सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ब्लास्ट के आरोपियों को बरी करने पर लगाई रोक, पर नहीं रुकेगी रिहाई, जानिए पूरा मामला

नई दिल्ली,(ईएमएस)। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर गुरुवार को रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा, बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक से आरोपियों की जेल से रिहाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बता दें कि ट्रेन ब्लास्ट केस में 13 लोग आरोपी थे। 12 सभी रिहा हो गए हैं। एक आरोपी की मौत हो गई है। 11 जुलाई 2006 को मुंबई के वेस्टर्न सब अर्बन ट्रेनों के सात कोचों में सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इसमें 189 पैसेंजर की मौत हो गई थी और 824 लोग घायल हो गए थे। सभी धमाके फर्स्ट क्लास कोचों में हुए थे। घटना के 19 साल बाद यह फैसला आया है।

न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की उस दलील को स्वीकार किया जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट का फैसला राज्य में महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट के तहत चल रहे अन्य मामलों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा, हम मानते हैं कि यह फैसला नजीर के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाए। अतः इस पर रोक लगाई जाती है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि वह हाईकोर्ट के फैसले के प्रभाव पर रोक लगाए, भले ही वह आरोपियों की रिहाई को चुनौती नहीं दे रहे हों। उन्होंने कहा कि फैसले में कुछ टिप्पणियां हैं जो एक्ट के तहत लंबित मामलों को प्रभावित कर सकती हैं। इससे पहले महाराष्ट्र सरकार और आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सरकार ने आदेश को चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा कि एक आरोपी से आरडीएक्स की बरामदगी को बेहद तकनीकी आधार पर खारिज किया गया कि जब्त विस्फोटकों को एलएसी सील से सील नहीं किया गया था। उच्च न्यायालय ने आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है तथा यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने यह अपराध किया है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उच्च न्यायालय के 21 जुलाई के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील पर तत्काल सुनवाई के अनुरोध का संज्ञान लिया था और कहा कि बृहस्पतिवार को सुनवाई की जाएगी। राज्य सरकार ने अपनी अपील में उच्च न्यायालय के बरी करने के आदेश पर कई गंभीर आपत्तियां उठाई हैं।

याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की धारा 23(2) के तहत उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया गया था, जिसमें अभियोजन पक्ष के गवाह संख्या 185 अनामी रॉय जैसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित मंजूरी भी शामिल है। इसमें कहा गया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में कोई ठोस विरोधाभास न होने के बावजूद उच्च न्यायालय ने इन स्वीकृतियों की वैधता को नजरअंदाज कर दिया। याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा एक आरोपी से 500 ग्राम आरडीएक्स की बरामदगी को इस आधार पर खारिज करने की आलोचना की गई है कि उस पर एलएसी सील नहीं थी। याचिका में कहा गया है कि आरडीएक्स के अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण सुरक्षा कारणों से इसे सील नहीं किया गया था और बरामदगी की विधिवत मंजूरी दी गई थी तथा उसका दस्तावेजीकरण किया गया था।

गवाहों और सबूतों पर भी उठे सवाल
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को सुनाए गए 400 पन्नों के फैसले में जांच को भ्रामक समापन बताया और कहा कि इससे जनता का भरोसा टूटता है जबकि असली दोषी अभी भी आज़ाद घूम रहे हैं। हाईकोर्ट ने आरोपियों के कथित इकबालिया बयानों को भी अविश्वसनीय बताया। अदालत ने कहा कि ये बयान एक जैसे “कट-कॉपी-पेस्ट” प्रतीत होते हैं और संभवतः दबाव में लिए गए थे। कई आरोपियों ने बाद में कोर्ट में कहा था कि उनसे जबरदस्ती बयान दिलवाया गया, और कोर्ट ने इसे विश्वसनीय माना क्योंकि उनके वकीलों की मौजूदगी में बयान नहीं लिए गए थे, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

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