एक के बाद एक मिल रहे झटकों से दुबला हो रहा हाथी


-मुलायम और कल्याण सरकारों को समर्थन देने के मुद्दे पर टूट चुकी है बसपा-सपा से गठबंधन टूटने पर मुलायम ने राजबहादुर को सीएम बनाने का दिया था प्रस्ताव

योगेश श्रीवास्तव

लखनऊ। प्रदेश में चार बार सत्तारूढ़ रही बहुजन समाज पार्टी इस समय विधानसभा में तीसरी पायदान पर खड़ी है। राज्यसभा चुनाव में इस बार उसे फिर एक झटका लगा जब एक साथ उसके सात विधायकों ने बगावत कर दी। झटके पर झटका खाना मानों बसपा की नियति बन गयी है। राज्यसभा चुनाव में बसपा के सात विधायक बागी हो गए। पार्टी की मुखिया मायावती ने सभी सात विधायकों को निलंबित कर दिया है। अब इन सातों विधायकों की सदस्यता समाप्त कराने की तैयारी में है। मौजूदा विधानसभा में बसपा विधानमंडल दल में हुई इस बगावत को लेकर किसी को हैरानी नहीं है। अपने तीन दशक से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में बहुजन समाज पार्टी के लिए इस तरह बगावत कोई कोई नया अनुभव नहीं है।

१९९३ में सपा के साथ पहली बार सत्तारूढ़ होने और सपा से गठबंधन टूटने पर १९९५ में बसपा में पहली बार टूट हुई थी। जिसका नेतृत्व सपा-बसपा गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे राजबहादुर ने किया था। राजबहादुर ही बसपा के यूपी र्मे बसपा के पहले प्रदेशाध्यक्ष थे। सपा से गठबंधन टूटने पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उस समय राजबहादुर को मुख्यमंत्री बनाए जाने का फार्मूला देकर बसपा से समर्थन देने का प्रस्ताव दिया था जिसे कांशीराम ने अस्वीकार कर दिया और तब भाजपा ने समर्थन देकर मायावती को मुख्यमंत्री बना दिया था।

१९९७ में भाजपा की गठबंधन सरकार से बसपा द्वारा गठबंधन टूटने पर बसपा में ही टूट हुई। बसपा के एक धड़े ने टूटकर जनतांत्रिक बसपा का गठन किया जिसकी अगुवाई उस समय मार्केडय चन्द्र ने की थी। उस समय बसपा के एक दर्जन विधायकों ने कल्याण सिंह सरकार को समर्थन दिया था। बसपा से टूटे सभी विधायकों को कल्याण सिंह ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। सरकार बचाने की गरज से बसपा के साथ कांग्र्रस में भी टूट हुई थी। बसपा और कांग्रेस से टूटकर आए सभी विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल कर कि या गया था। उस समय मंत्रिमंडल के कुल सदस्यों की संख्या ९७ हो गयी थी।

आजादी के बाद कल्याण सिंह की ऐसी पहली सरकार थी जिसके मंत्रिमंडल का आकार इतना बड़ा था। १९९७ में बसपा से टूटने पर बनी जनतांत्रिक बसपा में भी टूट हुई और उस समय किमबपा का गठन किया गया था। जिसकी अगुवाई चौ.नरेन्द्र सिंह थे। चौ.नरेन्द्र सिंह किसी समय क ांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक थे। कांग्रेस की सरकारों मे वह महत्वपूर्ण विभागों क मंत्री भी रहे। बसपा से अलग होने के बाद जिन नेताओं ने जनतांत्रिक बसपा और किमबपा का गठन किया उसमें से बाद में कई नेता बाद में बसपा मे लौट गए थे। साल २००३ यह वह साल था जब एक बार फिर बसपा को टूट का सामना करना पड़ा।

तीसरी बार भाजपा से गठबंधन करने और तोडऩे पर बसपा में बड़ी टूट हुई ओर बसपा के चौदह विधायक मुलायम सरकार के साथ खड़े हो गए। बसपा से टूट कर सभी विधायकों को मुलायम सिंह ने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया था। हाल ही जिस तरह राज्यसभा चुनाव में बसपा के जिन सात विधायकों ने खुले आम बगावत करके सपा नेतृत्व से मिलकर अपनी अपने नेतृत्व को चुनौती दी है उसके बाद से इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि विधानसभा २०२२ के  चुनाव आने तक बसपा को एक और टूट का सामना करना पड़ सकता है। बसपा के जिन सात विधायकों ने पार्टी मुखिया मायावती की मंशा पर सवाल उठाए है उससे साफ है कि वे सभी अपने अंजाम से बेपरवाह है।

मायावती ने जहां अपने बागी हो चुके सभी सातों विधायकों को निलंबित करने के साथ ही उनसबकी सदस्यता समाप्त किए जाने के संबंध में विधानसभाध्यक्ष के यहां याचिका प्रस्तुत करने की बात कही है। 

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