर्णी मानते हैं कि यही ‘असंतुष्टि’ लंबे समय में मानसिक बीमारियों को जन्म दे सकती है. उधर, अविवाहित लोग अक्सर ज़्यादा स्वतंत्र होते हैं, सामाजिक दायरे ज़्यादा होते हैं और वे नए अनुभवों में शामिल होते हैं, जो मस्तिष्क के लिए लाभदायक साबित होता है.
क्या शादी से ज़्यादा ज़रूरी है क्वालिटी ऑफ लाइफ?
रिसर्च से एक बात साफ़ निकलकर आई है, शादी होना या न होना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना जीवन का भावनात्मक स्तर, सामाजिक सक्रियता और मानसिक सुकून. यह सिर्फ़ शादीशुदा या सिंगल होने की बहस नहीं है, बल्कि कैसे जी रहे हैं, ये अधिक मायने रखता है.